
What is Child Labour
What is Child Labour- हर इन्सान का बचपन होता है। बचपन जिंदगी का सबसे अच्छा और यागदार समय होता है, बचपन के खेल, मौज-मस्ती को हर इंसान अपने जीवन के आखिरी समय तक याद रखता है, लेकिन यह बचपन कब बित जाता है, हमें मालूम ही नही चलता है। लेकिन यह बचपन शायद हर किसी के लिए यादगार न हो। कई लोगों के लिए बचपन एक अभिशाप होता है।
जिस बचपन को हम भगवान का वरदान मानते हैं, आखिर वह कोई श्राप कैसे हो सकता है? अगर यह जानना है, तो आप अपने घर के आस-पास नजर ड़ाल कर देखो। कहीं यह बचपन किसी के घर पर बर्तन धोता है तो कहीं यहीं बचपन किसी चाय वाले की दुकान पर किसी की गालिया सुनता है। बचपन की कड़वाहट केवल उस बच्चे को ही पता होती है, जो रेलवे स्टेशनों पर खाली पड़ी प्लास्टिक की बोतलों को इकठ्ठा करता है, या गली मोहल्लो में या किसी बड़े से नाले में उतर कर कुछ खोज रहा होता है।
शायद आपको पता भी नही होगा कि इन कचरा इक्कठा करने वाले मासूम बच्चों को अनजाने में ही काफी गंभीर बिमारीयां भी हो जाया करती है। क्योंकि जब यह कचरा जामा कर रहे होते है तो उनमें फैंकी गई निड़ील उनके हाथो में भी चुभ जाया करती है, वे इतनी घातक होती है कि कभी-कभी तो उनकी मृत्यू तक हो जाती है। क्योंकि वे निड़ील जहरीली होती है।
क्या है बाल श्रम?
बाल श्रम का अर्थ है ऐसे कार्य जो भारतीय अधिनियम के खिलाफ हो जैसे कानून द्वारा निर्धारित 14 वर्ष से कम आयु में किसी बच्चे का काम करना बाल श्रम कहलाता है। चाहे वह अपने माता-पिता के साथ कृषि कार्य में काम करना हो, माता-पिता के व्यापार में मदद करना हो, अपना स्वयं का लघु व्यवसाय जैसे, खाने-पीने की चीजे बेचना हो, खिलोने बेचना हो, या किसी दुकान या रेस्तरा में नौकरी करना हो यह सभी बाल श्रम के ही अंग है। इस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संघटनों ने शोषित करने वाली माना है।
बाल श्रम का कारण
दुनिया में बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी और परिवार में ज्यादा सदस्य होना है। भारत के सहित दूनिया के सभी कोनों में बाल श्रमिक काम करते नजर आ ही जाएंगे। हम किसी चाय की होटल पर बैठ कर आराम से देश में बढ़ रहे बाल श्रम पर चर्चा करते तो है, लेकिन उसी चाय की होटल पर काम करने वाले किसी बाल श्रमिक से चाय भी ले लेते हैं। हम यह कभी नहीं सोचते कि अभी-अभी हमने भी इसी बाल श्रम को बढ़ावा दिया है।
हमारे देश की एक खोखली Mentality है कि “जितने हाथ उतने काम” यह Mentality ही बाल श्रम को बढ़ावा देती है। परिवार की ऐसी मानसिकता बहुत ही घातक होती है। परिवार की इस तरह की सोच ने ही बाल श्रम को बढ़ावा दिया है। बाल श्रमिक समाज के एक उपेक्षित अंग होते है।
जहां यह बाल श्रमिक काम करते है वहां मालिक बच्चों से जरूरत से ज्यादा काम करवाते है और इन बाल श्रमिकों को मालिक मजदूरी भी कम देते है। बाल श्रमिक इस बात का विरोध भी नहीं कर सकते है और इसी कारण मालिक बच्चों को शोषित करने का कोई मौका नहीं जाने देते है। देश में सैकड़ों बच्चे असमय ही स्कुल जाने की जगह पर अपने पेट की भूख मिटाने के लिए किसी न किसी काम में लग जाते है।
बाल श्रम को रोकने के उपाय
बाल मजदूरी को मिटाना है, तो इसकी पहल हमें ही करनी होगी। हम अपने जीवन में किसी एक बच्चे को मजदूरी के दलदल से निकाल पाए तो यही एक काम धीर-धीरे बाल श्रम का अन्त कर देगा। क्या हमें सौम्य बचपन को बचाने के लिए कुछ करना नही चाहिए। हम अगर थोड़ा भी आर्थिक रूप से सक्षम है तो हमें कम से कम एक बच्चे की जिम्मेदारी लेनी चाहिए जिसका हम खर्च उठा सके और उस एक बच्चे को हम अच्छी शिक्षा दिला सके। आपको शायद नही मालुम कि हमारे इस प्रयास से देश को एक सुरक्षित भविष्य मिल सकता है।
बाल श्रम अधिनियम
बाल श्रम अधिनियम 1986 में चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह के घातक कामों में लगाने और अन्य रोज़गारों में उनके काम की स्थितियों को विनियमित करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
बाल श्रम कानून को तोड़ने वाले अपराधी को छह महीने से दो साल तक की सजा हो सकती है और 20,000 से 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस अधिनियम के पहले सजा की अवधि तीन महीने और जुर्माने की रकम 10,000 से 20,000 रुपए तक होती थी।
बाल मजदूरी का कारण हम ही है क्योंकि हम बाल श्रम का विरोध नही करते है। हमें बाल श्रम का पूर्ण रूप से विराध करना होगा। अगर हम कहीं बाल श्रमिक देखे तो हमें पुलिस प्रशासन को इससे अवगत करना होगा। बाल श्रम रूकेगा केवल हमारे थोड़े निर्भीक प्रयास की जरूरत है।
Join the Discussion!