Very Short Stories for Kids – विराट नगर के राजा मूर्ति पूजा में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते थे। वे जिन्हे भी मंदिर मे पूजा करते देखते, उन्हे यही कहते कि, “ये अंधविशवास है। मंदिरो में भगवान नहीं रहते हैं। मंदिरो में पूजा करना पाखंड है। ये सारे काम पाखंडियों के होते हैं।“
इस प्रकार की बाते सुन राज्य के लोगों को बड़ा बुरा लगता लेकिन वे कुछ बोल नहीं सकते थे क्योंकि राजा से सवाल-जवाब करने का साहस किसी में नहीं था।
एक दिन विराट नगर में एक संत महात्मा आए। महात्माजी को राजा ने अपने महल में भोजन के लिए आमंत्रित किया।
महात्मा जी ने बड़े ही सोम्य स्वभाव से राजा के निमंत्रण को स्वीकार किया और अगले दिन वे राजा के महल पहुँचे, राजा द्वारा महात्मा जी का भव्य स्वागत किया गया। राजा ने उन्हे अपना पूरा महल दिखाया।
जब महात्माजी ने पूरे महल का भ्रमण कर लिया तो राजा से एक प्रश्न किया, “हे राजन… आपने अपने महल के बारे में बहुत कुछ बताया परन्तु आपके महल में मुझे कोई मंदिर दिखाई नहीं दिया। ऐसा क्यों?“
राजा ने मुस्कुराते हुए प्रत्युत्तर दिया, “महात्माजी… मैं मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता।“
महात्माजी ने बड़ी ही नम्रता से इसका कारण पूछा तो राजा ने कहा, “ये मूर्ति पूजा क्या हैॽ एक पत्थर को भगवान मान लेना, क्या उचित हैॽ जबकि वह पत्थर स्वंय अपनी रक्षा नहीं कर सकता है।“
राजा का जवाब सुन मुस्कुराते हुए दोनों आगे बढ़े तभी महात्माजी की नजर आंगन में स्थित एक संगमरमर की चमचमाती हुई मूर्ति पर गई जिस पर सुगंधित फूलों की माला चढ़ी हुई थी। मूर्ति की ओर ईशारा करते हुए महात्माजी ने सवाल किया , “हे राजन… ये मूर्ति किसकी है?“
राजा ने कहा, “महाराज… यह मूर्ति मेरे पिताजी की है, जो मेरी बाल्य अवस्था में ही स्वर्ग सिधार गए थे।“
महात्माजी ने कहा, “राजन… आप इस मूर्ति को भी तोड़कर बाहर क्यों नहीं फिंकवा देते, आखिर ये मूर्ति भी तो पत्थर की ही है?“
राजा को बड़ा ही क्रोध आया, लेकिन अपने क्रोध पर काबु करके राजा ने कहा, “महाराज… भले ही ये मूर्ति भी पत्थर की है परंतु इसमें मुझे मेरे पिताजी दिखाई देते हैंॽ “
महात्माजी ने कहा, “हे राजन… जिस तरह तुम्हे इस मूर्ति में अपने पिताजी दिखाई देते हैं। ठीक उसी प्रकार से लोगो को भी मंदिर में रखे उस पत्थर में भगवान दिखाई देते हैं। जिसका आप प्रतिदिन विरोध करते हैं।“
इतना कहकर महात्माजी आगे बढ़ गए जबकि राजा असमंजस की स्थिति में वहीं के वहीं खड़े महात्माजी को देखते रहे।
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इस छोटी सी Moral Story का सारांश ये है कि भगवान, पत्थर की मूर्ति में नहीं बल्कि व्यक्ति की भावना में होते हैं।
yes, patter mein bhi bhagwan hote hai