Short Moral Story – एक समय सुन्दर नाम का एक युवक था। वह एक सर्कस कम्पनी में काम मांगने गया। सर्कश के मालिक ने सुन्दर को काम पर रख लिया और हिदायत दी कि-
शेर के पिंजरे के पास मत जाना क्योंकि शेर अनजान आदमी को देख कर भड़क जाता है।
सुन्दर ने हाँ में अपना सिर हिला दिया लेकिन सुन्दर ने उस सर्कश का काफी नाम सुन रखा था। वह जानता था कि वहाँ रहने वाला वीरशेरसिंह शेरों को बडी ही आसानी से अपना पालतु बना लेता है पर वह उससे कभी मिला नही था।
एक दिन सुन्दर आपने काम मे व्यस्त था, तभी उसने एक कर्मचारी को देखा, जो शेर के पिंजरे मे खड़ा था और शेर को कुछ करतब सिखा रहा था। सुन्दर उस कर्मचारी के पास गया और पूछा-
तुम शेर के पिंजरे मे क्या कर रहे हो? तुम्हे डर नही लगता शेर से?
वीरशेरसिंह ने उत्तर दिया-
नहीं… मुझे शेर के पिंजरे मे डर नही लगता क्योंकि यह मेरा रोज का काम है।
सुन्दर ने उस कर्मचारी का नाम पूछा तो कर्मचारी ने कहा-
मेरा नाम वीरशेरसिंह है और में इस सर्कश में शेरो को पालतु बना कर उनको खेल सिखाता हुँ।
सुन्दर ने वीरशेरसिंह को देखा तो उसे बडी खुशी हुई। उसने कहा-
बहुत नाम सुना है आपका। क्या आप मुझे सिखाओगे कि शेरों को पालतु कैसे बनाते है?
वीरशेरसिंह ने जवाब दिया-
हाँ… क्यों नहीं… तुम सही समय पर यहाँ मेरे पास आए हो। मैं आज ही एक शेर को पकडने जा रहा हुँ जिसने काफी लोगो को मारा है। क्या तुम मेरे साथ उस शेर को पकडने चलना चाहोगे।
सुन्दर ने हाँ में अपना सिर हिला दिया। सुन्दर ने देखा कि वीरशेरसिंह ने न अपने साथ कोई हथियार लिया और कोई बचाव का कोई उपाय किया। बस केवल एक स्टूल और एक लकडी ले ली और चल दिये जंगल की ओर। सुन्दर ने वीरशेरसिंह से पूछा कि-
अगर शेर ने हम पर हमला कर दिया तो हम मारे जायेंगे।
शेरसिंह ने कहा-
तुम चिंता मत करो। यह मेरी जिम्मेदारी है कि हमको कुछ भी नही होगा।
दोनों जंगल को चल देते है और जैसे ही वे जंगल पहुंचते हैं, उनके सामने वही शेर आ जाता है और वीरशेरसिंह की तरफ गरजते हुए आगे बढता है। शेर को अपनी ओर आता हुआ देखकर वीरशेरसिंह एक हाथ से स्टूल उठाता है और उसके चारों पाए शेर की तरफ कर देता है तथा दूसरे हाथ से लकडी को शेर के सामने हिलाता है। शेर कभी उस स्टूल के पाये को देखता है तो कभी उस लकडी को।
बार-बार स्टूल और लकडी की ओर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करते-करते वह कुछ ही देर में वह शेर असहाय हो जाता है। ध्यान बंटने के कारण वीरशेरसिंह उस शेर पर अपना काबु पा लेता है और शेर को पकड कर उसे अपना पालतु बना लेता है।
सुन्दर यह सब देख रहा होता है कुछ देर बाद सुन्दर वीरशेरसिंह की तारीफ करता है और उससे पूंछता है कि-
तुमने यह सब कैसे किया और शेर इतनी आसानी से तुम्हारे आधीन कैसे हो गया?
वीरशेरसिंह सुन्दर से कहता है-
सुन्दर… कई बार ऐसा होता है कि साधारण आदमी भी ध्यान केंद्रित करके कोई बडा कार्य करता है, तो सफल हो जाता है। लेकिन अगर कोई महान आदमी भी बिना ध्यान लगाए काेई कार्य करे, तो वह भी उस कार्य को ठीक से नही कर पाता।
तुमने देखा कि शेर का ध्यान भटक गया था। कभी वह स्टूल के चारों पाये देख रहा था, तो कभी मेरी उस लकडी को, जो कि मैं हिला रहा था। इस कारण ही शेर का ध्यान मुझ पर केंद्रित नही हो पाया और आखिर में शेर थक कर हार गया। अगर वह अपने ध्यान को एकाग्र रखता, तो हम यहां नहीं होते, बल्कि परलोक चल दिये होते।
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एकाग्रता ही सफलता की कुंजी है। इसलिए किसी भी प्रकार की सफलता तभी प्राप्त हो सकती है, जब उससे सम्बंधित कार्य को पूर्ण एकाग्रता के साथ किया जाए।