Story in Hindi – किसी व्यक्ति में चाहे जितनी भी बुराईयां क्यों न हों, यदि उसमें एक भी अच्छाई है, तो उसे ग्रहण करना चाहिए और हिन्दु धर्म में रावण से बुरा व्यक्ति किसी को नहीं माना गया है क्योंकि इस संसार में रावण ही एक एेसा व्यक्ति है, जिसकी मृत्यु के बाद भी उसे उसकी बुराईयों के लिए याद करते हैं व प्रतिवर्ष उसका पुतला जलाकर उसकी बुराईयों के प्रति विरोध प्रदर्शन करते हैं।
लेकिन रावण जैसे व्यक्ति के जीवन की घटनाओं से भी हमें बहुत कुछ अच्छा सीखने को मिल सकता है और इस पोस्ट में हम रावण के एक गुण के बारे में जानेंगे, जिसे अपने जीवन में उतारना हमारे लिए भी काफी उपयोगी है।
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रावण जन्म से ही उद्दण्डी व झगड़ालु प्रकृति का था। उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि कोई भी राक्षस या मनुष्य उससे ज्यादा शक्तिशाली हो और अगर उसे इस बात का पता चल जाता कि कोई राक्षस या मनुष्य उससे ज्यादा शक्तिशाली है, तो वह उससे युद्ध करके या तो उस पर विजय प्राप्त कर उसे बंदी बना लेता था अथवा उससे मित्रता कर अपनी शक्ति व सामर्थ्य बढा लेता था और इसी संदर्भ में एक रावण व बालि की मित्रता से सम्बंधित एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार-
एक दिन रावण को पता चला कि किष्किन्धा पुरी के राजा बालि उससे भी ज्यादा शक्तिशाली और पराक्रमी हैं। इसलिए रावण उसके साथ युद्ध करने जा पहुँचा। लेकिन जब रावण तो बालि अपने राज्य में नहीं था। सो बालि की पत्नि तारा, उसके पिता सुषेण, युवराज अंगद और उसके भाई सुग्रीव सभी ने रावण को समझाते हुए कहा कि- बालि इस समय सन्ध्या उपासना करने के लिए नगर से बाहर गए हुए हैं और सम्पूर्ण वानर सेना में बालि के अलावा कोई भी इतना पराक्रमी और बलशाली नहीं है जो आपके साथ युद्ध कर सके। इसलिए जब तक बालि नहीं आ जाता, तब तक आप प्रतीक्षा करें।
लेकिन रावण तो बालि के साथ युद्ध करने के लिए बड़ा उतावला हो रहा था, साे सुग्रीव ने रावण से कहा कि- राक्षसराज रावण… आप सामने जो ये शंख जैसी हड्डियों के ढेर देख रहे हैं, वो सारी हड्डियाँ उन वीरों की हैं, जो बालि के साथ युद्ध करने की ईच्छा से आए थे। इसलिए यदि आप कोई अमृत पान करके नहीं आए हैं, तो अच्छा यही होगा कि बिना बालि से युद्ध किए हुए लौट जाऐं क्योंकि यदि आप किसी अमृत का पान करके भी आए हैं, तब भी जिस समय बालि से युद्ध करेंगे, वह समय आपके जीवन का अंतिम समय होगा।
लेकिन यदि आप बिना युद्ध किए लौटना नहीं चाहते और मरने की बहुत ही ज्यादा जल्दी पडी है, तो आप दक्षिण सागर के तट पर चले जाऐं। वहीं आपको बालि के दर्शन हो जाऐंगे।
सुग्रीव के द्वारा बालि की इतनी प्रसंशा सुनकर रावण के क्रोध का ठिकाना न रहा था, इसलिए वह तुरंत ही अपने पुष्पक विमान पर सवार होकर दक्षिण सागर के उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ बालि सन्ध्योपासना कर रहे थे। रावण ने सोचा कि- क्यों न मैं बालि पर चुपके से आक्रमण कर दूँ क्योंकि ऐसा करने पर विजय मेरी ही होगी?
ऐसा सोचकर रावण बालि पर आक्रमण करने के लिए चुपचाप आगे बढने लगा लेकिन बालि ने रावण को पहले से ही आते हुए देख लिया था और जैसे ही रावण ने बालि को पकडने के लिए हाथ बढाया, चौकन्ने बालि ने रावण को पकडकर उसे अपनी काँख में दबा लिया और आकाश में उड़ गए।
रावण अपना बचाव करने के लिए बालि को नाखूनों से कचोटते रहे परंतु बालि काे तो वह कचाेटना एक प्रकार से बच्चों के कचोटने जैसा ही महसूस हुआ। रावण को बालि से छुडाने के लिए उसके मन्त्री, सिपाही व अनुचर अादि भी बालि के पीछे शोर मचाते हुए दौडे, बालि पर अश्त्र-शस्त्रों से हमला भी किया, लेकिन कोई भी बालि के पास न पहुँच सका।
अन्त में अपनी सन्ध्योपासना संपूर्ण करने के लिए बालि, रावण को अपने साथ लेकर उड़ते हुए पश्चिमी सागर के तट पर पहुँचे और अपनी संध्योपासना पूरी कर दशानन रावण को अपनी कांख में दबाए हुए ही किष्किन्धापुरी लौटे। किष्किन्धा पुरी पहुँचकर बालि ने अपने उपवन में एक आसन पर बैठकर रावण को अपनी काँख से निकाला और पूछा- अब बताओं कौन हो तुम और मेरे पास क्यों आये थे?
अब रावण कैसे बताता कि वह बालि से युद्ध करने आया था क्योंकि बालि का बल देखकर वह काफी आश्चर्यचकित था। लेकिन फिर भी रावण ने बताया कि- मैं लंका का राजा रावण हूँ और मैं यहाँ आपके साथ युद्ध करने के लिए आया था, लेकिन अब, जब मैंने आपका अद्भुत बल देख लिया है, मैं आपके साथ मित्रता करना चाहता हूं।
लेकिन बालि ने जवाब दिया कि- तुम मुझसे युद्ध करने आए थे, सो मैं कैसे मान लूं कि तुम वास्तव में मेरे साथ सच्ची मित्रता निभाओगे?
बालि के इस सवाल के जवाब में रावण ने अग्नि की साक्षी देकर बालि से मित्रता निभाने का वचन दिया और बालि व रावण के बीच अच्छी मित्रता हो गई। माना जाता है कि बालि ने पूरे 6 महीने तक रावण को अपनी कांख में दबाकर रखा था और रावण अपनी सारी शक्ति लगाकर भी अपने आपको बालि से स्वतंत्र नहीं करवा पाया था।
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हालांकि रावण जन्म से ही उद्दण्डी, झगड़ालु व अहंकारी प्रकृति का व्यक्ति था लेकिन वह वेदो, पुराणों व शास्त्रों का प्रकाण्ड पण्डित तथा संस्कृत का ज्ञाता था, इसलिए वह काफी समझदार व विद्वान भी था और जानता था कि शक्तिशाली व्यक्ति से युद्ध कर उसे परास्त करने से ज्यादा अच्छा ये है कि उसके साथ मित्रता कर अपनी शक्ति को और अधिक बढाया जाए।
इसलिए रावण चाहे जैसा भी था, उसके इस गुण को हमें हमारे जीवन में जरूर उतारना चाहिए और किसी शक्तिशाली व्यक्ति से शत्रुता करने की बजाय उसके साथ मित्रता कर अपनी शक्ति व सामर्थ्य काे बढाना चाहिए।
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