Small Moral Stories in Hindi – गांव के साहुकार ने रामलाल को किसी दूसरे गाँव से कुछ गेंहू की बोरियाँ लाने का आदेश दिया। दूसरे दिन सुबह जल्दी ही रामलाल अपनी बैलगाड़ी लेकर निकल गया। बरसात का समय था।
रामलाल ने जल्दी से बोरियाँ बैलगाड़ी में भरी और वापस अपने गाँव की तरफ चल दिया। अचानक रास्ते में वर्षा शुरू हो गई। उसने जल्दी से बैलगाड़ी को एक पेड़ के नीचे लगाया और वर्षा के रूकने का इंतजार करने लगा।
जब कुछ देर बाद वर्षा रूक गई, तो रामलाल वापस अपनी बैलगाड़ी लेकर गाँव की ओर चलने लगा। वर्षा की वजह से चारों तरफ गड्ढों में पानी भर गया था। कच्ची सड़क वर्षा की वजह से फिसलन भरी हो गई थी। वैसे तो रामलाल बड़ी ही सावधानी से अपनी बैलगाड़ी चला रहा था परन्तु अचानक रास्ते में एक गड्ढा आया और बैलगाड़ी का पहिया गड्ढे में फंस गया।
राम उस बैलगाड़ी से नीचे उतरा और देखा कि बैलगाड़ी का पहिया गड्ढे में फंसा पड़ा है। राम बड़ा परेशान हुआ क्योंकि एक तो बारीश का मौसम और ऊपर से बैलगाड़ी भी गड्ढे में फंस गई थी। उसे इस बात की बड़ी चिन्ता होने लगी थी कि यदि फिर से वर्षा होने लगी, तो उसके सारे गेंहू भीग जाऐंगे और साहुकार के इस नुकसान का भुगतान उसे करना होगा।, जो कि उसके लिए सम्भव नहीं था।
वह बैलगाड़ी को गड्ढे से बाहर निकालने के लिए किसी से मदद माँगने के लिए इधर-उधर देखने लगा। लेकिन उसे कोई भी नहीं दिखाई दिया। जबकि बैलों द्वारा अपनी बैलगाड़ी को कीचड़ भरे गड्ढे से निकाल पाना सम्भव प्रतीत नहीं हो रहा था। अन्त में वह दु:खी होकर एक तरफ जा कर बैठ गया और मन ही मन अपने भाग्य को कोसने लगा।
कुछ देर बार उसी रास्ते से कुछ सन्यासी निकले और उनकी नजर रामलाल पर पड़ी जो अपना माथा पकड़े रास्ते के किनारे बैठा हुआ था। सन्यासी ने रामलाल के पास जाकर उसकी परेशानी का कारण पूछा।
रामलाल ने काफी निराशाभरे व चिड़चिढे शब्दों में कहा, “महाराज… वर्षा का मौसम है और मेरी बैलगाड़ी का पहिया गड्ढे में फँस गया है लेकिन मेरा नसीब भी इतना ख़राब है कि कोई व्यक्ति भी नजर नहीं आ रहा, जो इस बैलगाड़ी को गड्ढे से निकालने में मेरी मदद कर सके। ईश्वर ने मेरे साथ बहुत अन्याय किया है। पहले से ही इतना दरिद्र बनाया है कि दो वक्त के भोजन की व्यवस्था भी मुश्किल से ही हो पाती है। ऐसे में यदि वर्षा की वजह से ये गेहूं खराब हो गए, तो जिन्दगी भर साहुकार के यहाँ बेगार करने के बावजूद कर्जा चूकता नहीं होगा।“
सन्यासी ने रामलाल की बातें सुनी और गड्ढे में फंसी बैलगाड़ी को देखने के बाद उससे पूछा, “क्या तुमने खुद अपनी गाड़ी निकालने की कोशिश की?“
रामलाल ने जवाब दिया, “नहीं… नहीं महाराज, मैंने खुद तो कोशिश नहीं की। जब दोनों बैल मिलकर भी बैलगाड़ी को गड्ढे से बाहर नहीं निकाल सके, तो मैं उसे कैसे निकाल सकता हुँ।“
सन्यासी ने कहा, “जब तुमने कोशिश ही नहीं की, तो फिर तुम्हें अपने भाग्य को बुरा-भला कहने व भगवान को दोष देने का कोई अधिकार नहीं है।“
इतना कहकर बिना रामलाल की कोई मदद किए हुए सभी सन्यासी जाने लगे।
रामलाल को सन्यासियों की बात समझ में आई और उसे अपनी गलती का अहसास भी हुआ। वह अपनी जगह से उठा और गड्ढे में फंसे पहिए को निकालने की कोशिश करने लगा व कुछ ही क्षणाें में बैलगाड़ी का पहिया गड्ढे से बाहर निकल आया।
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इस छोटी सी कहानी का सारांश यही है कि हम सभी अक्सर रामलाल की तरह ही व्यवहार करते हैं और अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए किसी दूसरे की मदद का इन्तजार करते रहते हैं तथा विभिन्न तरीकों से अपने भाग्य को कोसते रहते हैं। जबकि सच्चाई ये है कि हमारी समस्याओं का सबसे बेहतर समाधान हमारे ही पास होता है और ईश्वर भी उसी की मदद करता है, जो अपनी समस्या से छुटकारा पाने के लिए स्वयं अपनी मदद करने की कोशिश करता है।
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