
Shravan Mahina
Shravan Mahina- आषाढ़ की पूर्णिमा यानि गुरु पूर्णिमा के बाद श्रावण मास की शुरुआत हो जाती है। श्रावन मास का समापन रक्षाबंधन के दिन होगा। शास्त्रों के अनुसार श्रावन मास भगवान शिव का मास है। सनातन धर्म के हिन्दी पंचांग के अनुसार सभी मासों में श्रावण मास का विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव की अराधना का महीना होता है।
श्रावण मास को सावन माह या मासोत्तम भी कहते है। शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है। श्रवण नक्षत्र और सोमवार से भगवान शिवशंकर का गहरा संबंध है। श्रावन मास का प्रत्येक दिन किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुड़ा होता है।
श्रावन मास का महत्व
श्रावन मास में शिव आराधना का विशेष महत्व होता है। जिस तरह से गर्मी के थपेडों को सहती उई सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति एवं आनंद को पाती है उसी प्रकार प्राणियों की इच्छाओं को सूनेपन को दूर करने के लिए श्रावन मास भक्ति और पूर्ति का अनुठा संगम दिखाता है और सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने की कोशिश करता है।
भगवान शिव इसी श्रावन मास में अनेक लीलाएं करते हैं। श्रावन मास में रूद्र-गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शिव पंचाक्षर मंत्र आदि से भगवान शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है।
शिवलिंग पर जलाभिषेक का महत्व
श्रावण मास में ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ती होती है। श्रावण मास में जलाभिषेक के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है।
एक समय देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया तो,सागर में से अनेक पदार्थ उत्पन्न हुए और अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष भी निकला उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्रार्थना करने लगे, तब भगवान शिव ने सभी की प्रार्थना पर सृष्टि को बचाने के लिए कालकूट विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया। कालकूट विष पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया। इसी कारण भगवान शिव का एक नाम निलकंठ भी पड़ा। जिस समय सागर मंथन हुआ था वह समय श्रावण का था। कालकूट विष की तपन को शांत करने के लिए देवताओं ने गंगाजल से भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक किया था। उसी समय से भगवान शिव का जलाभिषेक होने इसी कारण से भगवान शिव को जलाभिषेक बहुत पसन्द है।
भगवान शिव का जलाभिषेक
श्रावण माह के समय भक्त शिवालय में या अपने घरों में प्राण-प्रतिष्ठित का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक करते हैं। भगवान शिव को रुद्राभिषेक अत्यंत प्रिय है। श्रावन मास में शिवलिंग का अभिषेक महाफलदायी माना गया है।
- जलाअभिषे से वर्षा और शितलता कि प्राप्ति होती है।
- दूध और घी से अभिषेक करने पर योग्य संतान कि प्राप्ति होती है।
- गन्ने के रस से अभिषेक करने पर धन-संपदा की प्राप्ति होती है।
- कुशोदक से अभिषेक करने पर सभी प्रकार की व्याधि शांत होती है।
- दही से अभिषेक करने पर पशु-धन की प्राप्ति होती है।
- शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
श्रावन का पहला शनिवार
श्रावन का पहला शनिवार बहुत ही महत्व रखता है। क्योंकि शनिदेव के गुरु है भगवान शिव हैं। जिन जातको की कुंडली में शनि से संबंधित कोई दोष हो उसे दूर करने का अच्छा मौका होते हैं। सावन के पहले शनिवार को कुछ उपाय करने से शनि के दोष दूर हो सकते हैं। श्रावन का पहले शनिवार को भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन शिव पूजा में नीले रंग के फूल का प्रयोग करना उत्तम रहता है। इसलिए श्रावन के पहले शनिवार को शिव की पूजा में विष्णुकांता का फूल प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शनि भी प्रसन्न होते है और उनके सारे दोषो को भी हर लेते है।
श्रावन मास इच्छओं की पूर्ति का समय होता है। श्रावण में शिव भक्तों के लिए भगवान शिव का दर्शन एवं जलाभिषेक, शिव उपासना से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।
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