Short Stories with Moral Lesson – एक समय एक सैनिक घने जंगल से जा रहा था। सैनिक बहुत ही लालची था। वह जिस किसी स्थान पर जाता, वहाँ अपने राजा का नाम लेकर कहता कि, “राज्य के खजाने में धन की कमी हो गई है।
इसलिए राजा के आदेशानुसार आप गाँव वाले जो कुछ भी राज खजाने में कर के रूप में देना चाहें, दे सकते हैं। इससे आप लोगो का ही भला होगा।“
गाँव के लोग भोले-भाले थे। इसलिए वे उस सैनिक की बात मान कर अपने घर में जो कुछ होता, लाकर उस सैनिक को सोंप देते।
सैनिक के दिन बडे ही मजे से कट रहे थे। एक दिन वह सैनिक किसी दूसरे गाँव जा रहा था कि अचानक उसे जंगल के बीच एक आवाज सुनाई दी।
“रूक जाओ, रूक जाओ।”
सैनिक आवाज सुनकर थोड़ा घबरा गया लेकिन फिर भी उसने अपने चारों ओर देखा, तो उसे वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया। कुछ देर बाद सैनिक को फिर वही आवाज सुनाई दी।
“रूक जाओ, रूक जाओ।”
अब सैनिक थोड़ा और घबरा गया परन्तु हिम्मत कर के उसने चारों और देखा। तभी एक यक्ष दिखाई दिया जो कि पेड़ के ऊपर बैठा था। यक्ष ने सैनिक से कहा, “ऐ सैनिक, तुम जिस पेड़ के नीचे से अभी-अभी गुजरे हो, उसकी जड़ में सात कलश रखे हुए हैं। उन कलशों में से एक को छोड़ बाकी सभी में स्वर्ण है। अगर तुमको ये स्वर्ण चाहिए तो एक काम करना पड़ेगा।“
सैनिक तो लालची था ही, सो उसने यक्ष से पूछा कि, “मुझे क्या करना होगा?“
यक्ष ने कहा, “तुमको स्वर्ण से भरे छ: कलशों के साथ वह सातवां कलश भी अपने साथ ले जाना होगा, जो आधा खाली है। उस सातवे कलश को स्वर्ण से भरना होगा, और अगर तुम सातवा कलश भरने में नाकाम रहे, तो जो स्वर्ण तुमने इसमें भरा होगा वह भी तुम्हे नहीं मिलेगा।“
सैनिक यक्ष की बात मान गया और सातों कलश घर ले आया व अपनी पत्नि से कहा कि, “अगर हम ये सातों कलशों को स्वर्ण से भर देंगे तो ये सातों कलश हमारे हो जाऐंगे।”
सैनिक की पत्नि ने सैनिक से कहा, “आप राजा के सैनिक है, आपको दूसरो को कष्ट दे कर धन नहीं लेना चाहिए। आपको तो दूसरों की सहायता करनी चाहिए। वैसे भी हमारे पास तो सब कुछ पहले से ही है। हमें लालच नहीं करना चाहिए। आप यह कलश वापस रख आए।“
लेकिन सैनिक ने अपनी पत्नि की एक न सुनी बल्कि अपने घर में रखे सारे स्वर्ण लेकर आ गया और उस आधे कलश को भरने लगा, परन्तु वह कलश तो खाली का खाली ही रह गया।
सैनिक को इस बात का बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह सातवां कलश भर क्यों नहीं रहा है। इसलिए वह सातों कलशों को वापस उस पेड़ के पास ले गया जहाँ वह यक्ष रहता था और यक्ष को पुकार कर पूछा कि, “ऐ यक्ष… ये सातवां कलश तो भरने का नाम ही नहीं ले रहा है। मैंने अपने घर का सारा स्वर्ण इसमें भर दिया है, लेकिन यह कलश अभी भी खाली का खाली क्यों है?“
यक्ष जोर से हंसकर बोला, “अरे मूर्ख सैनिक… यदि इन कलशों का स्वर्ण पाना इतना आसान होता, तो ये यहाँ पर कैसे रह पाते? इन्हे खोल कर देख इन सभी छ: कलशों में पीतल भरा है और जिस आधे कलश को तू भरने की कोशिश कर रहा है, वह तेरा लालची दिमाग है, जो कभी नहीं भर सकता और जो स्वर्ण तूने इसमें भरा है, वह भी लालच का सौदा है, जिसे तू हार गया है।“
यक्ष की यह बात सुनकर सैनिक बड़ा दु:खी हुआ क्योंकि उसका स्वयं का संग्रह किया गया स्वर्ण भी उसने गंवा दिया था।
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