
कैसे करे महाशिवरात्रि का व्रत?- Shivratri Fast
Shivratri Fast- महाशिवरात्रि पर उपवास का भी अपना विशेष महत्व हैं। उपवास का अर्थ होता है भगवान का वास। जिस प्रकार से वंसन्त ऋतुओं का राजा है उसी प्रकार से शिवरात्रि व्रत व्रतों का राजा हैं। महाशिवरात्रि व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण हैं। महाशिवरात्रि व्रत से सदा सर्वदा भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौराणिक पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत कोई भी कर सकता है, माना जाता है कि महाशिवरात्रि व्रत करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता हैं, और कुँवारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती हैं।
महाशिवरात्रि व्रत से व्यक्ति के जन्मांतरों के पाप नाश हो जाते हैं। व्यक्ति इस लोक में सुख भोगकर अन्त में शिवधाम को प्राप्त करता है। महाशिवरात्रि व्रत से भगवान शिव जल्दी ही प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
महाशिवरात्रि व्रत विधी-
महाशिवरात्रि व्रत प्रात:काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त तक करना चाहिए। रात्रि के चारों पहर भगवान शिव की पूजा-अर्चना के साथ रात्रि जागरण करना चाहिए।
ईशान संहिता में महाशिवरात्रि व्रत के महत्व का उल्लेख किया गया है।
॥शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्।
आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥
सर्वप्रथम शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। उसके बाद गंगाजल, दूध, दही, घी, मधु, शक्कर से स्नान कराकर उन पर चंदन लगावे और फिर फूल, बेलपत्र अर्पित करे और अन्त में धूप, दीप से आरती करनी चाहिए। अभिषेक करते समय शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए। या शिवगायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
नमः शिवाय तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
जलाभिषेक के बाद निम्न मंत्रोंसे भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने चाहिए जो कि भगवान शिव को बहुत प्रिय हैं।
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजयेदर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय॥
मंत्रों उच्चारण के बाद शिव कथा का पाठ करना चाहिए, जिनमें किसी भी कथा का पाठ किया जा सकता हैं। जैसे- शिकारी चित्रभानु की कथा और प्रथम शिवलिंग के प्राक्टय होने की कथा या शिव पुराण में आई कोई भी कथा, अन्त में हो सके तो शिवतांड़व स्त्रोंत का पाठ करना चाहिए।
महाशिवरात्रि व्रत के लाभ-
महाशिवरात्रि व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं। शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है। साधु लोगों के लिए महाशिवरात्रि एक वरदान होती हैं।
महाशिवरात्रि में साधना, गुरूमंत्र दीक्षा, शिवलिंग स्थापना आदि के लिए विशेष सिद्धिदायक मुहूर्त होता है। गुरू-शिष्य परम्परा के अनुसार साधक महाशिवरात्रि में साधना करते हैं। महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धिदात्री होती हैं।
महाशिवरात्रि व्रत के करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। किसी कारण से रूके हुए मंगल कार्य सम्पन्न होते हैं, कन्याओं के विवाह में आई बाधा दूर होती है।
महाशिवरात्रि व्रत से आध्यात्मिक लाभ तो है ही, लेकिन शारीरिक लाभ भी होते हैं। जैसे-
व्रत करने से हमारे शरीर की आंतों को थोड़ा आराम मिलता है जिससे शरीर के अंदर होने वाली ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया तथा शरीर से विषैले तत्व निकलने की प्रक्रिया तेज होती है। व्रत करने से एक नई ताकत और उमंग का अहसास होता है। व्रत करने से मानसिक रूप से भी शांति और शक्ति मिलती है।
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