
शिव चालीसा – Shiv Chalisa in Hindi
पुराणों के अनुसार विश्व की रचना ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मिल कर की हैं, जिनमें ब्रह्मदेव ने विश्व का निमार्ण किया, भगवान विष्णु पालन-पोषन करने वाले हैं और भगवान शिव संहार करने वाले।
भगवान शिव को प्रसन्न करने का केवल एक ही सरल उपाय है शिव चालीसा, जिसके पाठ मात्र से आन्नद की अनुभूति होती है। शिव चालीसा पाठ के जरीए भगवान शिव से संसार के सारे दुखों को भुलाकर अषीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
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शिव चालीसा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
हे गिरिजा पुत्र श्रीगणेश आपकी जय हो। आप मंगलकारी हैं, विद्वता के दाता हैं, अयोध्यादास की प्रार्थना है कि आप ऐसा वरदान दे, जिससे सारे भय समाप्त हो जांए।
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
जय हो गिरिजा पति कि, आप दीन-दुखियों और संतों पर दया करने वाले हैं, आपके ललाट पर चंद्रमा और कर्ण में नागफनी की कुंडल अतिशोभायमान हैं।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
आपके सिर की जटाओं से गंगा बहती है, आपके गले में मानव खोपड़ियां की माला, बाघ चर्म के वस्त्र आप पर बहुत अच्छे लगते हैं, आपको देख कर नागों का मन आपकी ओर आकर्षित होता हैं।
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
माँ मैनावंती की दुलारी माँ पार्वती आपकी पत्नी के रुप में अलौकिक हैं। आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी आकर्षक बनाती हैं। आप सदा शत्रुओं का नाश करने वाले हो।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे।
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
जिस प्रकार से सागर के बीच कमल होता हैं वैसे ही आपके पुत्र गणेश और सेवक नंदी है, कार्तिकेय, और अन्य गणों की उपस्थिति से आपकी छवि का वर्णन नहीं किया जा सकता हैं।
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
देवताओं ने जब भी आपको पुकारा है, तुरन्त आपने उनके दुखों का निवारण किया। उपद्रवी राक्षक तारक के उत्पात से परेशान देवताओं ने जब आपकी शरण ली, तो आपने तुरन्त तरकासुर को मारने के लिए कार्तिकेय को भेजा। आपने ही जलंधर नाम के असुर का संहार किया। आपके कल्याणकारी यश को पूरा संसार जानता हैं।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई।
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
त्रिपुरासुर के साथ युद्ध कर उसका संहार किया, और सभी पर अपनी कृपा की। भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं।
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
आपके समान कोई दानी नहीं हैं, सेवक आपकी सदा से स्तुति करते आए हैं। आपका भेद केवल आप ही जानते हैं, क्योंकि आप अनादि काल से विद्यमान हैं, आप अकथ हैं। आपकी महिमा तो वेद भी नहीं कर सकते हैं।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला।
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
समुन्द्र मंथन में जब विष भरा कलश निकला तो समस्त दानव और देवता ड़र गऐ, लेकिन आपने उस विष को अपने कंठ में ग्रहन कर विश्व की रक्षा कि और इसलिए आपको नीलकंठ कहा जाने लगा।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
भगवान राम ने जब आपकी पूजा-प्रर्थना की और लंका जीत कर विभीषण को दे दी। जब भगवान राम आपको कमल अर्पण कर रहे थे तो आपके कहने पर ही राम की परीक्षा लेने के लिए देवी ने एक कमल को ओक्ष्ल कर दिया और भगवान राम ने अपनी आँखो को नयनकमल बना कर पूजा पूरी करनी चाहि तो आपने रोक कर उनकी मनोंकामना पूरी की।
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी, सभी पर कृपा करने वाले अनेक प्रकार के दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इस विनाशकारी स्थिति से मुझे बाहर निकालो, त्रिशुल लेकर इन सभी दुष्टों का नाश कर दो। मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
इस संसार में माता-पिता, भाई-बंधु, नाते-रिश्तेदार सब होते हैं, लेकिन संकट में कोई पुछता भी नहीं है। स्वामी, बस आपकी ही आस है, आकर मेरे संकटों का नाश करोजो जैसी मनोंकामना के लिए आपकी पूजा करता है उसकी वैसी ही मनोंकामना को पूरी करते हैं। हम अज्ञानी है आपकी पूजा करने में कोई गलती हो जाए तो हमें क्षमा कर देना।
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
शिवशंकर संकटों का नाश करने वाले हो, मंगल करने वाले विघ्नो का नाश करने वाले हो, योगी यति ऋषि मुनि सभी आपका ध्यान लगाते हैं। शारद नारद सभी आपको शीश नवाते हैं।
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
आपको मैं नमन करता हूँ नम: शिवाय। ब्रह्म आदि देव भी आपके भेद को जान नहीं सकते है, जो भी इस पाठ को मन लगाकर करेगा, शिवशम्भु उनकी रक्षा करेंगें।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी।
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
कर्ज में डूबे को भी इस पाठ के करने से मुक्ति मिल जाती है, और उसे समृद्ध बना देते हैं। किसी के संतान नहीं होती है तो इस पाठ को करने से उसकी इच्छा को भगवान शिव पूरा करते हैं। किसी पण्डित से त्रयोदशी का व्रत, हवन और ध्यान से प्रत्येक प्रकार के कष्ट नष्ट हो जाते है।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे,
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे।
अयोध्यादास आस कहैं तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
धूप, दीप, नैवेद्य चढाकर भगवान शंकर के सामने जो इस पाठ को सुनाता है, उसके जन्म-जन्म के पापों का नाश हो जाता है। और मृत्यू के बाद मोक्ष को प्राप्त करता है। अयोध्यादास यही आशा कर रहा है और हमारे सभी दुखों को दूर करो।
॥दोहा॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
प्रत्येक दिन नियमानुसार उठकर प्रात:काल में इस चालीसा का पाठ करने से सभी मनोंकामना पूरी करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
मंगसिर मास की छठी तिथि, हेमंत ऋतु संवत 64 में भगवान शिव की स्तुति में यह चालीसा लोगों के कल्याण के लिए पूर्ण की गई।
लाभ-
शिव चालीसा का पाठ करते हुए शिवलिंग पर काला तिल, दूध और जल चढ़ाने से घर में शांति और अकाल मृत्यु का डर नहीं रहता है और दूध जल से अभीषेक करते हुए शिव चालीसा का पाठ करने से धनागमन होता हैं।
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