Raksha Bandhan Essay in Hindi- रक्षाबंधन का त्योहार प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह दिन ठिक गुरु-पूर्णिमा के एक मास बाद आता है। रक्षाबंधन हिन्दू पंचाग के अनुसार चौथे माह को आता है। श्रावण मास की इस पूर्णिमा को श्रावण-पूर्णिमा भी कहते है। ‘’रक्षाबंधन ‘’ हिन्दुओं का प्रसिद्द त्योहार है। इसे ‘राखी‘ का त्योहार भी कहते हैं। ’रक्षाबंधन सम्पूर्ण भारतवर्ष में बहुत ही खुशी के और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
रक्षाबंधन केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि भारत की प्रथा का प्रतीक है। रक्षाबंधन का हमारे देश में बड़ा महत्त्व है। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राक्षासुत्र बांधती हैं और भाइयों के प्रति अपना प्यार और स्नेह प्रदर्शित करती हैं साथ ही अपने भाई की लम्बी उम्र की प्रथाना करती है। भाई इस अवसर पर अपनी बहन को उपहार देते हैं और साथ ही वचन देते है कि वह किसी भी प्रकार से अपनी बहन की रक्षा करेगा।
वैसे तो भारत में भाई-बहन के बीच प्यार और स्नेह की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है, लेकिन रक्षाबंधन का दिन ही बहुत खास है। रक्षाबंधन धार्मिक ही नही ऐतिहासिक महत्व भी है इसलिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल से चला आ रहा यह त्योहार आज भी बहुद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। त्योहार चाहे कोई भी हो, परिवार में प्यार और खुशियाँ बढ़ाने के लिये ही मनाया जाता है। रक्षाबंधन का त्योहार भी ऐसे ही त्योहारों में से एक है। यह भाई और बहन के रिश्ते का त्योहार है।
रक्षाबंधन का त्योहार ही एक ऐसा त्योहार है, जिसका संबंध भारत के उत्तर और पश्चिमी क्षेत्रो से है लेकिन देश के सभी राज्यों में इस त्योहार को बहुत से समुदाय के लोग ख़ुशी से मनाते है। धार्मिक त्योहार भले ही अलग-अलग मनाये जाते हो लेकिन रक्षाबंधन का त्योहार पुरे देश में एकसाथ मनाया जाता है।
रक्षासूत्र बाँधने का महत्व
सभी धार्मिक अनुष्ठानों में आज भी यजमान को ब्राह्मण एक मंत्र पढकर रक्षासूत्र बाँधते हैं।
‘’येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।‘’
जिसका अर्थ होता है कि-
जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली राजा बली को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं आपको बाँध रहा हुँ, आप अपने वचन से कभी विचलित न होना।
रक्षासूत्र क्यों बाँधते हैं?
रक्षासूत्र बाँधनें के पीछे अनेक पौराणिक कथाऐ प्रचलित है, जिनमें एक बहुत ही महत्वपूण क्था है, राजा बलि और भगवान वामन अवतार की।
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारदजी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर राजा बलि को रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
रक्षाबंधन को महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से जाना जाता है। जबकी तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उङिसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनी अवित्तम के नाम से पुकारते हैं। कई स्थानो पर इस दिन नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। रक्षाबंधन के दिन ही बाबा बर्फानी अमरनाथ की यात्रा पूर्ण होती है, जिसकी शुरुवात गुरु पूर्णिमा से होती है।
रक्षाबंधन के बारे में रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि, रक्षाबंधन केवल भाई-बहन का त्योहार नही है। रक्षाबंधन इंसानियत का त्योहार है, भाई-चारे का त्योहार है। जहाँ जातिय और धार्मिक भेद-भाव भूलकर हर कोई एक दूसरे की रक्षा कामना हेतु वचन देता है और एक रक्षासुत्र में बँध जाता है। जहाँ भारत माता के पुत्र आपसी भेद-भाव भूलकर भारत माता की स्वतंत्रता और उसके उत्थान के लिए मिलजुल कर प्रयास करते।
रक्षाबंधन ही एक ऐसा त्योहार है, जिसके लिए हमारे देश के डाकघर में एक विशेष लिफाफे को बहनों के लिए जारी किया गया है।
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