Pitra Dosh Nivaran in Hindi Lal Kitab- हिंदू शास्त्रों के अनुसार हमारे जो पूर्वज अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में या किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है।
पूराणों की ऐसी मान्यता है कि सावन मास की पूर्णिमा से ही पितृ मृत्यु लोक में आ जाते हैं और नई अंकुरित कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं।
श्राद पक्ष में पितृ के नाम से जो भी समान हम ब्राह्मण को दान करते है जैसे- भोजन, आसन, कपड़े, चप्पल, छाता, आदि, उसे पितृ सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। पूराणों की ऐसी मान्यता है कि केवल तीन पीढ़ियों का श्राद्ध और पिंड दान ही करने का ही विधान है।
मृत-पूर्वजों का श्राद कैसे करे?
मृत-पूर्वजों का श्राद करने के लिए अगर हो सके तो हमें कोई तीर्थ या पवित्र जलाशय को चुनना चाहिए और जलाशय में स्नान कर वहां किसी विद्वान ब्राह्मण से पितृ तर्पण व श्राद्ध कर्म करनावा चाहिए। अपने घर में पितरों की तस्वीर की गंध, अक्षत, काले तिल चढ़ाकर या पीपल के वृक्ष में जल अर्पित कर नीचे लिखे पितृस्तोत्र का पाठ करना चाहिए अगर आप पाठ न कर सके तो किसी विद्वान ब्राह्मण से पितृस्तोत्र का पाठ करवाना चाहिए।
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु पोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥
उपहूताः पितरः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥
॥ ओम शांति: शांति:शांति:॥
पितृस्तोत्र पाठ के बाद अपने पूवजों से सुख, शांति, सफलता की कामना कर अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मणों, गरीबों को दान देना चाहिए। वेदों में लिखा है कि श्राद्ध पक्ष में सभी शुभ, और मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। पितृरों का श्राद्ध दोपहर के समय करना चाहिए एंव श्राद में सर्वप्रथम गाय फिर कौआ और अंतिम में कुत्ते का ग्रास निकालना चाहिए। क्योंकि यह सभी जीव यमदेवता के बहुत नजदीक माने गए हैं। गाय का ज्यादा महत्व है क्योंकि गाय को वैतरणी पार कराने में सहायक माना जाता है।
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