
माँ भगवती की सरल पूजा विधि- Navratri Puja Vidhi in Hindi
संसार के सभी सुखों को देने वाली माँ जगदम्बा की पूजा दो प्रकार से कि जाती हैं पहली हैं सात्विक पूजा जिसे वैदिक पूजा भी कहा जाता हैं, और दूसरी हैं तामसी पूजा जिसे तांत्रिक पूजा भी कहा जाता हैं। गृहस्त जीवन में रहने वाले व्यक्तियों को वैदिक पूजा ही करनी चाहिए जो सरल और बहुत फलदायी होती हैं।
आईऐ जानते हैं। माँ जगदम्बा की वैदिक पूजा की विधि- सर्वप्रथम पूर्व दिशा या उत्त्र दिशा की तरफ मूंह करके रेशम, कम्बल, कुशा के आसन पर बैठे। इसके बाद निम्न मन्त्र से पूजा की सामग्री और स्वंय को पवित्र करें।
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाहमभ्यन्तर: शुचि:
पूजन प्रयोग में ली जाने वाली सामग्री–
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, मोली, इत्र, साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के, पंचरत्न, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश ढकने के लिए मिटटी का दीया, अक्षत, नारियल, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा।
माँ दुर्गा की चौकी स्थापित करने की विधि–
नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में घटस्थापना को करना चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध पानी से साफ कर लेना चाहिए और उसके बाद लकड़ी के बाजोट पर लाल रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए और इस पर अक्षत से अष्टदल बनाना चाहिए।
उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। मां दुर्गा की मूर्ति के बाईं तरफ श्री गणेश की मूर्ति रखें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए।
सर्वप्रथम निम्न मन्त्र से अखण्ड दिपक जलाना चाहिए।
ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते।
मंत्र पढ़ते हुए दीप प्रज्ज्वलित करें।
श्री गणेश पूजन-
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है। हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर निम्न मन्त्रों से गणपति का ध्यान करें।
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
भगवान गणेश का आवाहन-
ॐ गणानां त्वा गणापतिहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ग हवामहे वसो मम।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
कलश स्थापना विधि-
किसी भी पूजन या शुभ कार्य में कलश की बड़ी महिमा बताई गई है। कलश पूजन सुख व समृद्धि को बढ़ाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं। जैसा की वैदों में लिखा हैं।-
कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थतो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
बाजोट की चोकी पर बने अक्षत से अष्टदल पर मिट्टी के एक पात्र में शुद्व मिट्टी ले और इसे अष्टदल पर रख दे इस मिट्टी के पात्र में थोड़ी जौ ड़ाल दे और जल से भरा कलश स्थापित करें। इस कलश में शतावरी जड़ी, हलकुंड, कमल गट्टे व चांदी का सिक्का डालें और नारियल पर लाल कपड़ा लपेट कर उसको मोली से बांध दे, नारियल को जल से भरे कलश पर सदैव इस प्रकार रखे कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। निम्न मत्रों से कलश में देवी-देवताओं का आवाहन करे।
कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थतो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुंधराः।
अर्जुनी गोमती चैव चंद्रभागा सरस्वती ॥
कावेरी कृष्णवेणी च च गंगा चैव महानदी।
ताप्ती गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥
नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः।
पृथिव्यां यान तीर्थानि कलशस्तानि तानि वैः ॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीथर्यानि जलदा नदाः सरितस्तीथर्यानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम कामस्य दुरितक्षयकारकाः ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री शांति पुष्टिकरी तथा ॥
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ॥
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।
नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधनाथाय नमो॥
ॐ अपां पतये वरुणाय नमः।
ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः।
माँ जगदम्बा की पूजा-
सर्वप्रथम माँ जगदम्बा का निम्न मन्त्र से ध्यान करें।
सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम माँ दुर्गा की मूर्ति या दुर्गा यन्त्र को आसन दे और फिर माँ दुर्गा का आवाहन करें। माँ दुर्गा को वस्त्र, आभूषण, पुष्पमाला, सुगंधित इत्र अर्पित करें, कुमकुम, अष्टगंध का तिलक करें। धूप व दीप अर्पित नहीं करें। माँ दुर्गा को लाल गुड़हल के फूल अर्पित करना चाहिए और दूर्वा कभी भी न चढ़ाए। अपनी श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं। नेवैद्य अर्पित करें। और 108 बार निम्न मन्त्र से माँ दुर्गा की आराधना करें।
‘’ऊँ दुं दुर्गायै नमः‘’
इसके बाद निम्न क्षमा मन्त्रों का पाठ करें।
न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति॥
परित्यक्तादेवा विविधविधिसेवाकुलतया मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण्॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥
संसार के सभी सुखों को देने वाली माँ भगवती कि पूजा मात्र से ही मनुष्यों की समस्त कामानाआें को पुरा करने वाली हैं। जैसा की दुर्गा सप्त्शती में लिखा हैं।
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