राजा राम मोहन राय के बगीचे में बड़े ही सुंदर फूलों के पेड़ लगे थे। एक व्यक्ति था जो हर रोज वहां आता और राजा राम मोहन राय से पूछे बिना ही पूजा के लिए फूल तोड़कर ले जाता। यह सिलसिला लगातर कई दिनो तक चलता रहा।
रोज की तरह ही एक दिन उस व्यक्ति ने फूल तोड़ने के लिए अपनी चादर उतारी और पेड़ पर लटका दी व फूल तोड़ने लगा। उसी समय राजा राम मोहन राय के आदेशानुसार एक सेवक ने उस व्यक्ति की वह चादर उठा ली और राजा राम मोहन राय को दे दी।
फूल तोड़ने के बाद जब वह व्यक्ति अपनी चादर लेने के लिए उस पेड़ के पास गया जहां उसने उसे लटकाई थी, तो वहां चादर न देख वह व्यक्ति हैरान रह गया और सोचने लगा कि आखिर उसकी चादर गई कहां? वह गुस्से से आगबबूला हो गया। कुछ देर बाद राजा राम मोहन राय आए और उन्होने उस व्यक्ति को उसकी चादर लौटाते हुए कहा- “अब तो खुश हैं आप, आपको आपकी चादर वापस मिल गई।“
उस व्यक्ति ने गुस्से में ही जवाब दिया- “खुश…. इसमें खुश होने वाली कौनसी बात है, मुझे अपनी ही वस्तु मिली है।“
राजा राम मोहन राय ने उस व्यक्ति से पूछा, “आप रोज फूल तोड़कर कहां ले जाते है?“
उस व्यक्ति ने जवाब दिया- “मैं ये फूल तोड़कर मंदिर में ले जाता हूं, भगवान को खुश करने के लिए उनको ये फूल अर्पित करता हूं।“
राजा राम मोहन राय ने उस व्यक्ति का यह जवाब सुनकर कहा- “पहली बात तो यह कि आप बिना पूछे ही फूल तोड़कर ले जाते है। चलो कोई बात नही, लेकिन आप भगवान की दी हुई वस्तु भगवान को अर्पित करते हैं, तो इससे भगवान खुश होते हैं क्या?“
उस व्यक्ति से कहा- “क्यों नही, भगवान को फूल ही तो पसंद है, भगवान को फूलों से खुशी मिलती है।“
राजा राम मोहन राय ने उस व्यक्ति से कहा- “तो आपको चादर मिलने पर खुशि क्यों नही हुई?“
राजा राम मोहन राय की यह बात सुनकर वह व्यक्ति सोंच में पड़ गया और राजा राम मोहन राय, बिना कुछ और कहे हुए लौट गए।
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राजा राम मोहन राय के जीवन से जुड़ी हुई इस छोटी सी घटना का सारांश ये है कि फूल जब तक पेड़ पर लगा रहता है, तभी तक वह सुन्दर व जीवित होता है। उसे तोड़ कर हम उस फूल का जीवन ही समाप्त कर देते हैं और ये मानकर खुश होते हैं कि भगवान खुश होंगे। भला, किसी फूल का जीवन समाप्त होने पर भगवान को खुशी कैसे हो सकती है?
awsm
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