
मई दिवस का महत्व पूर्ण इतिहास- May Day in Hind
May Day in Hind- मई दिवस को अनेक नामों से जाना जाता हैं, जैसे मज़दूर दिवस, श्रम दिवस, श्रमिक दिवस, May Day, Labour Day, International Workers’ Day आदि। मई दिवस पूरी दुनियां में 1 मई को मनाया जाता हैं और इसे पूरी दुनियां में लगभग 80 देश मनाते हैं।
मई दिवस इतिहास
मई दिवस दिवस का इतिहास बहुत ही पूराना हैं। मई दिवस या मजदूर दिवस की शुरूआत अमरीका में हुई थी, इसका मुख्य कारण मज़दूर आंदोलन था। क्योंकि अमेरिका में गृहयुद्ध के बाद मिल और कारखानों के मालिक मजदूरों से दिन 16 घंटे काम कराया करते थे और इसके विरोध में अमेरिकी National Labor Union ने अगस्त 1866 में अपने अधिवेशन में मांग रखी कि मजदूरों से केवल एक दिन में आठ घंटे ही काम कराया जाए, क्योंकि मजदूर कोई गुलाम नहीं हैं।
मज़दूर आंदोलन
अमेरिका के शिकागो शहर में 3 मई 1886 को लगभग 40 हजार मजदूर अपनी मांगे सरकार से मनवाने के लिए सड़कों पर उतर आए और पुलिस ने भुखे-प्यासे मजदूरों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया जिसमें 6 मजदूरों की मृत्यु हो गई, उन मजदूरों के साथियों ने खून से सने उन मजदूरों के कपड़ो को परचम बना कर आसमान की तरफ लहरा दिया और तब से ही लाल झण्ड़ा मजदूरों का प्रतीक बन गया।
पुलिस द्वारा बेगुनाह मजदूरों पर की गई बर्बर कार्यवाही के मद्दे नजर 4 मई को शिकागो में मजदूरों के साथ-साथ आम जनता ने भी एक जुलूस निकाला। उस जुलूस में मिल मालिकों ने पुलिस के साथ मिल कर एक षड़यन्त्र रचा और जुलूसा के पीछे चल रही पुलिस की टुकड़ी पर देसी बम फिकवा दिया जिसमें एक पुलिस कर्मि की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गऐ इसके बाद पुलिस ने जुलूस पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दिया और आन्दोलन के नेताओं को पकड़ कर फांसी पर चढा दिया गया, लेकिन मजदूरों का संघर्ष जारी रहा और अपने नेताओं के बलिदान के दिन 1 मई 1890 को स्मरण दिवस के रूप में मनाने का आहवाहन किया, बाद में यह मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। 25 जुन 1886 को अमेरिकी कांग्रेस ने काम के समय को कम कर दिया और एक दिन में केवल आठ घंटे कार्य को मनजूरी मिल गई। यह मजदूरों की जीत का उत्सव था।
श्रमिक उत्सव
18 मई 1882 में ‘Central Labor Union of New York’ ने एक बैठक की जिसमें पीटर मैग्वार ने एक प्रस्ताव रखा, जिसमें एक दिन मज़दूर उत्सव मनाने की बात कही। पीटर मैग्वार के अनुसार सितम्बर के पहले सोमवार का दिन सुझाया। यह वर्ष का वह समय था, जो जुलाई और Thanksgiving Day के बीच में पड़ता था। भिन्न-भिन्न व्यवसायों के 30,000 से भी अधिक मज़दूरों ने 5 दिसम्बर को न्यूयार्क की सड़कों पर परेड निकाली और यह नारा दिया कि ‘’ 8 घंटे काम के लिए, 8 घंटे आराम के लिए और 8 घंटे हमारी मर्जी के ‘’ इसी नारे को एक बार फिर से 1883 में पुन: दोहराया गया और इसके लिए 1884 में New York Central Labor Union ने मज़दूर दिवस परेड के लिए सितम्बर माह के पहले सोमवार का दिन तय किया। यह दिन 1 सितम्बर को पड़ रहा था। अन्य शहरों में भी इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाने के लिए कई परेड निकाली गई। मज़दूरों ने लाल झंडे, बैनरों तथा बाजूबंदों का प्रदर्शन किया। सन् 1884 में FOTLU ने हर वर्ष सितम्बर के पहले सोमवार को मज़दूरों के राष्ट्रीय अवकाश का निर्णय लिया। 7 सितम्बर 1883 को पहली बार राष्ट्रीय पैमाने पर सितम्बर के पहले सोमवार को Worker Holiday Day के रूप में मनाया गया।
भारत में ‘मई दिवस’
भारत में मई दिवस की शुरूआत लगभग 1923 में पहली बार हुई। ‘सिंगारवेलु चेट्टियार‘ देश के कम्युनिस्टों में से एक तथा प्रभावशाली ट्रेंड यूनियन और मज़दूर तहरीक के नेता थे। अप्रैल 1923 में भारत में मई दिवस मनाने का सुझाव दिया था, क्योंकि इसका एक प्रमुख कारण था कि दुनिया भर के मज़दूर इसे मनाते थे। सिंगारवेलू ने इस दिन ‘मज़दूर किसान पार्टी‘ की स्थापना की।
1927 में सिंगारवेलु की पहल पर दुसरी बार मई दिवस मनाया गया, लेकिन इस बार यह सिंगारवेलु के घर मद्रास में मनाया गया था। इस अवसर पर उन्होंने मज़दूरों तथा अन्य लोगों को दोपहर की दावत दी। शाम को एक विशाल जूलुस निकाला गया, जिसने बाद में एक जनसभा का रूप ले लिया। इस बैठक की अध्यक्षता डा. पी. वारादराजुलू ने की। कहा जाता है कि तत्काल लाल झंडा उपलब्ध न होने के कारण सिंगारवेलु ने अपनी लड़की की लाल साड़ी का झंडा बनाकर अपने घर पर लहराया था।
लगभग एक सौ वर्षों के कठोर संघर्ष के बावजूद मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए अब भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। अनेक देशों में मजदूरों की आठ घंटे की कार्यावधि भी अब तक लागू नहीं हो पाई है। सप्ताह में 35 घंटे की कार्यावधि तथा अन्य अनेक प्रकार की सुविधाएँ तो उनकी कल्पना से भी दूर हैं। मजदूरों को रोज 12से 13 घंटे तक काम करना पड़ता है और अवकाश के दिनों का वेतन भी नहीं दिया जाता है। जिन देशों में मजदूरों को कुछ सुख-सुविधाएँ दी गई हैं, वे भी केवल संगठित क्षेत्रों में कार्यरत मजदूरों के लिए हैं। असंगठित मजदूरों के लिए अब तक कोई विशेष उल्लेखनीय कार्य नहीं हो पाया है।
मजदुर दिवस पर बहुत बढ़िया लेख