
Makar Sankranti Information
Makar Sankranti Information – मकर संक्रान्ति केवल एक खगोलीय घटना ही नहीं यह भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार भी है। सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रान्ति कहलाता है। भारत ही नही पडोसी देश नेपाल भी मकर संक्रान्ति को बड़ी धूमधाम से मनाता है।
शास्त्रों में मकर संक्रान्ति के दिन से उत्तरायण की शुरूआत होती है, इस कारण से उत्तरायण का अत्यधिक महत्व है। उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है।
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना उत्तरायण कहलाता है और कर्क राशि में प्रवेश करना दक्षिणायन कहलाता है। इस प्रक्रियाओं को ”अयन” कहते है।
वैदिक ग्रंथो में उत्तरायण को “देवयान” भी कहा जाता है क्योंकि उत्तरायण में देह त्यागने से आत्मा सूर्य लोक से होकर प्रकाश मार्ग से स्वर्ग में जाती है।
उत्तरायण में सूर्य उपासना का बड़ा महत्व है। चूंकि सूर्य ही ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत है, इसलिए हिंदू धर्म में मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व है। मकर संक्रान्ति के दिन स्नान, दान, तप, जप और अनुष्ठान का भी अत्यधिक महत्व है।
उत्तरायण के समय दिन की अवधि बढती जाती है व रात्रि की अवधि कम होती जाती है और ठीक इसके उलट दक्षिणायन में दिन का समय कम होने लगता है व रात्रि का समय बढ़ने लगता है, और कहा भी जाता है कि मकर संक्रांति से तिल-तिल दिन बढ़ना शुरू हो जाता है इस कारण से भी मकर संक्रांति के दिन तिल का महत्व बढ़ जाता है।
शास्त्रो में मकर संक्रांति के दिन प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के दिन प्रयाग में जाकर स्नान जरूर करना चाहिए और अगर प्रयाग में न जा सके तो अपने घर पर ही जल में तिल डाल कर स्नान करना चाहिए।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, और मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। इसलिए शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इस कारण से मकर संक्रांति पर तिल का दान किया जाता है
मकर संक्रांति के दिन दान करने का बहुत ही बड़ा महत्व है। मकर संक्रांति के दिन गरीब व्यक्ति या ब्राह्मणों को अनाज, ऊनी कपड़े, तिल, गुड़ आदि दान करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। कहते हैं कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य की ज्यादा से ज्यादा किरणें हमारे शरीर पर पड़े इसलिए पतंग उड़ाने का रिवाज है, जैसे होली पर रंग खेलना, दिवाली पर पटाखे फोड़ने का रिवाज है। जब सूर्य की किरणें हमारे शरीर पर पड़ती है तो यह किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है। पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है जिससे सर्दी में होने वाले रोग नष्ट हो जाते हैं।
तिल, गुड, रूई का महत्व- चीरकाल से मकर संक्रन्ति को मनाया जाता रहा है, और इस समय प्राय पूरे भारत में शीत ऋतु (ठंडी) का समय होता है। इसलिए वैधक शास्त्र ने शीत ऋतु के प्रभाव को कम करने के लिए तिल, गुड, और रूई के प्रयोग को श्रेठ बताया है।
वैदिक ग्रंथो में तिल को पापनाशक तक कह दिया गया है।
तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमो तिलारेदकी!
तिलभुक् तिलदाता च ष्ट्तिला पापनाशना:!!
इसका अर्थ हुआ कि मकर संक्रन्ति के समय तिल का जैसा हो सके वैसे ही प्रयोग करना चाहिए, चाहे खाने में हो या नहाने में, शीत ऋतु में तिल का प्रयोग अति उत्तम माना गया है।
भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रान्ति को मनाने का तरीका भिन्न होता है, जैसे-महाराष्ट्र में “तिलगूल” नामक हलवा खाने व दूसरो में बांटने की प्रथा है।
मकर संक्रान्ति को पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक राज्य में अलग-अलग हो और इसे मनाने का तरीका अगल हो।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व भी बहुत है। माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगीरथ के द्वारा पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था, और महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए मकर संक्रांति के दिन ही तर्पण किया था। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
आजीवन ब्रम्हचारी भीष्म पितामह ने इसी उत्तरायण में अपने देह का त्याग किया था, और भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए श्रीमदभगवत गीता में कहा है कि
उत्तरायण के छ: मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुन:जन्म नहीं होता और ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।
पुराणो के अनुसार मकर संक्रांति के ही दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था।
इस प्रकार से हजारों सालों से मकर संक्रांति को एक त्योहार की तरह मनाया जाता रहा है क्योंकि इसका न केवल पौराणिक व धार्मिक महत्व है, बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है।
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