Krishna Story in Hindi- जरासंध मगध के राजा था। जरासंध बहुत शक्तिशाली और क्रूर राजा था। उसके पास अनगिनत सैनिक और दिव्य अस्त्र-शस्त्र थे। इसीलिए जरासंध के पड़ोसी राज्य जरासंध राजा के प्रति मित्रता का भाव रखते थे। जरासंध की दो पुत्रियाँ थी, अस्ति और प्रस्ति। अस्ति और प्रस्ति का विवाह मथुरा के राजा कंस के साथ हुआ था।
कंस भी कुछ कम क्रूर नहीं था वह बहुत पापी और दुष्ट राजा था। मथूरा की प्रजा को कंस के अत्याचारों से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। अपने दामाद की मृत्यु की खबर सुनकर जरासंध बहुत क्रोधित हो उठा। प्रतिशोध लेने के लिए जरासंध ने कई बार मथुरा पर आक्रमण किया, लेकिन हर बार श्रीकृष्ण उसे हार जाता और भगवान श्रीकृष्ण उसे पराजित कर जीवित छोड़ देते थे।
एक समय कलिंगराज पौंड्रक और काशीराज के साथ मिलकर मथुरा पर आक्रमण किया। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भी पराजित कर दिया। जरासंध तो भाग निकला, लेकिन पौंड्रक और काशीराज भगवान श्रीकृष्ण के हाथों मारे गए।
काशीराज के बाद उसका पुत्र काशीराज बना और श्रीकृष्ण से बदला लेने का निश्चय किया। वह श्रीकृष्ण की शक्ति जानता था। इसलिए उसने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें समाप्त करने का वर माँगा। भगवान शिव ने उसे कोई अन्य वरदान माँगने को कहा। किंतु काशीराज अपनी माँग पर अड़ा रहा।
तब शिव ने मंत्रों से एक भयंकर कृत्या बनाई और उसे देते हुए बोले, ”वत्स! तुम इसे जिस दिशा में जाने का आदेश दोगे यह उसी दिशा में स्थित राज्य को जलाकर राख कर देगी। लेकिन ध्यान रखना, इसका प्रयोग किसी ब्राह्मण भक्त पर मत करना। वरना इसका प्रभाव निष्फल हो जाएगा।” वरदान देकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए।
यहां, दुष्ट कालयवन का वध करने के बाद श्रीकृष्ण सभी मथुरावासियों को लेकर द्वारिका आ गए थे। काशीराज ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए कृत्या को द्वारिका की ओर भेजा। काशीराज को यह ज्ञान नहीं था कि भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण भक्त हैं। इसलिए द्वारिका पहुँचकर भी कृत्या उनका कुछ नुकसान नही कर पाया।
अब भगवान श्रीकृष्ण अती देख अपना सुदर्शन चक्र कृत्या की ओर चला दिया। सुदर्शन भयंकर अग्नि उगलते हुए कृत्या की आगे बढ़ा। कृत्या ने अपने प्राण संकट में देख भयभीत होकर काशी की ओर भागी। सुदर्शन चक्र भी उसका पीछा करते हुए काशी पहुँच गया ओर कृत्या सहीत पूरी काशी को ही भस्म कर दिया।
बाद में वारा और असि नामक दो नदियों के बीच यह नगर फिर से बसा। वारा और असि नदियों के बीच होने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा। यह द्वापरयुग की एक पौराणिक कथा है। जब भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र ने काशी को जलाकर राख कर दिया था। बाद में यह वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
shree krishn aur sudama ki dosti ne ki hai, atut prem aur shraddha ka bandhan hai shree krishna-sudama dosti. krishn ki lila krishn hi jane
thank you very much