Krishna Janmashtami in Hindi- हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु जी के पूर्णावतार को ही भगवान श्रीकृष्ण के रूप माना और उनकी पूजा होती हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण मानव जीवन के सभी चक्रों (यानि जन्म, मृत्यु, शोक, खुशी आदि) से गुजरे हैं, इसीलिए उन्हें पूर्णावतार कहा जाता है।
जन्माष्टमी कब मनाई जाती है?
भविष्य पुराण के अनुसार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूरी दुनिया में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। श्रीकृष्णा अष्टमी रक्षाबंधन के बाद आता है।
भगवान श्रीकृष्ण की विषेशता
भगवान श्रीकृष्ण उस संर्पूणता के सूचक हैं जिसमें योगीराज, मनुष्य, देवता, और संतों के आदि के सभी गुणं निहित है। समस्त शक्तियों के अधिपति भगवान श्रीकृष्ण महाभारत में कर्म पर विश्वास करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का पूर्ण मानवीय रूप महाभारत काल के समय पूर्ण रूप से दिखाई पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण के एक हाथ बांसुरी और सिर पर एक मोर पंख रहता है। कृष्ण अपनी रासलीलाओं और अन्य गतिविधियों के लिए अपने मानव जन्म के दौरान बहुत प्रसिद्ध हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के अनेक नाम
भगवान श्रीकृष्ण को अनेक नामों से जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के लगभग 108 नामों से मुख्य रूप से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण को प्राचीन समय से विभिन्न भूमिकाओं और शिक्षाओं (जैसे भगवद गीता) के लिए पूजा जाता है। हिंदू धर्म के पंचांग के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी को कृष्ण पक्ष श्रावण मास में अंधेरी आधी रात में हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने केवल अपने भक्तों के लिए इस धरा पर जन्म लिया। भगवान श्रीकृष्ण शिक्षक, संरक्षक, दार्शनिक, भगवान, प्रेमी, विभिन्न भूमिकाएं निभाईं है इस धरा पर। हिंदू समुदाय के लोग भगवान श्रीविष्णु की पूजा करते हैं और विभिन्न प्रकार के कृष्ण के रुपों की पूजा करते हैं।
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की अष्ठमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है। इस दिन को अनेक नामों से भी जाना जाता है, जैसे- सटम आथम, गोकुलाष्टमी, श्री कृष्ण जयंती, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, जन्माष्टमी, श्रीकृष्णा अष्टमी आदि।
जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
भगवान श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के 8वें पुत्र थे। मथुरा नगर का राजा कंस था, जो कि बहुत अत्याचारी था। उसके अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही ही जा रहे थे। एक समय आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसका वध करेगा। यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी को उसके पति वासुदेव सहित काल-कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी के कृष्ण से पहले के 7 बच्चों को मार डाला। जब देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। उसी समय से बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।
दही हांडी का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण बचपन से ही बहुत नटखट और शरारती स्वभाव के थे और माखन उनका प्रिय भोज था, जिसे वह लोगों के घरों रखी मटकी से चुरा कर खाते थे। भगवान श्रीकृष्ण की इसी लीला को उनके जन्मोत्सव में मनाया जाता है। भारत के कई हिस्सों जन्माष्टमी के दिन दही–हांडी का उत्सव आयोजित किया जाता है। जन्माष्टमी पर्व की पहचान बन चुकी दही-हांडी या मटकी फोड़ने की रस्म भक्तों के दिलों में भगवान श्रीकृष्ण की यादों को ताजा कर देती हैं।
जन्माष्टमी व्रत का महत्व
स्कन्द पुराण के अनुसार जो मनुष्य जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। भविष्य पुराण के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। जो मनुष्य कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूर्ण विश्वास के साथ पूजा-व्रत करते हैं, वे एक संतान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। अविवाहित महिलायें भी भविष्य में एक सुयोग्य संतान के जन्माष्टमी का उपवास रखतीं हैं। यह भी माना जाता है कि पति-पत्नी दोनों के द्वारा उपवास और पूर्ण भक्ति के साथ पूजा करना अधिक लाभकारी माना गया है। कृष्ण जन्माष्टमी का उपवास केवल अष्टमी तिथि में ही करना चाहिए है।
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