Jyotish in Hindi – हमारे हाथ में आज है परंतु कल नही है। कहावत भी है कि कल किसने देखा। लेकिन भले ही हमने कल नही देखा है परंतु कल के बारे में जान लेने की इच्छा ने आज के वैज्ञानिक दौर में भी ज्योतिष को जीवित बनाए रखा है और ये कहानी ज्योतिष के ही एक और पक्ष को दर्शाती है।
पंडित घनश्याम शास्त्री… यही नाम था उसका। प्रकाण्ड पंडित माना जाता था। उसके कार्यालय में हमेंशा लोगों की लम्बी कतार लगी रहती थी। लोग हर रोज नई-नई तरह की समस्याएं लाते थे और पंडित घनश्याम शास्त्री के पास होता था उनकी हर समस्या का समाधान और उनकी की गई कोई भी भविष्यवाणी कभी झूठी साबित नहीं हुई थी।
उनकी इस ख्याति से दूर देश के राज्य विजयनगर के राजा को भी बड़ा आश्यर्च हुआ कि कोई पंडित इतनी सटीक भविष्यवाणी कैसे कर सकता है। इसलिए राजा ने पंडित की परीक्षा लेने का विचार किया और उसे अपने देश में आने का न्योता दिया।
पंडित बड़ा ही खुश हुआ कि अब तो उसकी ख्याति दूसरे देशों तक भी पहुंच गई है और वह राजा का न्योता स्वीकार करते हुए दूसरे देश जाने की तैयारी करने लगा। नगरजनों ने भी उसे गाजे बाजे के साथ रवाना किया। महिनों के कठिन सफर के बाद वह दूसरे राज्य की सीमा पर पहुँचा। मगर पहुंचते ही उसे तुरंत जासूसी के आरोप में वहां के सैनिकों ने गिफ्तार कर लिया।
पंडित चिल्लाता रहा कि वह फंला राज्य का ख्यातिमान पंडित है और इस देश के राजा ने उसे बुलाआ है, परंतु सैनिकों ने उसकी एक न सुनी बल्कि उसे कारागृह में डाल दिया। तीन चार दिन तक उसे भूखा-प्यासा रखा। जब पंडताई की सारी अकड़ ढीली हो गई, तब उसे राजदरबार में पेश किया गया, जहां राजा ने व्यंग्य से कहा- दूसरों का भाग्य देखने वाले पंडित, क्या तुझे अपने भाग्य का पता नही था?
पंडित ने कहा- महाराज… यदि मुझसे कोई चूक हुई हो, तो क्षमा करें और मुझे यहां से जाने दें।
राजा ने कहा- जो अपना भाग्य नही जानता, वह दूसरों के भाग्य बताने का ढोंग करता है। ऐसे लोगों को हमारे राज्य में ठग कहा जाता है और उनके लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है।
राजा की बात सुनकर पंडित काफी डर गया लेकिन अपने आप को सम्भालते हुए उसने कहा-
महाराज… मैं ठग नही हूँ, गणितज्ञ हूँ और मैंने अपने गणित की खोज से जो पाया, उसी का उपयोग करते हुए लोगों के विषय में जो भी भविष्यवाणियां करता हुं, वे सत्य होती हैं।
मैं भविष्य नहीं देख सकता। मुझे किसी के भविष्य का कोई पता भी नहीं है लेकिन सारा संसार कुछ सनातन सत्य निश्चित नियमों के आधार पर चलता है जिन्हें गणितीय रूप में परिभाषित किया जा सकता है और उन्हीं में से एक नियम का ज्ञान मुझे मेरी गणित से हुआ। उसी ज्ञान का उपयोग करते हुए मैं लोगों के सम्बंध में भविष्यवाणी करता हुं, और वे सत्य साबित होती हैं।
राजा को पण्डित की बात पर थोडा आश्यर्च हुआ कि गणित के प्रयोग से कैसे कोई किसी का भविष्य जान सकता है। इसलिए उसने पण्डित से कहा कि-
यदि तुम अपनी इस भविष्यवाणी करने की गणित विद्धा को सत्य सिद्ध कर दो, तो तुम्हे जीवनदान के साथ ही उपयुक्त सम्मान भी मिलेगा लेकिन यदि तुम ऐसा न कर सके, तो अपनी मृत्यु निश्चित समझो।
पण्डित के पास अपनी विद्या सिद्ध करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, इसलिए उसने कहना शुरू किया-
महाराज… संतुलन संसार का एक सनातन सत्य नियम है। यानी प्रकृति इस संसार में सबकुछ संतुलन में बनाए रखती है। उदाहरण के लिए यदि किसी वर्ष खूब वर्षा हो जाती है, तो अगले वर्ष सूखा भी पड जाता है। यदि किसी राज्य की जनसंख्या बहुत बढ जाती है, तो वहां कोई महामारी भी फैल जाती है, ताकि जनसंख्या फिर से सन्तुलन में आ जाए। यदि कोई व्यक्ति बहुत धनी हो जाए, तो उसे निर्धनता का स्वाद भी चखना पडता है। यदि कोई व्यक्ति बहुत हंसने लगे, तो जल्दी ही उसे रोना भी पडता है। यानी इस संसार में हर घटना सन्तुलन के नियम का पालन करती है।
और इसीलिए जिस तरह से किसी सिक्के के केवल दो ही पहलू हो सकते हैं, ठीक उसी तरह से संसार की सभी स्थितियों, सभी घटनाओं की भी सकारात्मक अथवा नकारात्मक नाम की केवल दो ही अवस्थाऐं हो सकती हैं और किसी एक समय पर दोनों में से कोई एक अवस्था ही हो सकतीं।
उदाहरण के लिए कोई बीमार व्यक्ति या तो स्वस्थ हो सकता है अथवा मृत्यु को प्राप्त हो सकता। किसी का खोया हुआ धन या तो उसे फिर से प्राप्त हो सकता है अथवा हो सकता है कि उसे वह कभी न मिले। किसी गर्भवती स्त्री को या तो पुत्र की प्राप्ति हो सकती है अथवा पुत्री की। घर से हमेंशा के लिए चला गया हुआ कोई व्यक्ति या तो वापस लौट कर आ सकता है अथवा कभी नहीं लौटता है।
इसी तरह के हजारों सवाल हो सकते हैं, जिनके जवाब या तो सकारात्मक यानी ”हां” में हो सकते हैं अथवा नकारात्मक यानी ”ना” में हो सकते हैं। बीच की कोई स्थिति ही नहीं है।
इसलिए गणित के अनुसार किसी भी अच्छी या बुरी घटना के होने अथवा न होने की अधिकतम सम्भावना 50% ही होती है और मैंने प्रकृति के इन दो पहलुओं में से उस 50% वाले पहलू को चुन लिया, जिसे लोग पसन्द करते हैं, जिसे लोग सुनना चाहते है और बन गया भविष्यवक्ता।
फलस्वरूप जिस व्यक्ति का धन खो गया होता है, वह यही सुनना चाहता है कि उसे उसका धन मिल जाएगा और एक ज्योतिषी के रूप में मेरे पास ऐसे प्रश्न लेकर आने वाले लोगों को में यही कहता हुं कि उनका धन उनको मिल जाएगा।
इसी तरह से ज्यादातर गर्भवती स्त्रियां पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखती हैं, इसलिए जब कोई गर्भवती स्त्री मुझसे ये जानना चाहती है कि उसके गर्भ में पुत्र है या पुत्री, तो मैं उसे यही कहता हूं कि उसके गर्भ में पुत्र ही है।
अब चूंकि प्रकृति का नियम है सबकुछ संतुलन में रखना, इसलिए यदि मैंने 100 स्त्रियों को पुत्र प्राप्ति की भविष्यवाणी की, तो लगभग उनमें से 50 को तो पुत्र प्राप्ति होनी ही थी, क्योंकि यदि ऐसा न होता, तो इस संसार में जितने पुरूष हैं, लगभग उतनी ही स्त्रियां कैसे होतीं?
इसी एक 50% वाले गणितीय नियम को मैंने सभी लोगों पर आजमाया और मेरे पास आने वाले 100% लोगो को मैंने वही कहा जो वो सुनना चाहते थे। आगे का काम तो प्रकृति ने किया और 100 में से 50 लोगों के साथ वही हुआ, जो मैंने उन्हें कहा, क्योंकि वो तो होना ही था।
यानी अगर सौ स्त्रियों ने अपने गर्भस्थ शिशु के बारे में जानना चाहा, और यदि मैंने सभी को पुत्र प्राप्ति की भविष्यवाणी की, तो लगभग 50 स्त्रियों के लिए तो मेरी बात सही होनी ही थी।
इसी तरह से यदि मेरे पास 100 ऐसे लोग आए, जिनका कुछ खो गया था, और यदि मैंने उन सभी को यही कहा कि उन्हें उनकी खोई हुई वस्तु फिर से प्राप्त हो जाएगी, तो लगभग 50 लोगों को तो उनकी खोई हुई वस्तु फिर से प्राप्त होनी ही थी, जो कि प्रक़ति का नियम है।
अब जिन लोगों के लिए मेरी भविष्यवाणी सत्य हुई, वे लोग किसी अन्य समस्या के समाधान के लिए फिर से मेरे पास आए और दो-चार और लोगों के बीच मेरी भविष्यवाणी सच होने की चर्चा की, जिससे मेरी प्रसिद्धि बढी, जबकि जिन बचे हुए 50% लोगों के लिए मेरी भविष्यवाणी सही साबित नहीं हुईं, वे दोबारा मेरे पास नहीं आए बल्कि किसी अन्य पण्डित की तलाश में लग गए।
इसलिए महाराज… मैंने केवल प्रकृति के संतुलन के नियम को गणितीय रूप में समझा और उसे उपयोग में लेकर अपनी जीविकार्जन का उपाय किया।
मैंने किसी को धोखा नहीं दिया, मैंने किसी को नहीं ठगा। मैंने सभी को केवल एक ही बात कही, एक समान बात कही। हर गर्भवती स्त्री को मैंने यही कहा कि उसे पुत्र प्राप्ति होगी। जिसे पुत्र प्राप्ति हुई, वह स्त्री उसी का नामकरण करवाने हेतु फिर से मेरे पास आई, और जिसे पुत्र के स्थान पर पुत्री की प्राप्ति हुई, वह दोबारा मेरे पास नहीं आई।
ठीक ऐसे ही हर बीमार व्यक्ति के संदर्भ में मैंने यही कहा कि वह स्वस्थ हो जाएगा। अब जो स्वस्थ हो गया, उसने मेरी बडाई की, मुझे प्रसिद्ध बनाया और जो स्वस्थ नहीं हो सका, वो मेरी भविष्यवाणी की असत्यता साबित करने हेतु जीवित नहीं रहा।
मेरे पास आने वाले सभी मनुष्य यदि स्वयं ही सोच लें कि इस संसार में सकारात्मक और नकारात्मक, इन दो के अलावा कोई तीसरी स्थिति है ही नही, तो हम जैसे पंडित ऐसे ही मर जाऐंगे और आपको एक ब्राम्हण की हत्या करवाने का पाप नहीं करना पडेगा।
राजा को पण्डित की बात समझ में आ गई। उसने उसे यथोचित सम्मान देकर विदा किया। जाते-जाते ब्राम्हण ने राजा से पूछा-
महाराज… मैंने मेरे गणित का उपयोग करके बहुत धन कमाया परंतु आपके जितना नही कमा पाया! आखिर आप कौनसा गणित इस्तेमाल करते हैं?
राजा पंडित के इस प्रश्न पर मुस्कुरा भर दिया और फिर पंडित से पूछा- अच्छा मेरे जीवन के बारे में भी कुछ बता सकते हो।
राजा के इस सवाल पर पंडित थोडा सा मुस्कुराया और बिना कुछ कहे राजा से विदा ले ली क्योंकि राजा के लिए वह अपने 50% वाले नियम को लागू करते हुए वह कोई भविष्यवाणी करना नहीं चाहता था क्योंकि यदि राजा के लिए की गई उसकी भविष्यवाणी सही न होती, तो उसका जीवन फिर से संकट में पड सकता था।
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इस कहानी में एक गणितीय नियम का जिक्र किया गया है, जिसे Modern Mathematics में Probability यानी सम्भाव्यता के नाम से जाना जाता है और ये गणित केवल इसी बात पर आधारित है कि किसी घटना के घटित होने की सम्भावना कितनी है।
उदाहरण के लिए यदि आप किसी सिक्के को 10 बार उछालते हैं, तो हर बार या तो Head आएगा या फिर Tail आएगा। यानी Head या Tail आने की सम्भावना प्रत्येक बार 1/10 यानी 10% है। इसी तरह से किसी गर्भवती स्त्री के लडका या लडकी में से कोई एक ही हो सकता है, इसलिए दोनों में से किसी एक के होने की सम्भावना 1/2 यानी 50% है।
अब ऐसे में यदि आप 100 गर्भवती स्त्रियों को कहें कि उसे लडका होगा, तो ज्यादातर सम्भावना है कि लगभग 50 स्त्रियों के लिए की गई आपकी भविष्यवाणी बिल्कुल सही होगी और इसमें ज्योतिष या मनोविज्ञान का कोई Role नहीं है, बल्कि प्रकृति के सन्तुलन के नियम का आसान सा गणित है।
पिछले पोस्ट में भी मैंने ऐसे ही कुछ मनोवैज्ञानिक तथ्यों के बारे में चर्चा की थी, जिन्हें इस तरह से तथाकथित ज्योतिषी लोग Use करते हैं, लोगों के बारे में भविष्यवाणी करते हैं, उन्हें तरह-तरह की बातों से डराते हैं और फिर कर्मकाण्ड, पूजा-पाठ, रत्न, यंत्र, तंत्र आदि के नाम पर अपना जीविकोपार्जन करते हैं।
तो क्या हजारों सालों से चला आ रहा हमारा ज्योतिष एक प्रकार का झूठ है, जिसे वेदों के छठे अंग के नाम से भी जाना जाता है? क्या सभी ज्योतिषी लोग इस कहानी में बताए ब्राम्हण की तरह ही कुछ प्रकृति के कुछ सनातन सत्य नियमों को गणितीय रूप से Apply करके अपना Business चला रहे हैं? क्या सचमुच में ज्योतिष के माध्यम से भविष्य जानना या भविष्य की झलक प्राप्त करना सम्भव नहीं है और हजारों सालों से चला आ रहा हमारे देश का सबसे पुराना, सबसे अनोखा विज्ञान केवल कुछ कम अक्ल लोगों के दिमाग की उपज मात्र है?
इस निर्णय पर पहुंचना अभी भी जल्दबाजी ही होगा। इसलिए अभी हमें कुछ और अन्वेषण करना होगा, कुछ और तथ्यों को देखना होगा, उन पर गहन चिन्तन-मनन करना होगा, उन्हें वर्तमान समय के Modern Science पर Apply करना होगा, तभी हम किसी उपुयक्त निष्कर्ष पर पहुंच सकेंगे।
आपका ब्लॉग में हमेसा पढता हु ये बात जो की 50/50 हे वह 100%सही हे हम आपसे सहमत हे
very true & scientific . your explanation is perfectly logical . i have been agreed for always with this 50-50 rule . I would like read you much more .
thank you to open the eyes of blind faith followers
thank again –
gopal das