
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- International Women’s Day in India
यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:।
अन्तराष्ट्रिय महिला दिवस को मनाने कि शुरूआत सन् 1900 में हुई थी। इसका मुख्य कारण महिलाओं के साथ भेदभाव होना था। 1908 में न्यूयार्क की कपड़ा मिल में काम करने वाली लगभग 15000 महिलाओं ने काम करने के घंटो को कम करने, समान Salaries और Vote के अधिकार के लिए आंदोलन किया था। दुनियां में पहली बार अमेरिकी सोशलिस्ट पार्टी ने नेशनल वुमन ड़े मनाया था। 26 जनवरी 1909 में सबसे पहले अमेरिका के सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन पर यह महिला दिवस मनाया गया।
1910 में Denmark के Copenhagen मे Working महिलाओं ने एक Conference की और अंतरराष्ट्रिय स्तर पर महिला दिवस मनाने का फैसला किया और 1911 मे पहली बार 19 मार्च को अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस मनाया गया। इस फैसले को ठोस रूप देने के लिए Austria, Denmark, Germany और Switzerland की महिलाओं ने हिस्सा लिया और 8 मार्च 1913 को प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस मनाने का फैसाला लिया गया।
अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस का महत्व और भी बढ़ गया जब 1917 में रूसी महिलाओं ने एक आन्दोलन छेड़ दिया जिसमें महिलाओं को Vote देने की मांग रखी गई और उस समय की अंतरिम सरकार ने महिलाओं को Vote देने का अधिकार दिया। देश की प्रगति के लिए यह जरूरी है कि उस देश की आर्थिक, राजनितिक और सामाजिक क्षेत्रो में महिलाओं का भी योगदान हो, बिना महिलाओ के योगदान के कोई भी देश प्रगति नहीं कर सकता। इसके लिए जरुरत है लिंग असमानता खत्म करने की।
वर्ष 1917 के उत्सव को मनाने के दौरान Saint Petersburg की महिलाओं के द्वारा “रोटी और शांति” रशियन खाद्य कमी के साथ ही प्रथम विश्व युद्ध के अंत की माँग रखी। धीरे-धीरे ये कई कम्युनिस्ट और समाजवादी देशों में महिला दिवस मनाना शुरु हुआ जैसे- 1922 में चीन में, 1936 से स्पैनिश कम्युनिस्ट आदि में।
सृष्टि को बनाने वाले भगवान ब्रह्मा के बाद सृष्टि के सृजन में अगर किसी का योगदान हैं तो वह हैं नारी। एक औरत अपने जीवन को दाव पर लगा कर बहुत सी मुसीबतों को सहन करने के बाद एक नए जीवन को जन्म देती हैं। यह हिम्मत केवल भगवान ने महिला को प्रदान कि है।
इतिहास गवाहा हैं कि केवल माँ के द्वारा दिए संस्कारों के कारण ही महात्मा गांधी, शिवाजी महाराज जैसे महापूरूषों को याद ही नहीं अपितु नमन भी किया जाता हैं। इनमें श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण केवल एक माँ ने ही तो किया था।
मदर टेरेसा, राजकुमारी अमृत कौर, देवी अहिल्याबाई होलकर, महादेवी वर्मा, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन-कर्म से पूरे संसार में अपना नाम रोशन किया।
भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनना केवल उनके दृढ़ संकल्प के कारण ही तो हुआ था, इंदिरा गांधी ने अपने पिता, पति और एक पुत्र को खोने के बावजूद हौसला नहीं हारा। इंदिरा गांधी को लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है।
आज के समय में जहां हम एक ओर नारी को पूज्यनीय कहते हैं तो दूसरी ओर उनका शोषण भी करते हैं। यह पूज्यनीय नारी जाति का अपमान ही तो है। महिलाओं को समाज में वही सम्मान मिलना चाहिए जो एक पुरुषों को मिलता हैं चाहे पुरूष कितनी भी ग़लतियों कर ले। महिलाओं को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है। उन्हें उचित सुविधाओं की जरूरत है।
आज लड़कियों का जन्म होने से पहले ही मार दिया जाता हैं। क्या लड़कियों को जीने का अधिकार नहीं हैं? पुरूषों को यह याद रखना चाहिए कि एक नारी की कोख से ही उसने भी जन्म लिया हैं आज पुरूष का जो अस्वित्व हैं वह केवल नारी के कारण ही हैं। महिला का अपमान करना देवी का अपमान करना हैं। जब किसी घर में लड़की का जन्म हो या नई विवाहिता बहु आती हैं तो सभी कहते हैं, लक्ष्मी घर आई हैं और बाद में इसी लक्ष्मी का अपमान करते हैं।
मिसाइल वूमन के नाम से जाने जानी वाली डॉ. टेसी थॉमस भारत की पहली महिला हैं, जो मिसाइल प्रोजेक्ट को संभाल रही हैं। लोगों ने डॉ. टेसी थॉमस को ‘अग्नि-पुत्री’ का खिताब दिया हैं। भारत की पहली Senior महिला पुलिस अधिकारी डॉ. किरण बेदी, भारतीय महिला मुक्केबाजी में 5 बार विश्व विजेता मैरी कॉम, यही नहीं व्यापार की दुनियां बड़ी-बड़ी कंपनीयों में प्रतिष्ठित पद पर भी आसीन हैं महिलाएं मजुमदार शॉ, चन्द्रा कोचर, इंद्रा नूई, पिरामल, नैना लाल किदवई, रामकृष्णा आदि। हमें महिलओं का सम्मान करना चाहिए। हमें महिलओं का सम्मान करना चाहिए। वेदों में कहा गया हैं जहां नारी की पूजा होती हैं वहां देवताओं का निवास होता हैं।
अपना वजूद भुला कर ना जाने कितनी रस्में निभाती हे,
सलाम हर उस ओंरत को, जो घर को घर बनाती हैं।
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