Inspiring Stories in Hindi – राजा विक्रम के सौ पुत्र थे। एक बार राजा विक्रम ने सोचा कि अब मुझे अपने सभी पुत्रौ में से किसी एक पुत्र का सुयोग्य राजा के लिए चुनाव करना चाहिए क्योंकि अब में बूढा हो चला हूँ।
लेकिन राजा विक्रम चाहते थे कि राजा का सही चुनाव ही हो ताकि प्रजा आने वाले समय में उन्नति कर सके। गलत राजा का चुनाव कहीं ऐसा न कर दे कि राजा खुश रहे और प्रजा दु:खी।
राजा विक्रम ने अपने सभी पुत्रों को एक विशाल भोज पर बुलाया और उनके सामने अनेकों पकवानों की थालियाँ रख दी गयीं। राजा विक्रम स्वयं एक झरोखे से अपने पुत्रों को भोजन करते देख रहे थे। जब वे भोजन करने बैठे ही थे तभी राजा के सेवकों द्वारा अचानक वहाँ बहुत सारे शिकारी कुत्तों को छौड दिया गया। सभी राजकुमार भोजन छोड़ कर उन कुत्तों को भगाने लगे। कोई इन कुत्तो का शिकार कर रहा था तो कोई अपनी ही जान बचा कर छिप गया जबकि कोई तो डर के मारे भोजन छोड़ कर वहाँ से भाग ही गया।
दूसरे दिन राजा विक्रम ने अपने राज्य के अपने उत्तराधिकारी का चुनाव कर राज्य सभा में सभी प्रजाजन को उपस्थित होने का आदेश दिया। प्रजा भी अपने नये राजा के दर्शन को आतुर थी। राजा विक्रम ने अपने सभी पुत्रों से पूछा कि:
क्या कल आप सब ने भोजन किया था।
राजा विक्रम के एक पुत्र ने कहा-
नहीं… मैं भोजन नही कर पाया क्योंकि हमारे भोजन करते समय बहुत सारे शिकारी कुत्ते आ गये थे। जिसकी वजह से मैं अपनी जान बचा कर वहाँ से भाग आया था।
राजा विक्रम के दूसरे पुत्र ने कहा-
राजकुमारो का भोजन हो रहा था तो पहरेदार क्या कर रहे थे? वे शिकारी कुत्ते भोजन करते समय अन्दर कैसे आ गए? हमारे पहरेदार बहुत ही नालायक हो गए हैं। एक कार्य भी वे लोग ठीक से नही करते।
राजा विक्रम के सभी पुत्रौ ने कुछ ऐसा ही जवाब दिया। उसी समय राजा विक्रम के अति प्रिय पुत्र सान्तनु से जब राजा विक्रम ने पूछा कि-
तुमने भोजन किया था?
राजकुमार सान्तनु ने उत्तर दिया-
हाँ पिताजी… मैंने भोजन कर लिया था और भोजन बडा ही स्वादिष्ट था।
यह सुन कर सान्तनु के भाईयों को बडा ही आर्श्चय हुआ। सभी को आश्चर्यचकित देखते हुए राजा विक्रम ने पूछा-
पुत्र सान्तनु… तुमने भोजन कैसे किया?
सान्तनु ने उत्तर दिया-
पिताजी… मेरे भोजन करते समय जब कोई कुत्ता मेरे पास आता, तो मैं उसके सामने एक थाली खाली कर देता था, जिससे वो वह भोजन खाने में व्यस्त हो जाता था। फलस्वरूप कोई भ्ाी कुत्ता मुझे ज्यादा परेशान नहीं कर पाया और मैंने शान्तिपूर्ण तरीके से भोजन कर लिया क्योंकि मेरे सभी भाईयों की 99 थालियाँ थीं जो कि इन कुत्तों से डरकर इधर-उधर भाग रहे थे।
सान्तनु का जवाब सुनकर न केवल प्रजागण संतुष्ट हुए बल्कि सान्तनु के सभी 99 भाइयों काे भी सान्तनु का जवाब सुनकर खुशी हुई आैर राजा विक्रम ने अपने पुत्र सान्तनु को राज्य का नया राजा घोषित कर दिया।
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इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी प्रकार की असुविधा का रोना नहीं रोना चाहिए बल्कि उन असुविधाओं में भी, अपना और अपने लोगों का भला किस प्रकार हो सके, इसका उपाय करना चाहिए।
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