Inspirational Stories in Hindi – एक लालची किसान के पास एक घोड़ा था, जो अब काफी बूढ़ा हो गया था। वह वृद्ध घोड़ा अब किसान के किसी काम का नहीं रह गया था बल्कि वह एक तरह से किसान के लिए बोझ बन गया था। इसलिए एक दिन किसान ने उस घोड़े से कहा- तुम अब मेरे किसी काम के नहीं रह गए। इसलिए बेहतर होगा कि तुम मेरा घर छोड़ दो और जाकर किसी जंगल में रहना शुरू कर दो।
किसान की बात सुनकर घोड़ा बड़ा ही दु:खी हुआ। उसने किसान से कहा- मैं आप का पुराना सेवक हूँ… मैंने अपनी पूरी जिंदगी आपकी सेवा में समर्पित कर दी… मैंने हमेशा से ही अपने कार्य को वफादारी से किया है… जब तक मैं जवान था, स्वस्थ्य था, तब तक आपने मुझे बड़ा ही प्रेम दिया और अब, जब मैं वृद्ध और कमजोर हो गया हूँ, तो आप मुझे किसी जंगल में जाकर रहने के लिए कह रहे हैं… क्या मुझे मेरी जीवन भर की सेवा व वफादारी का यही ईनाम दिया जायेगा?
किसान उसके शब्दों को सुनकर दंग रह गया। उसके पास घोडे के सवालों के जवाब ही नहीं थें। सो, किसान बिना कुछ कहे थोडा नाराज होकर जाने लगा। तभ्ाी पीछे से घोडे ने कहा- मैं घोड़ा हुँ और घोडा चाहे जितना बूढ़ा हो जाए, कभी भी अपने मालिक पर बोझ नहीं बनता। आप मुझे कोई काम दीजिए, यदि मैं उस काम को न कर सका, तो मैं स्वयं ही आपका घर छोड़कर जंगल में चला जाऊंगा।
घोडे की बात सुनकर उस धूर्त किसान के दिमाग में एक कुटिल विचार आया। उसने सोचा कि क्यों न घोड़े को कुछ ऐसा काम दिया जाए, जो वो कर ही न सके, ताकि वह स्वयं ही घर छोडकर चला जाए और ये बात सोंचकर उसने घोड़े से कहा- ठीक है… यदि ऐसी बात है, तो मुझे एक शेर के खाल की जरूरत है। यदि तुम मुझे शेर की खाल लाकर दे सकते हो, तो तुम मेरे घर में रह सकते हो।
इतना कहकर किसान चला गया। उसे लगा कि यदि घोडे ने शेर की खाल लाने की कोशिश की, तो शेर उसे मार देगा और यदि वह शेर की खाल न ला सका, तो स्वयं ही लौटकर नहीं आएगा।
जबकि अपने मालिक को ये साबित करने के लिए कि वह अभी भी उसके लिए उपयोगी है, घोड़ा शेर की खाल लेने के लिए जंगल की ओर निकल गया। जंगल पहुंचते-पहुंचते अपने मालिक की बातें याद कर घोडा काफी दु:खी व उदास हो गया कि जिन्दगी भर जिस मालिक की उसने सेवा की, वही मालिक आज उसकी उपयोगिता की परीक्षा ले रहा है। घोडे की इस उदासी को एक लोमडी ने देखा और घोड़े को उदास देखकर उस लोमड़ी को भी उस पर दया आ गई। उसने घोड़े से उसकी उदासी का कारण पूछा तो घोड़े ने उस लोमड़ी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई।
हालांकि लोमड़ी सबसे चालाक जीवों में से एक होती है लेकिन वह लोमड़ी चालाक होने के साथ ही अच्छे स्वभाव की भी थी। इसलिए उसने घोड़े की मदद करने की ठानी। उसने घोड़े से कहा- शेर की खाल दिलवाने में मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगी लेकिन जो मैं कहुं, तुम्हें वही करना होगा।
घो़ड़ा लोमड़ी की बात से राजी हो गया तो लोमडी ने उसे कहा कि- तुम जमीन पर इस प्रकार से लेट जाओ, जिससे कि जो भी तुम्हे देखे, उसे यही लगे कि तुम मर चुके हो और जैसे ही मैं कहूं, तुम उठकर जितना तेजी से भाग सकते हो उतना तेजी से भागना।
जैसा लोमड़ी ने कहा, घोड़े ने वैसा ही किया और वह जमीन पर एक मरे हुए जानवर की तरह लेट गया।
फिर लोमड़ी वहाँ से एक वृद्ध शेर के पास गई जो कि स्वयं अब शिकार करके भोजन जुटाने में असमर्थ था और मरे हुए जीवों को खाकर ही अपनी जिन्दगी के अन्तिम दिन बिता रहा था और लोमडी की उस शेर से पुरानी दुश्मनी थी, क्योंकि उस वृद्ध शेर ने उस लोमडी के बच्चों को मार दिया था तथा वह लोमडी भी उस शेर से अपना बदला लेना चाहती थी। सो, लोमडी ने जाते ही उस शेर से कहा- महाराज… वहाँ एक घोड़ा खुले मैदान में मरा हुआ पड़ा है… जिसे आप आसानी से अपना भोजन बना सकते हैं।
लोमडी की बात सुनकर शेर को थोडा आश्चर्य हुआ क्योंकि लोमडी बहुत ही चालाक और धूर्त जीव होता है जो स्वयं दूसरे के भोजन को छीनकर कर अपना भरण-पोषण करता है, फिर भी शेर को लगता है कि वह लोमड़ी उसका कुछ नहीं बिगाड सकती और यही सोंचकर वह लोमडी के साथ चल देता है तथा उस जगह पहुंचता है, जहां घोड़ा मरने का नाटक करके पड़ा हुआ होता है। घोडे के पास पहुंचते ही लोमड़ी शेर से कहती है- महाराज… ये घोडा सिर्फ हमारा भोजन है… लेकिन आप वृद्ध हो चुके हैं और मैं किसी बडे जानवर से मुकाबला करने में सक्षम नहीं हूं। इसलिए बेहतर यही होगा कि हम इस मृत घोडे को खींच कर झाडि़यों के पीछे ले जाऐं अन्यथा कोई न कोई बडा जानवर आकर हमारे इस भोजन को हमसे छीन लेगा और हम कुछ न कर सकेंगे।
शेर को भी लोमडी की बात सही लगती है, उसे लगता है कि लोमडी अकेले इस घोडे को खींचकर झाडि़यों के पीछे नहीं ले जा सकती, इसीलिए उसने उसे भी इस मृत घोडे के भोजन का हिस्सेदार बनाया है अन्यथा उसे बुलाने का तो कोई कारण ही नहीं है। ये बात सोंचकर शेर, लोमडी की तरफ से थोडा लापरवाह हो जाता है और लोमडी से कहता है- बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन क्योंकि मैं स्वयं काफी वृद्ध हो चुका हुं, इसलिए मैं अकेला इसे खींचकर झाडि़यों के पीछे नहीं ले जा सकता।
लोमडी कहती है कि- ऐसा करते हैं कि इसे खींचने के लिए मैं आपकी पूंछ घोडे के पिछले दाऐं पैर से बांध देती हूँ और मेरी पूंछ इसके पिछले बाएें पैर से बांध देती हूँ। फिर हम दोनों मिलकर इस मृत घोडे को आसानी से झाडि़यों के पीछे ले जा सकेंगे।
शेर लोमडी की बात से सहमत हो जाता है और लोमड़ी, शेर की पूंछ को घोड़े के पिछले दाऐं पैर से बांध देती है लेकिन स्वयं की पूंछ घोडे के पिछले बाऐं पैर से बांधने के बजाए घोड़े को कहती है- जल्दी से उठो और भागो।
घोडा लोमडी के कहे अनुसार भागने के लिए पहले से ही पूरी तरह से तैयार था, सो लोमडी का आदेश सुनते ही वह तेजी से उठा और अपनी पूर्ण शक्ति के साथ तेजी से भागने लगा और ये घटना इतनी तेजी से घटी कि शेर को सम्भलने का मौका ही नही मिला बल्कि उसे कुछ समझ में आता, इससे पहले ही वह जमीन पर गिरकर घोड़े के पीछे-पीछे घिसटते हुए चला जा रहा था।
घोड़ा इतनी तेजी से भाग रहा था की शेर का शरीर कभी किसी पत्थर से टकराता तो कभी कंटीली झाडि़यों में फंस जाता और क्योंकि वह शेर काफी वृद्ध था, इसलिए ज्यादा देर तक इस स्थिति को सहन न कर सका। परिणामस्वरूप जल्दी ही उसकी मृत्यु हो गई और घोडा उस मृत शेर को लेकर अपने लालची मालिक के पास पहुंचा और जैसा उसने कहा था, अपनी इस बात को साबित किया कि घोडा चाहे जितना वृद्ध हो जाए, मालिक के लिए सदा उपयोगी रहता है।
लेकिन इस पूरी घटना से घोडे को अपने मालिक के लालची होने का पता चल गया था। उसे ये भी अहसास हुआ कि एक घोडा कभी भी शेर की खाल नहीं ला सकता, ये बात मालिक को भी पता होगी, और मुझसे पीछा छुडाने के लिए ही मालिक ने मुझे एक असम्भव सा काम करने के लिए कहा ताकि यदि मैं शेर की खाल लेने जाऊं, तो या तो शेर ही मुझे मार कर खा जाए, अथवा यदि मैं शेर की खाल न ला सकुं, तो स्वयं ही घर छोडकर जाना पडे।
हालांकि उसने मालिक की शर्त पूरी करते हुए उसे शेर की खाल लाकर दे दी थी लेकिन इस तरह के कुटिल मालिक के पास रहने की अब उसकी बिल्कुल इच्छा नहीं थी। इसलिए वह स्वयं ही अपने लालची मालिक को छोडकर चला गया क्योंकि अब उसे विश्वास हो गया था कि जब शेर की खाल लाने जैसे असम्भव प्रतीत होने वाले कार्य को भी युक्तिपूर्ण तरीके से कोशिश करके सम्भव किया जा सकता है, तो फिर अपना जीवनयापन करने के लिए मालिक पर निर्भर रहने की क्या जरूरत है। अपना भरण-पोषण तो जंगल की घास, पत्तियां खाकर भी हो सकता है।
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जहां चाह होती है, वहां राह अपने अाप बनने लगती है। इस कहानी में लालची किसान ने घोडे को एक ऐसा काम करने के लिए कहा था, जो कि सामान्य परिस्थितियों में तो सम्भव ही नहीं है, लेकिन क्योंकि घोडा उस काम को करने हेतु तत्पर हुआ इसलिए सारी परिस्थितियां उसके अनुकूल होती चली गईं और अन्त में वह उस असम्भव काम को भी सफलतापूर्वक पूर्ण कर सका।
यही बात हम पर भी लागू होती है। यदि हम किसी असम्भव से लगने वाले काम को भी करने हेतु तत्पर हो जाऐं, तो उस काम को करने से सम्बंधित सभी परिस्थितियां अपने आप अनुकूल बनने लगती हैं।
इसलिए यदि आपके मन में कुछ करने की इच्छा है, लेकिन किसी कारणवश आप हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं, तो उठिए और एक कोशिश कीजिए। आप हैरान रह जाऐंगे ये देखकर कि आप जो करना चाहते थे, वह खुद भी होना चाहता था, केवल आपके पहला कदम उठाने भर की देर थी और जब एक बार आप शुरूआत कर देते हैं।
Jabarjast kahani.
Nice Story
nice story
तू रख हौसला वो मंजर भी आएगा ,
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा l
थक हार के ना रुकना ऐ मंजिल के मुसाफिर,
मंज़िल भी मिलेगी मिलने का मज़ा भी आएगा l
Very nice…
Thanks to comment and adding value to this post.
very good story.
Nice word
Please send more
very nice story………