Hindi Story for Kids – एक आश्रम में बहुत सारे बच्चे पढ़ते थे। जब उनकी शिक्षा पूरी हो जाती तो घर जाने से पहले उन्हें एक अन्तिम परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती थी। जो बच्चा उस परीक्षा में पास होता, उसे ही घर जाने दिया जाता था, जो फेल हो जाता था, उसे फिर से आश्रम में ही रहना पड़ता था।
आज भुवन और संजय की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। दोनों बड़े खुश थे कि आज वे अपने घर जा सकेंगे। आश्रम के द्वार पर दोनों के माता-पिता भी आ चुके थे। दोनों अपने-अपने परिवारों को देख उनसे मिलने दौड़े कि तभी गुरू ने कहा-
ठहरो।
दोनों रूक गए। गुरू ने उनसे कहा-
अभी तुम दोनों की आखिरी परीक्षा बाकी है।
दोनों ने एक साथ कहा-
जी गुरूवर
गुरू ने दोनों को एक-एक कबूतर देते हुए कहा-
इस कबूतर को किसी ऐसी जगह ले जाकर मारना, जहाँ कोई देख न रहा हो। जो इसे पहले मारकर ले आएगा, वह उत्तीर्ण माना जाएगा।
भुवन गया और एक सूनसान गुफा में कबूतर की मुंडी मरोड़ कर ले आया जबकि संजय को सुबह से शाम हो गई, लेकिन वह अभी तक नही लौटा। घर वाले भी परेशान होने लगे, लेकिन गुरू के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान थी। परिवार किसी अनहोनी की आशंका से मन ही मन संजय के कुशल होने की प्रार्थना करने लगा। तभी संजय उदास सा आता दिखाई दिया। उसके हाथ में कबूतर अभी भी जीवित था। वह नज़रें झुकाए आश्रम के अन्दर जाने लगा कि तभी गुरू जी ने उससे पूछा-
तुम इस तरह अन्दर क्यों जा रहे हो?
संजय ने उदास होकर कहा-
गुरूजी… आपके आदेशानुसार मैं कबूतर को नहीं मार पाया क्योंकि कोई भी ना देखे ऐसी कोई सूनसान जगह मुझे कहीं मिली ही नहीं। इसलिए मैं आपकी इस अन्तिम परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया हुँ इसलिए नियमानुसार पुन: आश्रम में जा रहा हुँ।
गुरू ने कहा-
विस्तार से पूरी बात बताओ।
संजय ने कहा-
गुरूवर… मैं इंसानो से दूर जंगल में गया, तो वहाँ जानवर देख रहे थे। जंगल में और अन्दर तक गया, तो वहां जानवर तो नहीं थे लेकिन पेड़-पौधे अवश्य देख रहे थे। मैंने सोचा इस कबूतर को समुन्द्र में ले जाकर मांरू, तो वहाँ मछलियाँ देख रही थीं। पहाड़ पर गया तो वहाँ का सन्नाटा देख रहा था। गुफा में गया, तो अंधकार देख रहा था और इन सबके बीच मैं खुद तो सतत इस कबूतर को देख ही रहा था जबकि आपने कहा था कि मारते समय इसे कोई भी न देखे।
इसलिए मैं ऐसी कोई जगह तलाश नहीं कर पाया, जहां मुझे ये कृत्य करते हुए कोई भी न देख रहा हो।
संजय का जवाब सुनकर भुवन आश्रम के अन्दर की ओर जाने लगा लेकिन गुरूजी ने उसे नहीं रोका क्योंकि उसे पता चल चुका था कि उसका ज्ञान अभी अधूरा है और वास्तव में वो अपनी अन्तिम परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया है न कि संजय।
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इस कहानी का Moral मात्र इतना ही है कि कोई भी काम करते समय यदि अाप केवल इतना ध्यान रख लें कि आपको कोई तो हर समय सतत देख ही रहा है, तो आप कभी भी कोई गलत काम नहीं कर सकेंगे।
Very good story I like this one very much
Sorry khani achhi . But Etna gyani guru jeev hatya ke liye bole . Jo ki ek ladke me ki hai. Is liye sahi mayne me guru fail hua . Hum Khan ko jite hai name ki padhte hai
This is really very true story.
Great story.