Hindi Kahaniya with Moral – एक समय की बात है। एक पहलवान योद्धा, जिसे लोग बलवीर के नाम से जानते थे, पहलवानी करता था।
उसे पहलवानी का बहुत ज्ञान था इसलिए उसने एक स्कूल खोला, जिसमें वह लोगों को पहलवानी सिखाया करता था और उसके स्कूल में पहलवानी सीखने काफी लोग आते थे।
बलवीर एक दयालु और नेक दिल आदमी था। वह हमेंशा सबकी सहायता करता था। यहां तक कि वह कुश्ती करके जो कुछ भी ईनाम स्वरूप धन कमाता था, वह भी लौगों को बांट देता था अथवा किसी की जरूरत को पूरा कर देता था।
वैसे तो बलवीर जब जवान था, तब वह कई बार पहलवानी की प्रतियोगिताओं में विजयी हुआ था लेकिन अब वह बूढा हो चुका था, इसलिए अब उसने पहलवानी करना छोड दी थी।
एक दिन की बात है, एक विदेशी पहलवान, जिसने बलवीर की कुश्ती के बारे में बहुत सुना था, उसके साथ कुश्ती करने के लिए उसके गाँव आ गया और अपने साथ कुश्ती करने के लिए ललकारा। लेकिन बलवीर बडे ही शांत स्वभाव से उस विदेशी को अपने आतिथ्य गृह में ले गया और आराम करने के लिए कहा। विदेशी नौजवान बड़ा हस्ठ-पुस्ठ था। वह कभी किसी कुश्ती में नही हारा था, जिसका उसे बहुत घमण्ड था और इसी घमण्ड के कारण विदेशी ने बलवीर से कहा-
बलवीर… मैं यहां तुम्हारे देश में आराम करने के लिए नहीं आया हुँ, बल्कि तुमसे कुश्ती करने आया हुँ।
बलवीर ने बडे ही शांत स्वभाव से कहा-
मैं तो बूढा हो चला हुँ और मैने कुश्ती छोड़ भी दी है। मैं तुमसे क्या कुश्ती करू? मैं तो केवल अब कुश्ती सिखाता हुँ।
लेकिन विदेशी को लग रहा था की बलवीर उससे डर रहा है, इसलिए उससे कुश्ती करना नही चाहता। फलस्वरूप उसका अंहकार और बढ़ गया। वह बलवीर से बार-बार यही कह रहा था कि या तो मुझसे कुश्ती करो या हार मान लो। विदेशी ने एक बार फिर से कहा-
बलवीर… मैं सारी दुनिया से कुश्ती कर आया हुँ और सभी को मैने हार का रास्ता दिखा दिया है। केवल तुम ही बचे हो। तुम्हे हराने के बाद मैं विश्व विजेता बन जाउंगा।
विदेशी की ये बात सुन कर बलवीर के एक शिष्य ने कहा-
गुरूदेव… अगर आप आज्ञा दें, तो मैं इस विदेशी को अभी धूल चटाकर इसका सारा घमन्ड उतार देता हुँ।
बलवीर ने शिष्य को समझाया कि-
कभी क्रोध नहीं करना चाहिए। कौध और अंहकार ही ऐसे दो तत्व हैं जो मनुष्य के नाश का कारण होते हैं।
लेकिन विदेशी ने ठीक उसी समय बलवीर पर हमला कर दिया और बलवीर ने अपनी सजगता से एक ही पटकनी मैं विदेशी को धुल चटा दी। फिर दूसरी पटकनी में उसे दंगल से बाहर फैंक दिया। एक बार तो विदेशी के होश ही उड़ गए। वह समझ ही नहीं पाया कि हुआ क्या? उसे तो चक्कर आने लगे थे। जब वह उठा और थोडा बहुत होश में आया तो उसने सुना कि बलवीर के शिष्य ”जय गुरू देव जय गुरू देव” के नारे लगा रहे थे। विदेशी, बलवीर के पास आया और कहने लगा-
बलवीर… मैने तुम पर हमला किया लेकिन मैं ही बेहोश हो गया, ये कैसे हुआ?
बलवीर ने कहा-
हे मित्र… कुश्ती, एक खैल है न कि कोई युद्ध। इसे खेल समझ कर खेलो, जिससे तुम्हारा भी मनोरंजन हो सके और लोगों का भी।
तुमने छल से मुझ पर हमला किया और छल से किया हुआ सारा काम अन्याय ही होता है। इसका मतलब ये हुआ कि तुम विश्व विजेता बनने के लिए केवल मात्र कपट का ही सहारा ले रहे हो।
दंगल, मेरे लिए मंदिर है और तुम्हारे लिए युद्ध का मैदान।
विदेशी को अपने किये हुए पर बड़ा पछतावा हुआ और उसने शर्मिन्दा होते हुए बलवीर से माफी मांगी। विदेशी ने बलवीर से कहा-
बलवीर… आप सही कह रहे हो। मुझे तो इस बात का दंभ था कि मैं आपको हरा कर विश्व विजेता बन जाउंगा। लेकिन आप तो मुझे ही हराकर विश्व विजेता बन गए। मैं आपको प्रणाम करता हुँ।
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इस कहानी का Moral ये है कि खेल को खेल की तरह ही खेलना चाहिए न कि जीतने की लालसा में युद्ध की तरह, क्योंकि युद्ध मे हमेंशा नुकशान ही होता है।
this is nice story
बहुत ही बढ़िया Post..