
Guru Purnima in Hindi
Guru Purnima in Hindi- सनातन धर्म में गुरू का दर्जा भगवान से भी ऊपर माना जाता है। इसीलिए आषाढ़ मास की पूर्णिमा का विषेश महत्व है। गुरु और शिक्षक के महत्त्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है। व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव के कारण मनाया जाता है। गुरुवर का आशीर्वाद शिष्यों के लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए गुरु पूर्णिमा दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद लिया जाता है। सिख धर्म में इस पर्व का महत्व अधिक महत्व है,इस क्योंकि सिख इतिहास में उनके दस गुरुओं का बेहद महत्व रहा है।
गुरूपूणिर्मा की मान्यता
गुरूपूणिर्मा के दिन प्रथम गुरू महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसी कारण से आषाढ़ मास की पूणिर्मा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजा का विधान है, क्योंकि गुरू न सिर्फ निर्भय होकर सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा देते हैं, बल्कि हमारी चेतना जाग्रत कर अध्यात्म पथ पर भी अग्रसर करते है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के शुरूआत में आती है। गुरु पूर्णिमा से सभी साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ‘चातुर्मास’ करते है। ‘चातुर्मास‘ मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होता हैं। गुरूपूणिर्मा का समय आत्म-वैभव को पाने और अपने ज्ञान को जाग्रत करने का समय होता है। गुरू की प्रेरणा से धर्म जागरण में वृद्धि होती है।
वर्षा ऋतु होने के कारण इस समय न ज्यादा गर्मी और न ज्यादा सर्दी होती है। इसलिए आत्म-ज्ञान के लिए यह दिन भी उपयुक्त माना जाता हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
गुरू का जीवन में महत्व
‘गुरु’ शब्द में ‘गु’ का अर्थ है ‘अंधकार’ और ‘रु’ का अर्थ है ‘प्रकाश’ अर्थात गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक’। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और जो उचित हो उस ओर शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे। आषाढ़ की पूनम को ही गुरूपूर्णिमा के लिए चुनने के पीछे बहुत ही गहरा अर्थ है। गुरु, पूर्णिमा के चाँद की तरह पूरी तरह से प्रकाशमान हैं। लेकिन शिष्य आषाढ़ मास के बादलों की तरह है। आषाढ़ मास में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे रहते है। गुरू के बिना जीवन अन्धकार मय होता है और केवल गुरू ही इस अन्धकार मय जीवन से निकाल सकता है। इसलिए जीवन में गुरू का बड़ा ही महत्व है।
गुरूपूणिर्मा का महत्व
गुरूपूणिर्मा पूरी दूनियां सहीत भारत भर में बहुत ही श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करता था, तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर शिष्य अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मन्दिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं। गुरु पूर्णिमा के त्योहार के दिन लाखों श्रद्धालु ब्रज में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन बंगाली साधु सिर मुंडाकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, ब्रज में इसे मुड़िया पूनों नाम से जाना जाता है।
गुरु का सम्मान
धार्मिक गुरु के प्रति भक्ति की परम्परा भारत में बहुत पूरानी है। प्राचीन काल में गुरु की आज्ञा का पालन करना शिष्य का परम धर्म होता था। भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली में वेदों का ज्ञान व्यक्तिगत रूप से गुरुओं द्वारा मौखिक शिक्षा के माध्यम से शिष्यों को दिया जाता था। गुरु को शिष्य का दूसरा पिता माना जाता था। प्राचीन काल में प्राकृतिक पिता से भी अधिक आदरणीय गुरू का होता। वेदों में गुरू की महिमा बताने के लिए कहा गया है।
‘गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा:
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।’
माता-पिता के बाद गुरू का जीवन में विशेष स्थान होना चाहिए तो वह हैं। माता-पिता केवल बच्चे को जन्म देते है, लेकिन उसे जीवन की कठिन राह पर मजबूती से खड़े रहने की हिम्मत एक गुरू ही दे सकता है। गुरु के इसी महत्व को दर्शाने का शायद ही गुरूपूणिर्मा से अच्छा दिन कोई हो सकता है। भारतीय परम्परा में गुरु को गोविंद से भी ऊंचा माना गया है, इसलिए यह दिन गुरु की पूजा का विशेष दिन है। ज्ञान देने वाले शिक्षक को भी गुरु के बराबर हमेशा सम्मान करना चाहिए। क्योंकि शिक्षक ही हमें कई विषयो के बारे में हमे शिक्षित करता है।
गुरूपूणिर्मा के लाभ
हिन्दू परम्परा के अनुसार गुरु पूर्णिमा गुरु के प्रति सिर छुकाकर उनके प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है। ऐसा माना जाता है कि गुरु पूर्णिमा को गुरु की पूजा करने से ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। हमारे अटके कामों में हमें सफलता मिलती है और जीवन में आने वाले किसी अनिष्ट कारक का नाश हो जाता है।
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