Shri Ganesh Pooja Vidhi- हिंदू संस्कृति में भगवान श्री गणेश का स्थान सर्वोपरी है। प्रत्येक शुभ कार्य से पहले भगवान श्री गणेश का आह्वान जरूरी है। सनातन धर्म में गौरी पुत्र श्री गणेश को सभी देवी-देवताओं से पहले पूजा जाता है। श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनोवांछित फल प्रदान करने वाले भगवान श्री गणेश के पूजन करने से अनेक प्रकार की इच्छाए पूर्ण होती है।
तो आईए जानते है प्रथम पूज्य श्री गणेश के पूजा मंत्र और पूजा विधि-
भगवान श्री गणेश पूजा विधि
सर्वप्रथम निम्न मंत्र से अखण्ड दीपक जलाना चाहिए।
ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते।
निम्न मंत्र पढ़ते हुए अखण्ड दीप प्रज्ज्वलित करें।
ॐ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
उसके बाद हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर निम्न मन्त्रों से गणपति का ध्यान करें।
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
भगवान गणेश का आवाहन
ॐ गणानां त्वा गणापतिहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ग हवामहे वसो मम।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
पूजन के समय श्री गणेश का ध्यान मंत्र।
खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम।
दंताघातविदारितारिरूधिरैः सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्।।
भगवान श्री गणेश को सर्वप्रथम शुद्ध जल से नहलाने के बाद निम्न मंत्रों के जाप के साथ उन्हे अक्षत के साथ आसन देना चाहिए।
निषु सीड गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम्।
न ऋते त्वत् क्रियते किंचनारे महामर्कं मघवन्चित्रमर्च।।
आसन के बाद भगवान श्री गणेश को निम्न मंत्रों के द्वारा पुष्प-माला अर्पण करना चाहिए।
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः।।
पुष्प-माला अर्पण करने के बाद गणपति भगवान को यज्ञोपवीत अर्पण करना चाहिए।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।
गणपति भगवान को यज्ञोपवीत अर्पण करने के बाद उन्हें सिन्दूर अर्पण करना चाहिए।
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।
निम्न मंत्र के द्वारा भगवान श्री गणेश को नैवेद्य अर्पण करना चाहिए।
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू। ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम्।
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च। आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद।।
पूजा समाप्ति के बाद भगवान भालचंद्र को हाथ जोड़ कर निम्न मंत्रों के साथ प्रणाम करना चाहिए।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
श्री गणेश गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
अन्त में निम्न मंत्र के द्वारा भगवान श्री गणेश जी का स्मरण करना चाहिए।
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय।।
पूजा को समाप्त करने के बाद क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए। क्योंकि मंत्रों को पढ़ने में या अन्य किसी भी प्रकार से हुए अपराध के लिए क्षमा-प्रार्थना करना आवश्यक होता है।
ॐ अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः।।
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु।।
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रोन्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि।।
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि।।
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसात्सुरेश्वरि।।
सनातन एवं हिंदू शास्त्रों में भगवान श्री गणेश को सभी दुखों और परेशानियों को हरने वाला देवता बताया गया है। गणेश भक्ति से शनि समेत सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। प्रत्येक बुधवार को गणेश उपासना करने से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है। साथ ही उसकी सभी रुकावट दूर होती हैं।शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्री गणेश के पूजन में तुलसी दल और तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें किसी शुद्ध स्थान से चुनी हुई दुर्वा (दूब घास) को धोकर ही चढ़ाना चाहिए।
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