
भारत के प्रथम राष्ट्रिपति- Dr. Rajendra Prasad in Hindi
Dr. Rajendra Prasad का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। Dr. Rajendra Prasad के पिता महादेव सहाय थे, जिन्हें संस्कृत और फारसी का अच्छा ज्ञान था, लेकिन उनकी माँ कमलेश्वरी देवी एक धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। Dr. Rajendra Prasad का विवाह 13 वर्ष की अल्प आयु में ही राजवंशी देवी से हो गया था। Dr. Rajendra Prasad अपने पूरे परिवार में सबसे छोटे थे इसलिए घर के सभी लोग उन्हे बहुत दुलार करते थे।
Dr. Rajendra Prasad को होली का त्योहार बहुत पसन्द था, लेकिन वे अपने मुस्लिम दोस्तो के साथ मुहर्रम पर हिन्दू ताजिए भी निकाला करते थे।
Dr. Rajendra Prasad की शुरूआती शिक्षा छपरा जिला स्कूल में हुई और आगे की पढ़ाई के लिए पटना जाना पड़ा। कोलकाता के प्रसिद्ध Presidency College में सन् 1902 में उन्होंने Admission लिया और सन् 1915 में उन्हे Gold Medal के साथ Law Masters की परीक्षा पास की, इसके बाद Law के क्षेत्र में ही उन्होंने Doctorate की उपाधि भी मिली।
सन् 1952 में Dr. Rajendra Prasad को पहली बार चुनी हुई संसद ने विधिवत आजाद देश का पहला राष्ट्रपति बनाया गया। 13 मई 1952 को उन्होंने राष्ट्रपति पद की व इसकी गोपनीयता की शपथ ली। Dr. Rajendra Prasad को 26 जनवरी 1950 को पहली बार राष्ट्रपति बनने पर 13 तोपों की सलामी दी गयी थी।
13 मई 1957 को दूसरी बार उन्होंने इस पद को सुशोभित करने का इतिहास रचा। केवल Dr. Rajendra Prasad ही भारत के दो बार राष्ट्रपति बने हैं, लेकिन जब तीसरी बार Dr. Rajendra Prasad को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए कहा गया तब उन्होंने दमा होने के कारण इसके लिए मना कर दिया, लेकिन वे समाज सेवा से अलग नहीं हुए। सन् 1946 में Constitution Assembly में उन्हें अध्यक्ष चुना गया। जिसे 26 जनवरी 1950 को Republic Day के दिन लागु किया गया था।
Dr. Rajendra Prasad सादगी और सरलता से हर किसी को प्रभावित कर देने वाले विद्वान थे। लोग इन्हे आदर और प्यार से राजेन्द्र बाबू कहा कहते थे, वे राष्ट्रपति भवन में सत्यनारायण की कथा का आयोजान भी करवाया करते थे।
सन् 1962 में Dr. Rajendra Prasad को भारत-रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया, लेकिन भारतवासी उन्हें बहुत पहले ही देश-रत्न कहकर पुकारते थे। Dr. Rajendra Prasad के व्यवहार, और कार्यो से प्रभावित होकर प्रसिद्ध लेखिका सरोजिनी नायडू ने कहा था ‘’Dr. Rajendra Prasad की जीवन की कहानी सोने की कलम से मधु में डूबा कर लिखनी होगी।‘’
Dr. Rajendra Prasad महात्मा गांधी के साथ भारत के स्वाधीनता आंदोलन के मुख्य नेता भी रहे हैं। और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई।
Dr. Rajendra Prasad ने अपने जीवन के आख़िरी महीने पटना के निकट सदाकत आश्रम में बिताए और यहीं 28 फ़रवरी 1963 को उनके जीवन की कहानी समाप्त हो गई, Dr. Rajendra Prasad का देहांत हो गया। वे सदा राष्ट्र को प्रेरणा देते रहेंगे, देश और हमें उन पर गर्व हैं।
I am very happy to see such a good note