Chandra Graha in Hindi – Astronomy के अनुसार जो पिण्ड सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है, उसे ग्रह कहते हैं और जो पिण्ड किसी ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाता है, उसे उपग्रह अथवा उस ग्रह का चन्द्रमा कहते हैं।
इसलिए हमारा चांद वास्तव में हमारे पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने वाला एक उपग्रह है, इसलिए ये हमारी पृथ्वी का इकलौता चन्द्रमा है, जबकि मंगल ग्रह के चारों ओर दो पिण्ड चक्कर लगाते हैं, इसलिए वास्तव में मंगल ग्रह के दो चन्द्रमा यानी दो उपग्रह हैंं।
Astronomy के अनुसार उपग्रहों की अपनी मुख्य विषेशता यही है कि हालांकि ये रात्रि के समय काफी चमकीले दिखाई देते हैं, लेकिन इनका स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता, बल्कि सभी चन्द्रमा मूलत: अपने सूर्य के प्रकाश का परावर्तन करते हैं।
चूंकि Modern Science के अनुसार कभी भी प्रकाश का पूर्ण परावर्तन सम्भव नहीं होता, इसलिए जिस Object से प्रकाश की किरणें टकरा कर परावर्तित होती हैं, वह Object प्रकाश के कुछ हिस्से का अवशोषण कर लेता है, फलस्वरूप परावर्तन के बाद चन्द्रमा से जाे प्रकाश Return होता है, वह सूर्य द्वारा परावर्तित गर्म प्रकाश किरणे ही होती हैं, लेकिन परावर्तन के दौरान प्रकाश की तरंगों व कणों के अवशोषण के कारण उसकी गर्मी व गति में काफी परिवर्तन हो जाता है, जिसकी वजह से सूर्य का वही गर्म प्रकाश, परावर्तन के बाद पृथ्वी तक पहुंचते-पहुंचते काफी ठण्डा व शीतल हो जाता है।
सभी ग्रहों के अपने-अपने चन्द्रमा होते है, लेकिन पृथ्वी का इकलाैता चन्द्रमा, सूर्य के बाद पृथ्वी के लिए दूसरा सबसे प्रमुख ग्रह है, क्योंकि ये रात्रि के समय पृथ्वी पर अपना अमृतमय प्रकाश बिखेरता है। अलग-अलग ग्रहों के चन्द्रमा, अपने ग्रह का एक पूर्ण परिभ्रमण करने में अलग-अलग समय लेते हैं और इसी कड़ी में हमारा चन्द्रमा, पृथ्वी का एक पूर्ण परिभ्रमण करने में 27 दिन लगाता है।
चूंकि हमारा चन्द्रमा, पृथ्वी का सबसे नजदीकी पिण्ड है और सूर्य के प्रकाश के परावर्तन का सबसे अधिक परवर्तित प्रकाश पृथ्वी पर ही पहुंचता है, इसलिए हमारा चन्द्रमा न केवल सबसे तेज गति से भ्रमण करता हुआ प्रतीत होता है, बल्कि सूर्य के बाद सबसे अधिक चमकीला व प्रकाशमान भी मालूम पड़ता है।
Astronomy के अनुसार “1969 में अपोलो मिशन“ के माध्यम से मानव ने चन्द्रमा की धरती पर उतरने का श्रेय प्राप्त किया और ये पाया कि चन्द्रमा की धरती एक वीरान प्रदेश है, जहां किसी भी प्रकार से पृथ्वी जैसा वायुमण्डल नहीं है, इसलिए चन्द्रमा पर पृथ्वी जैसा जीवन होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। साथ ही चन्द्रमा का गुरूत्वाकर्षण बल, पृथ्वी की तुलना में 1/6 है, इसलिए वहाँ चलते-फिरते समय मानव भारहीनता की स्थिति अनुभव करता है।
फलित ज्योतिष (Astrology) में अनुसार चन्द्रमा को मूलत: जल का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है और हमारे फलित ज्योतिष शास्त्र का निर्माण करने वाले मनीषियों ने चन्द्रमा को इसीलिए जल का कारक ग्रह माना होगा, क्योंकि चन्द्रमा रात्रि में बहुत ही शीतल प्रकाश बिखेरता है और हमारे पुराने मनीषियों ने सोंचा होगा कि चन्द्रमा पर बहुत सारा जल होने की वजह से ही वहां से आने वाला प्रकाश इतना शीतल होता है। लेकिन Modern Science ने अपने अपोलो मिशन में इस बात को साबित किया है कि चन्द्रमा एक सूखा व वीरान प्रदेश है, जहां जल नाम की कोई चीज नहीं है। इसलिए Astronomers के अनुसार चन्द्रमा का जल से कोई सम्बंध नहीं है।
हालांकि Modern Science भी इस बात को पूरी तरह से स्वीकार करता है कि पूर्णिमा व अमावस्या के समय जब चन्द्रमा, पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक होता है, तब पृथ्वी के समुद्रों में सबसे बड़े ज्वार-भाटा होते हैं और इतने बड़े ज्यार-भाटा का मूल कारण चन्द्रमा की गुरूत्वाकर्षण शक्ति ही है, जो कि मूल रूप से पृथ्वी के समुद्री जल काे ही सर्वाधिक आकर्षित करता है।
Astronomy व Astrology के बीच जो द्वंद है, उसका एक मुख्य कारण ये भी है कि Astronomy, चीजों के Physical अस्तित्व के आधार पर ही अपने निर्णयों लेता है, इसलिए Astronomers के अनुसार चन्द्रमा पर कोई जल न होने की वजह से उसका जल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता, जबकि Astrology में चीजों के Physical अस्तित्व के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी स्थितियों आधार पर (जैसे कि पूर्णिमा, अमावस्या, ग्रहण-काल आदि के समय) उनके प्रभावों का निर्णय लिया जाता है, इसलिए जब हमारे फलित ज्योतिष के मनीषियों ने पाया कि पूर्णिमा व अमावस्या के समय ही समुद्रों में बड़े ज्यार-भाटा होते हैं, तो उन्होंने निश्चित किया कि चन्द्रमा, मूलत: पृथ्वी के जल को ही अधिक प्रभावित करता है, क्योंकि जल के अलावा कोई अन्य वस्तु पूर्णिमा व अमावस्या के समय उतना प्रभावित नहीं हो रही थी, जितना की जल।
हालांकि Modern Scientist भी ये मानते हैं कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर लगभग 75% भू-भाग पर समुद्र का खारा जल है और इन्हीं Modern Scientists ने से भी सिद्ध किया है कि मनुष्य का शरीर भी लगभग 75% पानी से बना है तथा ये पानी भी लगभग उसी अनुपात में और उतना ही खारा है, जितना कि समुद्री जल। यानी सरलतम शब्दों में कहें तो हमारा शरीर लगभए एक छोटे समुद्र के समान है। तो जब Modern Science के अनुसार चन्द्रमा के गुरूत्वाकर्षण का प्रभाव समुद्र के पानी पर पड़ता है, तो उसी मात्रा में वैसा ही प्रभाव मानव शरीर पर क्यों नहीं पड़ेेगा?
Astrology व Astrology दोनों के अनुसार पृथ्वी के लिए सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा की गति तुलनात्मक रूप से अधिक तेज है। अत: वह समस्त 27 नक्षत्र क्षैत्रों से आगे रहता है। परिणामस्वरूप चन्द्रमा, सूर्य के एक वर्ष के मार्ग को मात्र एक मास में, एक मास के मार्ग को मात्र सवा-दो दिन में तथा एक पखवाड़े के मार्ग को मात्र एक दिन में ही पूरा कर लेता है।
इसलिए फलित ज्योतिष में चन्द्रमा को कल्पनाओं का कारण माना गया है क्योंकि कल्पनाओं की गति, प्रकाश की गति से भी अधिक तेज होती है और इसीलिए चन्द्रमा को वेदों में चन्द्रमा मनसो जात: (चन्द्रमा मानव मन की तरह) कहा गया है यानी चन्द्रमा को मन का स्वामी कहा गया है और फलित ज्योतिष के अनुसार माना जाता है कि चन्द्रमा ही मानव मन को सर्वाधिक प्रभावित करता है।
Modern Science कहता है कि मानव का दिमाग मूल रूप से 80% पानी से बना होता है और हमारे भोजन द्वारा जीवन जीने के लिए जितनी भी उर्जा ये शरीर Generate करता है, उसकी 80% उर्जा का उपयोग केवल दिमाग द्वारा किया जाता है क्योंकि शरीर के काम करना बन्द कर देने (सो जाने, बेहोश हो जाने अथवा शिथिल हो जाने) पर भी दिमाग यानी मन अपना काम करता रहता है। यानी मन, मनुष्य के शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी वजह से ये तय होता है कि व्यक्ति जीवित है या नहीं। यदि व्यक्ति का मन मर जाए, तो शरीर जीवित होने पर भी उसे मृत समान ही माना जाता है, जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में कोमा की स्थिति कहते हैं और भारतीय फलित ज्योतिष के अनुसार मन का कारक ग्रह चन्द्रमा है।
भारतीय फलित ज्योतिष में चन्द्रमा को ही मन का स्वामी इसलिए माना गया है क्योंकि चन्द्रमा, जल का स्वामी है, इसलिए जहां कहीं भी जल की अधिकता होगी, उसे चन्द्रमा प्रभावित करेगा ही क्योंकि Modern Scientists द्वारा Proved ज्यार-भाटा की घटना से ये साबित है कि चन्द्रमा जल को आकर्षित यानी प्रभावित करता है और Modern वैज्ञानिकों ने ही ये भी साबित किया है कि हमारे दिमाग का 80% हिस्सा मूलत: जल है। तो यदि चन्द्रमा का प्रभाव समुद्र के जल पर पड़ता है, तो निश्चित रूप से मनुष्य के मन पर भी पड़ना ही चाहिए और यदि चन्द्रमा का प्रभाव समुद्र में होने वाले बड़े ज्वार-भाटा का कारण है, तो मनुष्य के मन में होने वाले विचारों के ज्यार-भाटा का कारण भी चन्द्रमा ही है।
भारतीय फलित ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा वैश्य (वणिज या बनिया) जाति का है, इसलिए जिन लोगों पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक होता है, वे अच्छे व्यापारी हो सकते हैं। साथ ही चन्द्रमा को चर (Movable) प्रकृति का माना गया है, इसलिए चंद्र प्रभावित व्यक्ति काफी चंचल स्वभाव के व बहुत ही तेज गति से Decision Change करने वाले होते हैं। ये किसी एक जगह पर बैठकर लम्बे समय तक कोई काम नहीं कर सकते। यानी चंद्रमा से प्रभावित व्यक्ति लम्बे समय तक एक ही Profession में नहीं रह सकते । उदाहरण के लिए ये कोई दुकान लगाकर नहीं बैठ सकते जहां लगातार एक ही जगह पर बैठकर Customers के आने का Wait करना होता है।
इनकी वाणी काफी मीठी यानी अच्छी होती है और ऐसे लोगोंं की सफलता/असफलता का एक मुख्य कारण इनकी वाणी भी होता है। चंद्रमा प्रभावित व्यक्ति सुन्दर व गौरे रंग के होते हैं और अक्सर औरतों की तरह काफी शर्मीले भी होते हैं क्योंकि चंद्रमा को फलित ज्योतिष में एक स्त्री ग्रह माना जाता है।
चन्द्रमा का जल व जल से सम्बंधित चीजों जैसे कि समुद्र, जलाशय, वर्षा ऋतु आदि पर अधिक होता है। साथ ही वास्तु-शास्त्र में चन्द्रमा को व्याव्य दिशा का स्वामी माना जाता है क्योंकि वायु भी चन्द्रमा की तरह ही बहुत तेज गति से गमन करता है और बहुत ही चंचल होता है।
चंद्रमा को शरीर के रूधिर का कारण भी माना जाता है क्योंकि शरीर का रूधिर मूलत: Liquid यानी जल होता है और जल को चन्द्रमा ही सर्वाधिक प्रभावित करता है।
चन्द्रमा को सोम वार का स्वामी माना जाता है और अंक शास्त्र के अनुसार अंक 2 और 7 पर चंद्रमा का अत्यधिक प्रभाव होता है।
फलित ज्योतिष के अनुसार सूर्य और बुध, चन्द्रमा के अच्छे मित्र हैं, जबकि मंगल, गुरू, शुक्र एवं शनि सम है व चंद्रमा के लिए बुध शुभ है। जबकि चन्द्रमा स्वयं किसी भी अन्य ग्रह को अपना शत्रु नहीं मानता, हालांकि शनि व शुक्र, चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और इसीलिए जब व्यक्ति की जन्म-कुण्डली के चन्द्रमा को शनि प्रभावित करता है, तो उसे शनी की ढैय्या व शनी की साढ़ेसाती के नाम से जाना जाता है।
जिस तरह से फलित-ज्योतिष में चंद्रमा किसी को अपना शत्रु नहींं मानता, उसी तरह से चन्द्रमा से प्रभावित व्यक्ति भी अपने जीवन में किसी को अपना शत्रु नहीं मानता, लेकिन फिर भी कई लोग उसे अपना शत्रु मानते हैं व उसे समय-समय पर तरह-तरह से नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं।
फलित ज्योतिष में चन्द्रमा को माता का कारक भी माना जाता है, इसलिए जिन लोगों का चन्द्रमा शुभ स्थिति में होता है, उन्हें उनकी माता का विशेष प्रेम प्राप्त होता है, जबकि दु:खद स्थिति वाले चन्दमा प्रभावित लोगों को अपनी माता के सुख की कमी का अनुभव करना पड़ता है। इसके अलावा मन व जल से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की बीमारियों जैसे कि मूत्र संबंधी रोग, दिमागी खराबी, पागलपन, हाईपर टेंशन आदि का सम्बंध भी चन्द्रमा से ही माना जाता है।
फलित ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा, मनुष्य के शरीर में कफ प्रवृति तथा जल अथवा तरल (Liquid) का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा शरीर के अंदर द्रव्यों की मात्रा, बल तथा बहाव को नियंत्रित करते हैं। इस कारण से चन्द्रमा प्रभावित व्यक्ति काा वजन समय के साथ-साथ काफी अधिक बढ़ जाता है, साथ ही व्यक्ति धीरे-धीरे अधिक नींद लेने वाला व आलसी प्रवृति का बन जाता है। इसलिए फलित ज्योतिष के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म-कुण्डली में चन्द्रमा कमजोर व अशुभ स्थिति में होता है, उसे सामान्यत: रत्न ज्योतिष के अनुसार मोती-रत्न को धारण करने तथा शिव आराधना करने की सलाह दी जाती है।
अब रत्न-विज्ञान जो कि मूलत: Modern Science के प्रकाश-विज्ञान तथा आराधना, जो कि Modern Science के मनोविज्ञान (Psychology) से सम्बंधित है, के बारे में हम किसी अन्य Article में विस्तार से चर्चा करेंगे व जानने की कोशिश करेंगे कि क्या सचमुच रत्न किसी भी तरह से हमारे जीवन को प्रभावित कर सकते हैं और क्या सचमुच ईश-आराधना का प्रभाव पड़ता है मनुष्य पर, या ये सब एक प्रकार की कपाेल-कल्पनाऐं व अन्ध-विश्वास मात्र ही हैं?
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