
माँ जगदम्बा के पूजन का दिन, चैत्र नवरात्रि- Chaitra Navaratri
Chaitra Navaratri- चैत्र नवरात्रि हिन्दूओं का एक प्रमख पर्व है और नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। चैत्र नवरात्रि को अनेक नामों से जाना जाता हैं जैसे- बंसन्त नवरात्रि, रामनवरात्रि (भगवान राम के जन्म दिन के रूप में) आदि। हिन्दूओं के पंचांग के अनुसार चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष का आरम्भ होता हैं, और वर्ष के पहले दिन से चैत्र नवरात्रि का भी आरम्भ होता हैं, जो अगले नौ दिनों तक चलता हैं।
लोग साल के प्रथम दिन से अगले नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा कर वर्ष का शुभारम्भ करते हैं। चैत्र नवरात्रि को वसन्त नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत में चैत्र नवरात्रि का ज्यादा महत्व हैं। महाराष्ट्र में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत गुड़ी पडवा से और आन्ध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में उगादी से शुरूआत मानी जाती हैं। सनातन धर्म के अनुसार गृहस्थ जीवन को बसाना, सुयोग्य जीवन साथी के साथ शास्त्रीय मर्यादा में विवाह करना धार्मिक कार्य है। इन सूत्रों में बंध कर व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम तथा जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है।
सनातन धर्म के अनुसार जब-जब इस धरती पर आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं के द्वारा मानव जीवन को नाश करने की कोशिश की है, तब-तब दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ। जैंसे- जब महिषासुरादि दैत्य के अत्याचार से धरती सहीत देव लोक परेशान हुए उस समय भगवान की प्रेरणा से शक्ति संपन्न देवी का अवतरण हुआ। आदि शक्ति माँ जगदम्बा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री बनीं। माँ जगदम्बा ने असूरों का नाश कर धरती और देवलोक में फिर से प्राणशक्ति का संचार कर दिया।
कैसे करते माँ जगदम्बा की आराधना-
नवरात्रि में माँ जगदम्बा की उपासना के अनेक तरीके हैं, लेकिन सबसे विश्वसनीय और श्रेष्ठ आधार ‘दुर्गा सप्तशती’ है। ‘दुर्गा सप्तशती’ में सात सौ श्लोकों के द्वारा माँ दुर्गा की देवी की पूजा, नियमित शुद्वता व पवित्रता से अगर की जाएँ तो निश्चित रूप से माँ दुर्गा प्रसन्न होकर अभीष्ट फल प्रदान करती हैं।
माँ जगदम्बा के नौ रूप-
माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया, भौतिक और आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं। माँ दुर्गा मनुष्य के प्रत्येक प्रकार के सुख को प्रदान करने वाली हैं और साथ ही अपने आशीष की छाया मनुष्य के प्रत्येक दुख को दूर कर सुख देती हैं।
शैलपुत्री- माँ दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री। पर्वतों के राजा हिमालय के यहाँ जन्म होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैल का अर्थ होता हैं पहाड़ इस कारण से इनका नाम शैलपुत्री पडा़ शैलपुत्री के पूजन से मनुष्य सदा सदा धनधान्य से परिपूर्ण रहता हैं।
ब्रह्मचारिणी- माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। माँ दुर्गा का यह रूप मनुष्य और साधकों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। ब्रह्मचारिणी की पूजा और उपासना से वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
चंद्रघंटा- माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा और माँ चंद्रघ्ंटा की उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
कुष्मांडा- चतुर्थी के दिन माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है। माँ कुष्मांडा की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।
स्कंदमाता- नवरात्रि के पाँचवे दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती हैं और स्कंदमाता की उपासना से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं और माँ स्कंदमाता अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूरी करती है।
कात्यायनी- माँ का छठा रूप कात्यायनी है। माँ कात्यायनी पूजा-अर्चना से अद्भुत शक्ति का संचार होता है और शत्रुओं का संहार करने में सक्षम बनाती हैं। माँ कात्यायनी का ध्यान गोधुली बेला में ही करना चाहिए।
कालरात्रि- नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती, तेज बढ़ता है और शत्रुओं का विनाश होता है।
माँ गौरी– देवी का आठवाँ रूप माँ गौरी है। माँ गौरी का पूजन अष्टमी के दिन किया जाता हैं। माँ गौरी का पूजन करने से सभी प्रकार के पापों का क्षय होता हैं और कांति बढ़ती है। सुख में वृद्धि होती है, शत्रु-शमन होता है।
माँ सिद्धिदात्री- नवरात्रि के अन्तिम दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना की जाती हैं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से मनुष्य को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है।
मनुष्य को अपनी सामर्थ अनुसार माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए और साधारण पूजा-अर्चना से भी जातक माँ दुर्गा की कृपा का पात्र बनता है। आपके लिए यहाँ साधारण मन्त्र दिए गए हैं जिनके नवरात्रि में केवल 108 जाप मात्र से ही अपने शत्रुओं से छुटकारा पाया जा सकता हैं।
शत्रुओं के नाश हेतु- ॐ ह्रीं बगुलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिव्हामकीलय बुद्धिविनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।
वाणी की शक्ति हेतु- ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम: ॐ वद बाग्वादिनि स्वाहा
वाणी की शक्ति को प्राप्त करने वाले को माँ वाघेश्वरी देवी के सामाने 108 मन्त्रों का जाप करने से वाणी की शक्ति मिलती है, जिससे वह जातक जो कहता है वह बात पूर्ण होती है। ऐसी मान्यता हैं।
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बहुत ही उम्दा लेख …. शानदार प्रस्तुति …. Thanks for sharing this!! ? ?