स्वच्छ भारत अभियान, जैसे एक नशा सा था। ऐसा नशा जो खुद नहीं, दूसरो को कराया जाए। जिसने भी हाथ मे झाडू पकड़ी, मानो यही संदेश दे रहा हो कि तुम भी पकड़ो। प्रधानमंत्री भी सबके हाथ में पकड़ाने को तैयार और मंत्री भी। सो, ये नशा धनिया के भी सिर चढ़ गया।
धनिया, एक समझदार लेकिन गरीब मजदूर था। वह ग्रामीण रोजगार योजना शुरू करने के लिए सरकार की सराहना करता था परंतु 100 ही दिन का रोजगार देने की एवज में उसी सरकार को कोसता भी था क्योंकि साल के बाकी के 265 दिन वह अपने गांव से पांच किलोमीटर दूर Industries Area में 200 रूपये की दिहाड़ी पर मजदूरी भी कर आता था।
Industries भी कोई मामूली नही, पूरे देश को सिर्फ उसी Industries से छाता सप्लाई होता है। छाते में लगने वाला हर पार्ट वहीं बनता है, वहीं Assemble होता है और वहीं से Sale भी होता है। लोग तीस-चालीस किलोमीटर दूर से भी वहां काम करने आते है अौर धनिया भी उसी छाता-करोबार का अपना सा पार्ट था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसे स्वच्छ भारत योजना के कारण परेशानी हो रही थी।
परेशानी का कारण था कि वह जब Industries में आता था, तो उसे खुले में शौच जाना पड़ता था। उसे लगता जैसे वह कोई पाप कर रहा है। वैसे तो वह जहाँ काम करता था वहाँ सारी व्यवस्था थी, पर वह सब तो बॉस के लिए थी। वर्कर के लिए नही। उसके अपने घर में भी सरकारी सहायता से शौचालय बन चुका था परंतु Industries में एक भी कौमन शौचालय नही था।
वैसे तो धनिया काफी समझदार था अन्यथा खुले में शौच की बात उसे पाप नही लगती। उसे यह भी महसूस होता था कि यह एक जबरदस्त मुद्दा है और यदि किसी पार्षद को पता चले, तो वह इस मुद्दे पर वोट मांग सकता है। फिर थोड़े सोच-विचार के बात उसे महसूस हुआ कि Industries में तो लोग बाहर से काम करने आते है। यहां का स्थाई निवासी तो कोई है नही, फिर मुद्दा कैसा?
तो उसने दूसरे तरीके से सोचना शुरू किया। उसे लगा कि सभी Industries का अपना उद्योगमंडल होता है, जिसमें उद्योगपति ही कर्ता-धर्ता होते हैं। अगर उनका ध्यान इस ओर किया जाए, तो बात बन सकती है। मगर उसे अहसास था कि उस जैसे आम आदमी की बात नहीं सुनी जाएगी। सो उसे रह-रह कर एक पत्रकार याद आ रहा था, जो उसके गांव में ही रहता था और गांव की छोटी-मोटी खबरे अखबारों तक पहुंचा देता था। बाकी तो वह भी ग्रामीण रोजगार योजना से ही अपना जुगाड़ करता था।
धनिया ने जैसे ही उसे अपने Industries की समस्या बताई, पत्रकार के कान खड़े हो गए। दूसरे दिन एक अखबार की हेडलाईन थी कि:
आजादी के 68 साल बाद भी भारत की सबसे बडी Umbrella Industries में एक भी सुलभ शौचालय तक नहीं।
अखबार तो बेचारे एक बार छापकर माफ कर देते है, मगर T.V. Media कहां माफ करता है? सो उद्योग पतियों के इन्टरव्यू शुरू हो गए। सबने अपने Worker के लिए बने Toilet दिखाए और जो नही दिखा पाए उन्होने China को कोसा कि Competition China से है इसलिए इस छाता-उद्योग में अब कुछ बचता ही नहीं। किसी ने तो अक्खड़ जवाब ही दे दिया कि यहां काम करने आते हैं कि शौच जाने।
धनिया को लग रहा था कि परिवर्तन तो होगा क्योंकि वह भी अपने घर में लगे Free Dish पर News Channels का सारा तमाशा देख रहा था। सैकड़ो बार Industries में बनी वह जगह T.V. पर दिखाई जा चुकी थी, जहां लोग खुले में शौच जाते थे। कई बार तो कैमरे वाले वहां अचानक पहुँच गए और वहां बैठे लोगो को हड़बड़ाहट में उठना पड़ा। धनिया पहले से ही सावधान था इसलिए आजकल वह थोड़ा कम ही खा रहा था और दो तीन बार अपने घर पर फ्रेश होकर ही Industries में जाता था, जिससे कि उसे केमरों का सामना ना करना पड़े।
फिर धीरे-धीरे धनिया को लगने लगा कि असली मकसद तो कहीं खोता जा रहा है। सो वह इन्डस्ट्रीस में लगे एक मजमें को देखकर समझ गया कि वह मिडिया वाले है। वह मजमें के बीच पहुँच गया और एक मिडियाकर्मी से माईक मांगा। उसके गंदे कपड़े देखकर हिचाकिचाते हुए मिडियाकर्मी ने माईक दिया। माईक लेकर धनियां ने बोलना शुरू किया- देखिए… मुख्य मुद्दा है कि Industries में शौचालय होना चाहिए, भले ही दो-तीन रूपया सफाई शुल्क लिया जाए, परन्तु कॉमन शौचालय तो Industries में होना ही चाहिए तभी स्वच्छ भारत में Industries का कुछ योगदान हो पाएगा।
मीडिया ने यह भी दिखा दिया। दो-तीन हफतो तक धनिया भी अपने गांव में हीरो बना रहा। लेकिन बात आई-गई हो गइ। मिडिया, धनिया को कब तक दिखाता? प्रधानमंत्री थोडे ही था वह जो उसके मन की बात हर सन्डे चलने लगती।
वह भी Industries से गुजरता तो इधर-उधर देखता हुआ चलता कि कही सुलभ शौचालय बनना शुरू तो नही हो गया।
एक दिन उसको लगा कि आज पेट में गड़बड़ है। उसने डिब्बा भरा और भारी मन से उसी खुले मैदान की ओर चल दिया परंतु अभी वह मैदान में जाकर बैठने को ही था कि चौकीदार डण्डा लहराता हुआ आया। उसने चेतावनी दी कि- यहाँ गदंगी फैलाना मना है।
धनिया ने उसे देखा तो चकरा गया। उसने कहा कि- पहले तो यहाँ कोई चौकिदार नही था।
चौकीदार ने कहा- वो मिडिया में हल्ला हुआ था, तब से उद्योग मंडल ने यहां चौकीदार लगा दिया है।
धनिया ने जेब से पाँच का सिक्का निकाल कर उसे दिया और कहा कि- देखो भाई… कंट्रोल नही हो रहा है।
पैसे देखते ही चौकिदार ने लपक लिया और धानिया को बबूल के पेड़ के पीछे जाने को कह दिया। अचानक धनिया की नींद खुली। उसके पेट में मरोड़ सी उठ रही थी। उसे शौच जाने की जल्दी थी पर वह उठा और दौड़ते-दौड़ते पत्रकार के घर गया, उसे जगाया और पूछा- तुमने वह Industries की समस्या वाला Article Post कर दिया?
पत्रकार ने कहा- अरे नही धनिया… कल Net नही चल रहा था। आज Type करके Email कर दूंगा।
धनिया ने कहा- जरा देखें तो… उसमें कुछ गड़बड़ है।
पत्रकार ने जेब से वह पर्चा निकालकर धनियाँ को दिया। धनिया ने वह पर्चा लेकर उसके इतने टुकड़े किए कि एक-एक शब्द अलग हो गए। पत्रकार जो कि नींद में था, उसकी नींद उड़ गई। उसने पूछा- यह क्या किया?
धनियां ने जवाब दिया- पत्रकार भैया… ये बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है। इस पर हम कोई बात नहीं कर सकते। भ्रष्टतंत्र में जरूरी है कि ऊपर से नीचे तक सब भ्रष्ट हों। ससुरा सपनें में तो चौकीदार भ्रष्ट था सो ठीक था, हकीकत में अगर वह ईमानदार निकला, तो हमारी और हमारे जैसे दूसरे मजदूरों की सारी व्यव्स्था चरमरा जाएगी।
पत्रकार के कुछ समझ में नही आया पर धनिया को जो कुछ समझ में आया वह लगभग सही था।