
भगवान काल भैरव का सिद्ध मन्त्र- Bhairav Mantra in Hindi
Bhairav Mantra in Hindi- नवरात्रि के दिनों में माँ दुर्गा की पूजा के बाद भैरव का पूजन करना अनिवार्य माना गया हैं। जीवन में आने वाली अनेक तरह की परेशानीयों को दूर करने के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है।
भगवान शिव के स्वरूप काल भैरव की उपासना जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं को दूर करती है। भैरव उपासना के लिए रविवार का दिन बहुत ही उपयुक्त माना गया है, लेकिन मंगलवार और शनिवार को भी पूजा की जा सकती हैं।
मुख्य रूप से भैरवाष्टमी के दिन तंत्र-मंत्रों का प्रयोग करके आप अपने व्यापार-व्यवसाय, जीवन में आने वाली कठिनाइयां शत्रु पक्ष से आने वाली परेशानियां, विघ्न, बाधाएं, कोर्ट कचहरी आदि मुकदमे में जीत के लिए भैरव आराधना करेंते हैं तो निश्चित ही सभी कार्य सफल हो जाते हैं। कालिका पुराण के अनुसार भैरव को भगवान शिव का गण बताया गया है और इनका वाहन कुत्ता है।
भैरव का जन्म-
शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को दोपहर में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव के खुन से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। एक कथा के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपनी सीमाएं पार कर रहा था। एक बार तो अंधकासुर दैत्य ने भगवान शिव पर ही आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। उस समय अंधकासुर दैत्य को मारने के लिए भगवान शिव ने अपनी हथेली को काट कर कुछ रक्त की बून्दों से भैरव की उत्पत्ति की और भैरव ने अंधाकासुर का विनाश किया और उसे मार दिया।
भगवान भैरव को अनेक नामों से जाना जाता हैं। पुराणों के अनुसार एक समय ब्रह्मा और विष्णु में इस बात से विवाद हो गया कि परम तत्व कौन है? वेदों से इस प्रश्न को किया गया, क्योंकि वेद ही प्रमाण माने जाते हैं। वेदों ने उत्तर दिया कि परम तत्व केवल भगवान शिव ही हैं। लेकिन ब्रह्मा जी ने इस बात को मानने से मना कर दिया और भगवान शिव का उपहास करने के लिए कहा, भगवान शिव तो मेरे भाल स्थल से रूद्र रूप में प्रकट हुए हैं। भगवान शिव का उपहास करने के लिए ब्रह्मा ने भगवान शिव से कहा कि’तुम मेरी शरण में आओ मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।‘’
भगवान ब्रह्मा की इस प्रकार गर्व युक्त बातें सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए और अपने खुन के अंश से भैरव को प्रकट किया। और भगवान शिव के कहने पर ब्रह्मा के पांचवे सर को काट दिया। भगवान ब्रह्मा के पहले पाँच सिर थे, लेकिन भैरव के सिर काटने के कारण केवल चार सिर ही बचे थे। ब्रह्मा के पांचवे सिर को काटने के बाद भगवान शिव ने भैरव को एक नया नाम दिया ’काल भैरव और भगवान शिव ने कहा कि तुम साक्षात काल के भी कालराज हो। तुम विश्व का भरण करनें में समर्थ होंगे, अतः तुम्हारा नाम भैरव भी होगा। तुमसे काल भी डरेगा, इसलिए तुम्हें काल भैरव भी कहा जाएगा। दुष्टात्माओं का तुम नाश करोगे, अतः तुम्हें आमर्दक नाम से भी लोग जानेंगे। भक्तों के पापों का तुम तत्क्षण भक्षण करोगे,फलतः तुम्हारा एक नाम पापभक्षण भी होगा।
माँ दुर्गा की पूजा करने के बाद भगवान भैरव का भी भौग लगाने से जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं का नाश होता हैं और दूर करती है।
कैसे कि जाए भैरव उपासना?-
भैरव उपासना के लिए एक चौमुखा मिट्टी का दीपक लें। इस दिपक में केवल सरसों का तेल भरकर चार मुख वाला चिराग जलाएं। साधक लाल आसन पर पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके पूजन करे, और सिद्ध मन्त्र से भगवान भैरव का आह्वान करे। भैरव मन्त्र का जप केवल स्फटिक की माला से ही करना चाहिए। जप पूरा होने के बाद भोग लगाए।
ॐ ह्रीं वटुकाय क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं वटुकाय स्वाहा।
काल भैरव के इस मन्त्र को केवल प्रतिदिन108 बार जाप करने से साधक के जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की परेशानीयों से छुटकारा मिल जाता हैं और नवरात्रि में दुर्गा पूजा के बाद भगवान भैरव की पूजा करने का विधान हैं। भैरव को माँ दुर्गा का वरदारन प्राप्त हैं जिसके कारण दुर्गा पूजा के बाद भैरव की पूजा करने से ही साधक को दुर्गा पूजा का फल मिलता हैं।
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