Anant Chaturdashi Vrat Katha In Hindi- अनंत चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति की मनोवांछित मनोकामना पूर्ण होती है।
पूराणों में लिखा है कि अंनत चतुर्दशी को विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्रम् का पाठ किया जाए तो श्री विष्णु भगवान जल्दि प्रसन्न हो कर उसे सुख, संपदा, धन-धान्य, यश-वैभव, लक्ष्मी, पुत्र आदि सभी प्रकार के सुख प्रदान करते हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन कथा का वाचन करना भी शुभ माना जाता है। तो आईए जानते है भगवान श्री विष्णु के दिन कि कथा।
प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक तपस्वी ब्राह्मण था उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। सुमंत और दीक्षा की एक कन्या थी, जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सौतेली माता कर्कशा, सुमंत की पुत्री सुशीला को पसन्द नहीं करती थी और उसे अनेक प्रकार की तकलीफें दिया करती थी। समय के साथ सुशीला का विवाह कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया, जो कि बहुत ही धनवान होने के साथ उसके पास भौतिक सुख व वैभव की कोई कमी नहीं थी।
लेकिन दहेज प्रथा के कारण सुशीला की सौतेली मां कर्कशा ने अपना धन बचाने के लिए अपने दामाद को दहेज में कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।
इस बात से कौंडिन्य ऋषि बहुत दुखी हुए, लेकिन बिना कुछ कहे अपनी पत्नी सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए, रास्ते में ही रात होने के कारण वे एक नदी तट पर रूक कर संध्या पाठ करने लगे।
नदी के तट पर ही सुशीला ने देखा कि बहुत-सी स्त्रियां किसी देवता का पूजन कर रही है। सुशीला ने उन स्त्रियों से पूछा, ‘’ हे बहनो आप यह किस देवता की पूजा कर रही है।‘’
पूजन कर रहीं स्त्रियों ने सुशीला से कहा, ‘’ हे बहन हम अंनत चतुर्दशी का व्रत कर रहे है।‘’
उन सभी स्त्रियों ने सुशीला को अंनत चतुर्दशी की पूरी विधि और अनंत व्रत की महत्ता बताई। इस व्रत से सुशीला प्रभावित हुई और उसने भी उसी नदी तट पर ही उस व्रत का अनुष्ठान किया तथा चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई क्योंकि व्रत धारण करने वाले को अनंत डोरा अपने हाथ में बांधना जरूरी होता है।
कौंडिन्य ने सुशीला के हाथ में बंधे डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी, लेकिन कौंडिन्य को लगा कि सुशीला कोई ऐसा डोरा बांध कर उसे अपने वश में करना चाहती है।
कौंडिन्य ने उस अनंत डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी क्रोधित हो गए और ऋषि कौंडिन्य की सारी सम्पत्ति नष्ट कर दी। ऋषि कौंडिन्य पूरी तरह से दरिद्र हो गए। अंत में उन्होंने अपनी पत्नी से अपनी सम्पत्ति के नष्ट हो जाने का कारण पूछा तो सुशीला ने उन्हें अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं।
भगवान अनंत के किए गए अपमान का पश्चाताप करने के लिए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति हेतु वन में चले गए और कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े। तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले-
‘’हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे।‘’
ऋषि कौंडिन्य अंनत भगवान के बताए अनुसार व्रत किया और धीरे-धीरे ऋषि कौंडिन्य को सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।
अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है और जैन धर्मावलंबियों के लिए अंनत चौदस का दिन सबसे पवित्र दिन होता है क्योंकि यह दिन जैन त्यौहार,पर्युषण पर्व का आख़री दिन होता है।
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