Anant Chaturdashi Puja Vidhi- सनातन हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को अंनत चतुर्दशी का व्रत पर्व मनाया जाता है। भारत देश के उत्तरी भाग में इसे अन्नता भी कहा जाता है।
कैसे किया जाता हैै अंनत चतुर्दशी व्रत?
अंनत चतुर्दशी का व्रत कभी भी शुरू किया जा सकता है। लेकिन भारत देश के उत्तरी भाग में किसी नारी को रास्ते पर या किसी अन्य स्त्री के द्वारा दिया गया चौदह गाठों का धागा अंनत चतुर्दशी व्रत की शुरूआत माना जाता है।
अंनत चतुर्दशी के दिन अंंनत भगवान (श्री हरी विष्णु) का पूजन किया जाता है जिसमें अनेक प्रकार के संकटों से रक्षा करने वाला अंंनत-सूत्र बांधा जाता है। पूराणों केे अनुुुुसार पाण्डवों के द्वारा खेले गए जुए में पाण्डवों का पूरा राज-पाट दुर्योधन के मामा से हार गए थे और दुर्योध के मामा ने पाण्डवों को वनवास दे दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को अंनत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा था। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्तसूत्र धारण किया। अनन्त चतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डवों का सब कष्ट और संकट दूर हो गया था।
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि।
अनंत चतुर्दशी के पूजन में प्रात: काल ही स्नान करके अनन्त चतुर्दशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। अपने घर के पूजन कक्ष में कलश-स्थापित करना चाहिए। कलश के उपर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत देेेवव की स्थापना करना चाहिए या भगवान विष्णु के चौदह फन वाले शेषनाग के साथ का चित्र स्थापित करना चाहिए। विघ्नहर्ता श्री गणेश जी का आवाहन कर उनकी पूजा करनी चाहिए। बाद में अंनत भगवान की पूजा शुरू करनी चाहिए।
सुत का धागा लेकर उस पर चौदह गांठें लगानी चाहिए जिसे अंंनत-सूत्र कहा जाता है। अंनत-सूत्र को भगवान विष्णु के सामने रखना चाहिए। भगवान विष्णु और अनंत-सूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद अंनत देव की कथा का श्रवन करना चाहिए और अंनत-सूत्र को व्रती को अपने हाथ में ग्रहन करना चाहिए। पूजन के बाद अंनत सूत्र को निम्न मंत्र पढकर पुरुष को अपने दाहिने हाथ में और स्त्री को अपने बाएं हाथ में बांध लेना चाहिए।
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
इसके बाद योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए और व्रती स्वयं सपरिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। अनंत चतुर्दशी व्रत में व्रती को केवल फलाहार लेना चाहिए, लेकिन एक समय मिठा भोजन भी किया जा सकता है।
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि
सर्वप्रथम निम्न मंत्र को पढते हुए अखण्ड दीपक जलाना चाहिए।
ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते।
दीपक जलाने के बाद श्री गणेश मंत्र का एक बार जाप करना चाहिए।
ॐ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा॥
भगवान गणेश का आवाहन मंत्र
ॐ गणानां त्वा गणापतिहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ग हवामहे वसो मम।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
श्री गणेश आवाहन मंत्र के बाद श्री हरी विष्णु का पूजन करना चाहिए।
सर्वप्रथम श्री हरी विष्णु का निम्न मंत्र सें स्मरण करना चाहिए।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण॥
श्री हरी विष्णु का स्तुति मंत्र के द्वारा आवाहन एंव पूूूूजन करना चाहिए।
प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम्।
नमो नमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम्॥
निम्न मंत्र से श्री हरी विष्णु को शुद्ध जल से स्नान करवाना चाहिए।
प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:।
गदां कौमोदकीं गृह्य पद्मनाभ नमोस्तु ते॥
निम्न मंत्र से अंनत देव को आसन देना चाहिए।
याम्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:।
हलमादाय सौनन्दं नमस्ते पुरुषोत्तम॥
निम्न मंत्र से श्री हरी विष्णु को वस्त्र अर्पण करना चाहिए।
प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:।
मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम्॥
निम्न मंत्र से श्री हरी विष्णु को पिताम्बर अर्पण करना चाहिए।
उत्तरस्यां जगन्ननाथ भवन्तं शरणं गत:।
खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे॥
निम्न मंत्र से श्री हरी अंनत देव विष्णु को सिन्दूर अर्पण करना चाहिए।
नमस्ते रक्ष रक्षोघ्र ऐशान्यां शरणं गत:।
पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम्॥
निम्न मंत्र से श्री हरी विष्णु को तिलक लगाना चाहिए।
प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्रेय्यां यज्ञशूकर्।
चन्द्रसूर्य समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा॥
निम्न मंत्र से यज्ञोपवीत अर्पण करना चाहिए।
नैर्ऋत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन्।
वैजयन्ती सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम्॥
निम्न मंत्र से पूष्प-माला पहनाए।
वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोस्तुते।
वैनतेयं समरुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन॥
निम्न मंत्र से नैवेद्य अर्पण करना चाहिए।
मां रक्षस्वाजित सद नमस्तेस्त्वपराजित।
विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां तवं रसातले॥
निम्न मंत्रों के साथ श्री हरी अंनत को प्रणाम करना चाहिए।
अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोस्तु ते।
करशीर्षाद्यङ्गलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम्॥
अन्त में निम्न मंत्रों के साथ श्री हरी अंनत का ध्यान करना चाहिए।
कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम।
एतदुक्तं शङ्काराय वैष्णवं पञ्जरं महत्॥
पुरा रक्षार्थमीशान्यां: कात्यायन्या वृषध्वज्।
नाशयामास सा येन चामरं महिषासुरम्॥
दानव रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान्।
एतज्जपन्नरो भक्तया शत्रून् विजयते सदा॥
निम्न मंत्रों के साथ श्री हरी अंनत को प्रणाम करना चाहिए।
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि॥
अन्त में निम्न मंत्र के द्वारा भगवान श्री हरी अंनत देव की स्तुति करनी चाहिए।
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।
विश्वधारंगनसदृशम्मेघवर्णं शुभांगम॥
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्याननगमयम।
वन्दे विष्णुम्भवभयहरं सर्व्वलोकैकनाथम॥
पूजा के अन्त में आपके द्वारा हुए अपराध के लिए श्री हरी अंनत देव से क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
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