7 Natural Wonders Of The World- लगभग 2000 साल पहले यूनानी विद्वानों के द्वारा बनाई गई विश्व के सात अजूबों की सूची को 7 जुलाई 2007 (7-7-7) दुसरा संशोधित किया गया। पुरानी इमारतों में से अधिकतर टूट-फूट चुकी हैं इसलिए इंटरनेट के माध्यम से 1999 से शुरू हुई एक प्रतियोगिता के जरिए इस नई सूची को बनाया गया।
2005 से इसके लिए मतदान शुरू हुए जिसमें दुनियाभर के लोगों ने हिस्सा लिया और नए अजूबों की सूची बनाई गई जिनमें यह सात मानवों के द्वारा बनाए गए दुनिया की रोचक इमारते प्रमुख है।
ताजमहल
ताजमहल भारत के आगरा शहर में स्थित एक मक़बरा है। ताजमहल का निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने, अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में बनवाया था। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है। ताजमहल की वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। सन् 1973 में, ताजमहल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली, श्रेष्ठ मानवी रचना में से एक बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है।
ताजमहल साधारणतया संगमर्मर की सिल्लियों की बडी- बडी पर्तो से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनाकर इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमर्मर से ढंका है। केन्द्र में बना मकबरा अपनी वास्तु श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देते हैं। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है, कि यह पूर्णतया सममितीय है। इसका निर्माण सन् 1647 के लगभग पूर्ण हुआ था। उस्ताद अहमद लाहौरी को प्रायः इसका प्रधान निर्माता माना जाता है।
क्राइस्ट द रिडीमर
क्राइस्ट द रिडीमर को दुनिया के सात अजुबो में गिना जाता है। ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो में स्थापित ईसा मसीह की एक प्रतिमा है जिसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्ट डेको स्टैच्यू माना जाता है। यह प्रतिमा अपने आधार सहित लगभग 130 फ़ुट लंबी और 98 फ़ुट चौड़ी है। ईसा मसीह की प्रतिमा का वजन लगभग 635 टन है और तिजुका फोरेस्ट नेशनल पार्क में कोर्कोवाडो पर्वत की चोटी पर स्थित है। ईसा मसीह की यह प्रतिमा 2,300 फ़ुट की उचाई पर है, जहाँ से पूरा शहर दिखाई देता है। यह प्रतिमा दुनिया में अपनी तरह की सबसे ऊँची मूर्तियों में से एक है। ईसाई धर्म के एक प्रतीक के रूप में यह प्रतिमा रियो और ब्राजील की एक पहचान बन गया है। यह प्रतिमा मजबूत कांक्रीट और सोपस्टोन से बनी है, इसका निर्माण 1922 और 1931 के बीच किया गया था।
कोर्कोवाडो की चोटी पर ईसा मसीह की विशाल प्रतिमा खड़ी करने का विचार सबसे पहते 1850 के दशक के मध्य में कैथोलिक पादरी पेड्रो मारिया बॉस ने सुझाया गया था। लेकिन पादरी पेड्रो मारिया बॉस इस विचार पर ध्यान नहीं दिया गया और बाद में दूसरा प्रस्ताव रियो के कैथोलिक सर्कल द्वारा 1921 में लाया गया। इस समूह ने प्रतिमा के निर्माण के समर्थन में दान राशि और हस्ताक्षर जुटाने के लिए मोनुमेंट वीक“सेमाना डू मोनुमेंटो” नामक एक कार्यक्रम का आयोजन किया। दान ज्यादातर ब्राजील के कैथोलिक समुदाय से आए।
इस प्रतिमा में “ईसा मसीह” के लिए चुने गए डिजाइनों में ईसाई क्रॉस का एक प्रतिनिधित्व, अपने हाथ में पृथ्वी को लिए ईसा मसीह की एक मूर्ति और विश्व का प्रतीक एक चबूतरा शामिल था। खुली बाहों के साथ “क्राइस्ट द रिडीमर” की प्रतिमा को चुना गया। इसके निर्माण में 1922 से 1931 तक नौ साल लग गए और इसकी लागत 250,000 अमेरिकी डॉलर के समकक्ष (2009 में लगभग 3।5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) थी। ईसा मसीह की यह प्रतिमा शांति का एक प्रतीक भी है। पक्षियों के इस पर बैठने से रोकने के लिए प्रतिमा के शीर्ष पर छोटी-छोटी कीलें भी लगाई गयी हैं। स्मारक को 12 अक्टूबर 1931 को खोला गया था।
10 फ़रवरी 2008, को बिजली गिरने के कारण प्रतिमा इसकी उंगलियों, सिर और भौहों को नुकसान पहुँचा था। लेकिन प्रतिमा की मरम्मत के लिये रियो डी जेनेरो की राज्य सरकार और आर्कडायोसीज द्वारा एक जीर्णोद्धार का प्रयास किया गया।
चीचेन इट्ज़ा
दुनिया के 7 अजूबे में “चीचेन इट्ज़ा” भी एक अजूबा है। चीचेन इट्ज़ा का अर्थ होता है इट्ज़ा के कुएं के मुहाने पर। इट्ज़ा एक जातीय-वंश समूह का नाम है। चीचेन इट्ज़ा के खंडहर संघीय संपत्ति हैं और उस स्थल का प्रबंधन मेक्सिको केराष्ट्रीय मानव विज्ञान और इतिहास संस्थान (INAH) द्वारा किया जाता है। 79 फीट की ऊँचाई पर बना कुकुल्कन जिसे अक्सर “अल कैस्टिलो” के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस सीढ़ीदार पिरामिड का आधार चौकोर है और चारों ओर से शीर्ष पर स्थिति मंदिर के लिए हर तरफ 91 सीढ़ियां हैं। हर सीढ़ी एक दिन का प्रतीक है और मंदिर 365वां दिन। वसंत और शरद के विषुव में, सूर्य के उदय और अस्त होने पर, यह संरचना उत्तर की सीढ़ी के पश्चिम में एक पंखदार सर्प की छाया निर्मित करती है। कुकुल्कन, या क्वेत्ज़लकोटल। इन दो वार्षिक अवसरों पर, इन कोनों की छाया सूरज की हरकत के साथ पिरामिड के उत्तर ओर गिरती है जो सर्प के सिर तक जाती है।
1930 के दशक में मैक्सिकन सरकार ने अल कैस्टिलो की खुदाई को Sponsored किया। पिरामिड के उत्तर की ओर अन्दर उन्हें एक सीढ़ी मिली। ऊपर से खुदाई करने पर, उन्हें मौजूदा मंदिर के नीचे भी एक और मंदिर मिला। मंदिर के कक्ष के अन्दर एक चाक मूल मूर्ति थी और तेंदुएं के आकार का एक सिंहासन था, जो लाल रंग में रंगा था और उस पर वंशगत जेड से धब्बे बने हुए थे।
मैक्सिकन सरकार ने पुराने पिरामिड के गुप्त मंदिर तक जाने वाली सीढ़ी के लिए उत्तरी सीढ़ी के नीचे से एक सुरंग खोदी और इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया। लेकिन 2006 में, INAH ने जनता के लिए सिंहासन कमरे को बंद कर दिया।
कोलोसियम
इटली देश के रोम के मध्य निर्मित रोमन साम्राज्य का सबसे विशाल एलिप्टिकल एंफ़ीथियेटर है। यह रोमन स्थापत्य और Engineering का श्रेष्ठतम नमूना माना जाता है। इसका निर्माण तत्कालीन शासक वेस्पियन ने 70वीं – 72वीं ईस्वी के मध्य प्रारंभ किया और 80वीं ईस्वी में इसको सम्राट टाइटस ने पूरा किया।
81 और 96 वर्षों के बीच इसमें डोमीशियन के राज में इसमें कुछ और परिवर्तन करवाए गए। इस भवन का नाम एम्फ़ीथियेटरम् फ्लेवियम, वेस्पियन और टाइटस के पारिवारिक नाम फ्लेवियस के कारण है।अंडाकार कोलोसियम की क्षमता 50,000 दर्शकों की थी, जो उस समय में साधारण बात नहीं थी। कोलोसियम में 50,000 तक लोग इकट्ठे होकर जंगली जानवरों व ग़ुलामों की खूनी लड़ाइयों के खेल देखते थे।इरोम का कोलोसियम का डिजाइन इतना बढ़िया है कि आज तक संसार के खेल स्टेडियम इसकी किसी न किसी रूप में नकल करके बनाए जाते हैं।
इस स्टेडियम में उस समय मनोरंजन में लगभग 5 लाख पशु और 10 लाख मनुष्य मारे गए। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटक भी यहाँ खेले जाते थे। इस स्टेडियम में साल में दो बार भव्य आयोजन होते थे। आज इक्कीसवीं शताब्दी में यह भूकंप और पत्थर चोरी के कारण केवल खंडहर के रूप में ही बचा है। यूनेस्को द्वारा इसका चयन विश्व विरासत के रूप में किया गया है। कोलोसियम का यह स्टेडियम आज भी शक्तिशाली रोमन साम्राज्य के वैभव का प्रतीक है।
चीन की महान दीवार
चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के भिन्न-भिन्न शासको के द्वारा उत्तरी हमलावरों से रक्षा के लिए पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। इस दीवार की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की इस मानव निर्मित ढांचे को अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है।
चीन की महान दीवार 6,400 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली है। इसका विस्तार पूर्व में शानहाइगुआन से पश्चिम में लोप नुर तक है और कुल लंबाई लगभग 6700 किलोमीटर है। इस महान दीवार निर्माण परियोजना में लगभग 20 से 30 लाख लोगों ने अपना जीवन लगा दिया था। चीन की महान दीवार (Great Wall of China) को ‘ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना’ की नाम से भी जाना जाता है। मानव द्वारा निर्मित यह दुनियाँ का सबसे लम्बा अजूबा है। इस दीवार कली अधिकतम ऊंचाई 35 फीट तक है।चीनी भाषा में इस दीवार को ‘वान ली छांग छंग’ कहा जाता है। इस दीवार को बनाने में लगभग 3000 मजदूरों ने अपनी जान गबाई थी। आज यह दीवार विश्व में चीन का नाम ऊंचा करती है, व युनेस्को द्वारा 1987 से विश्व धरोहर घोषित है।
पेत्रा
पेत्रा, जॉर्डन के म’आन प्रान्त में स्थित एक ऐतिहासिक नगरी है। यह अपने पत्थर से तराशी गई इमारतों और पानी वाहन प्रणाली के लिए प्रसिद्ध है। इसे छठी शताब्दी ईसापूर्व में नबातियों ने अपनी राजधानी के तौर पर स्थापित किया था। माना जाता है कि इसका निर्माण कार्य 1200 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ था। ज के समय में यह एक विख्यात पर्यटक स्थल है। पेत्रा “होर” नाम की पहाड़ी की ढलान पर बना हुआ है और पहाड़ों से घिरी हुई एक द्रोणी में स्थित है। यह पहाड़ मृत सागर से अक़ाबा की खाड़ी तक चलने वाली “वादी अरबा” नामक घाटी की पूर्वी सीमा हैं। पेत्रा को युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर होने का दर्जा मिला हुआ है। इनमें 138 फुट ऊँचा नक़्क़ाशी किया मंदिर प्रसिद्ध है। इसके अलावा नहरें, पानी के तालाब, तथा खुला स्टेडियम जिसमें 4000 लोग बैठते थे, जैसी कई चीज़ें हैं।
माचू पिचू
दक्षिण अमेरिकी देश पेरू मे स्थित एक कोलम्बस-पूर्व युग, इंका सभ्यता से संबंधित ऐतिहासिक स्थल है। माचू पिचू नाम का अर्थ है, ‘पुरानी चोटी।” यह समुद्र तल से 2,430 मीटर की ऊँचाई पर उरुबाम्बा घाटी, जिसमे से उरुबाम्बा नदी बहती है, के ऊपर एक पहाड़ पर स्थित है। यह कुज़्को से 80 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है। इसे अक्सर “इंकाओं का खोया शहर “ भी कहा जाता है। माचू पिच्चू इंका साम्राज्य के सबसे परिचित प्रतीकों में से एक है।
लगभग 1430 ई इंकाओं ने इसका निर्माण अपने शासकों के आधिकारिक स्थल के रूप में शुरू किया था, लेकिन इसके लगभग सौ साल बाद, जब इंकाओं पर स्पेनियों ने विजय प्राप्त कर ली तो इसे यूँ ही छोड़ दिया गया। हालांकि स्थानीय लोग इसे शुरु से जानते थे पर सारे विश्व को इससे परिचित कराने का श्रेय हीरम बिंघम को जाता है जो एक अमेरिकी इतिहासकार थे और उन्होने इसकी खोज 1911 में की थी, तब से माचू पिच्चू एक महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण बन गया है।
माचू पिच्चू को 1981 में पेरू का एक ऐतिहासिक देवालय घोषित किया गया और 1983 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की दर्जा दिया गया। क्योंकि इसे स्पेनियों ने इंकाओं पर विजय प्राप्त करने के बाद भी नहीं लूटा था, इसलिए इस स्थल का एक सांस्कृतिक स्थल के रूप में विशेष महत्व है और इसे एक पवित्र स्थान भी माना जाता है।
माचू पिच्चू को इंकाओं की पुरातन शैली में बनाया था जिसमें पॉलिश किये हुए पत्थरों का प्रयोग हुआ था। इसके प्राथमिक भवनों में सूर्य का मंदिर और तीन खिड़कियों वाला कक्ष प्रमुख हैं। 7 जुलाई 2007 को माचू पिच्चू को विश्व के सात नए आश्चर्यों मे शामिल किया गया।
यह हैं दुनिया के 7 नए अजूबे। दुनिया के अजूबे ऐसे अद्भुत प्राकृतिक और मानव निर्मित संरचनाओं का संकलन है, जो मनुष्य को आश्चर्यचकित करती हैं। प्राचीन काल से वर्त्तमान काल तक दुनिया के अजूबों की ऐसी कई विभिन्न सूचियाँ तैयार की गयी हैं। इनमे से यह सात अजूबे नऐ है।
Join the Discussion!