Why is Diwali Celebrated – दीपावली की पूरी रात दीपक प्रज्वलित रखते हैं, जिसके संदर्भ में हिन्दु धर्म में कई मान्यताऐं हैं, जिनमें से कुछ का वर्णन पिछले पोस्ट क्यों मनाते हैं दीपावली के अन्तर्गत किया था।
उनके अलावा हिन्दु धर्म में दीपावली की रात को दीपक जलाए रखने के संदर्भ में एक मान्यता और कि पितरपक्ष में श्राद्ध के दौरान पृथ्वी पर आने वाले पितरों को फिर से पितृ लोक में पहुंचने में परेशानी न हो, इस हेतु दिवाली की पूरी रात दीपकों द्वारा प्रकाश किया जाता है, जो पितरों को पितृ लोक का रास्ता प्रकाशित करने हेतु होते हैं। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है।
दिपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। इसलिए दीपावली से कई दिनों पूर्व ही इसकी तैयारियाँ शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का काम शुरू कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों और गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दिपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। लोग अपने घरो को सुन्दर रूप से सजाने के बाद उसमे रोशनी करते हैं क्योंकि दिवाली को अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक माना जाता है।
हिन्दु धम में दीपावली को पंच पर्वो का त्योहार कहा जाता है जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्त होते हैं। यानी पंच पर्वों के अन्तर्गत धनतेरस, नरक चतुर्थी, दिपावली, राम-श्याम और भैया दूज सम्मिलित हैं। पूरे भारत सहित सम्पूर्ण दुनियां में जहां कहीं भी हिन्दू, जैन, सिख, आर्य समाज और प्रवासी भारतीय हैं, वे सभी इस दिपावली के त्यौहार को पूर्ण उत्साह के साथ मनाते हैं क्योकि इस त्यौहार का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि व्यापारिक महत्व भी है।
पंच पर्वों का त्यौहार
धनतेरश
इस पर्व पर लोग अपने घरों में यथासम्भव सोने का सामान खरीदकर लाते हैं और मान्यता ये होती है कि इस दिन सोना खरीदने से उसमें काफी वृद्धि होती है। लेकिन आज के दिन का अपना अलग ही महत्व है क्योंकि आज के दिन ही भगवान धनवन्तरी का जन्म हुआ था जो कि समुन्द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है।
सोने के अलावा बर्तनों की दुकानों पर भी विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है क्योंकि धनतेरस के दिन सोने-चांदी के बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता है। यद्धयपि सभी लोग सोने-चांदी के बर्तन नहीं खरीद सकते, इसलिए लोग इस दिन अन्य प्रकार के बर्तन खरीदना भी शुभ मानते हैं। साथ ही इसी दिन तुलसी के पौधों के पास व घर के द्वार पर दीपक जलाया जाना शुरू करते हैं, अौर ये दिया अगले 5 दिनों तक हर रोज जलाया जाता है।
नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी को कहीं-कहीं छोटी दिपावली भी कहा जाता है क्योंकि ये दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है और इस दिन मूल रूप से यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं, जिसे दीप दान कहा जाता है।
मान्यता ये है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विंष्णु ने इसी दिन नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध भी किया था।
लेकिन मूल रूप से इस दिन को यम पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो कि घर से अकाल मृत्यु की सम्भावना को समाप्त करता है। यम पूजा के रूप में अपने घर कि चौखट पर चावल के ढेरी बना कर उस पर सरसो के तेल का दीपक जलाया जाता है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु नही होती है। साथ ही इस दिन गायों के सींग को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।
दीपावली
यह महत्व पुर्ण उत्सव है। इस दिन मूल रूप से लक्ष्मीपूजन के साथ गणेश भगवान कि पूजा-आराधना व स्तूति की जाती है। भारतीय नव वर्ष की शुरूआत इसी दिन से मानी जाती है इसलिए भारतीय व्यापारी बन्धु अपने नए लेखाशास्त्र यानी नये बही-खाते इसी दिन से प्रारम्भ करते हैं और अपनी दुकानों, फैक्ट्री, दफ़्तर आदि में भी लक्ष्मी-पूजन का आयोजन करते हैं
साथ ही इसी नववर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व ही गलियों में नमक बिकने आता है, जिसे “बरकत” के नाम से पुकारते हैं और वह नमक सभी लोग खरीदा करते हैं क्योंकि मान्यता ये है कि ये नमक खरीदने से सम्पूर्ण वर्ष पर्यन्त धन-समृद्धि की वृद्धि होती रहती है।
दीपावली के दिन सभी घरों में लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है और हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की इस रात्रि में लक्ष्मी जी धरती पर भ्रमण करती हैं तथा लोगों को वैभव की आशीष देती है।
दिपावली के दिन यद्धपि गणेश जी की पूजा का कोई विशेष विधान नहीं है लेकिन क्योंकि भगवान गणपति प्रथम पूजनीय हैं, इसलिए सर्वप्रथम पंच विधि से उनकी पूजा-आराधना करने के बाद माता लक्ष्मी जी की षोड़श विधि से पूजा-अर्चना की जाती है। हिन्दु धर्म में मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है, तो उसके घर कभी धन-धान्य कि कमी नहीं होती।
हिंदुओं में इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष विधान है और माना जाता है कि वृषभ लग्न व सिंह लग्न के मुहूर्त में ही लक्ष्मी पूजन किया जाना चाहिए क्योंकि ये दोनों लग्न, भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्थिर लग्न माने जाते हैं इसलिए स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।
हालांकि दीपावली की पूरी रात्रि एक प्रकार से जागकर ही बिताई जाती है क्योंकि मान्यता ये है कि माता लक्ष्मी जब पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं, तब केवल उन्हीं घरों में जाती हैं, जिनमें घर के सदस्य जाग रहे होते हैं, पूजा आराधना कर रहे होते हैं अथवा अपने व्यापार से सम्बंधित किसी उपयोगी कार्य में व्यस्त होते हैं।
चूंकि दीपावली हमेंशा अमावश्या की रात्रि को ही मनाई जाती है, इसलिए लोग इस रात तरह-तरह की तंत्र-मंत्र टोटके आदि की सिद्धि भी करते हैं और मान्यता ये है कि इस रात्रि को तंत्र-मंत्र-टोटके आदि काफी आसानी से व जल्दी से सिद्ध हो जाते हैं। इसीलिए जो लोग नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान किसी कारणवश दुर्गा-सप्तशती के मंत्रों अथवा किसी अन्य तरह के तंत्र-मंत्र टोटके आदि की सिद्धि नहीं कर पाते, वे लोग दिवाली की रात को ये काम करते हैं।
इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दिपावली मनाई थी।
गोवर्धन पूजा
दीपावली के अगले दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर भगवान इन्द्र को पराजित कर उनके गर्व का नाश किया था तथा गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना कर गायों का पूजन किया था। इसलिए दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा-अर्चना करते हुए भगवान कृष्ण को याद किया जाता है।
साथ ही इसी दिन जब भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद उनके दर्शन के लिए अयोध्यावासी उनसे मिलने आये थे और अपने प्रभु को पुन: अयोध्या आने के संदर्भ में एक-दुसरे को बधाई दी थी, इस कारण से इस दिन को रामा-श्यामा का दिन भी कहा जाता है और इस दिन सभी लोग अपने परिचित लोगों से मिलने उनके घर जाते हैं व पुराने पड़ चुके रिश्तों में फिर से जान डालते हैं।
भाईदूज
दिपावली के तीसरे दिन “भाईदूज” का त्यौहार मनाया जाता है और इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर उसकी सलामती की प्रार्थना करती हैं। यह त्यौहार उत्तर भारत में भी बड़ी आस्था से मनाया जाता है तथा इस त्यौहार को “यम द्वितीया” के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि यम ने यमुना नदी को इसी दिन अपनी बहन कहा था और यमुना देवी ने इसी दिन यम को तिलक लगा कर यम का पूजन किया था। इसीलिए इस दिन को यम द्वितिया अथवा भाई दूज के नाम से जाना जाता है।
दीपदान
दिपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। नारदपुराण के अनुसार इस दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ माना जाता है।
दिपावली का त्यौहार मनाने का प्रमुख कारण भी यही माना जाता है कि इस दिन भगवान राम, चौदह वर्ष का वनवास बिताकर अपने भाई लक्ष्मण और अपनी पत्नी सीता के साथ अयोध्या लौटे थे और अयोध्यावासियों ने इसी खुशी में पूरी अयोध्या को दीपक से प्रकाशिक कर दिया था और तभी से दिवाली पर पूरे घर को दीपकों की रोशनी से जगमगा देने की परम्परा शुरू हुई है जो आज भी जारी है।
क्यों की जाती हैं दिपावाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा ?
इस संदर्भ में भी हिन्दु धर्म शास्त्राें में एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार एक बार सनत्कुमारजी ने सभी महर्षि-मुनियों से कहा- महानुभाव! कार्तिक की अमावस्या को प्रात:काल स्नान करके भक्तिपूर्वक पितर तथा देव पूजन करना चाहिए। उस दिन रोगी तथा बालक के अतिरिक्त और किसी व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। सन्ध्या समय विधिपूर्वक लक्ष्मीजी का मण्डप बनाकर उसे फूल, पत्ते, तोरण, ध्वज और पताका आदि से सुसज्जित करना चाहिए तथा अन्य देवी-देवताओं सहित लक्ष्मी जी का षोडशोपचार पूजन तथा पूजनोपरांत परिक्रमा करनी चाहिए।
मुनिश्वरों ने पूछा- लक्ष्मी-पूजन के साथ अन्य देवी-देवताओं के पूजन का क्या कारण है?
इस पर सनत्कुमारजी बोले- लक्ष्मीजी, समस्त देवी-देवताओं के साथ राजा बलि के यहाँ बंधक थीं और आज ही के दिन भगवान विष्णु ने उन सभी को बंधनमुक्त किया था। बंधनमुक्त होते ही सब देवता लक्ष्मी जी के साथ जाकर क्षीर-सागर में सो गए थे।
इसलिए अब हमें अपने-अपने घरों में उनके शयन का ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए कि वे क्षीरसागर की ओर न जाकर स्वच्छ स्थान और कोमल शैय्या पाकर यहीं विश्राम करें क्योंकि जो लोग लक्ष्मी जी के स्वागत की उत्साहपूर्वक तैयारियां करते हैं, उनको छोड़कर वे कहीं भी नहीं जातीं।
इसलिए रात्रि के समय लक्ष्मीजी का आह्वान कर उनका विधिपूर्वक पूजन करते हुए नाना प्रकार के मिष्ठान्न का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए। दीपक जलाने चाहिए तथा दीपकों को सर्वानिष्ट निवृत्ति हेतु अपने मस्तक पर घुमाकर चौराहे या श्मशान में रखना चाहिए।
इसीलिए पुराणों में यह कहा गया हैं कि दिवाली के दिन घरों में साफ़ सफाई होना चाहिये ताकि देवी लक्ष्मी उस दिन क्षीरसागर न जाकर भक्तों के घरों में ही वास करें और जहां माता लक्ष्मी का वास होता हैं वहाँ दरिद्रता नहीं होती हैं बल्कि ऐन-केन प्रकारेण धन की आवक बनी ही रहती है क्योंकि धन के देवता कुबेर की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी ही हैं और माता लक्ष्मी जिस घर में वास करती हैं, धन के देवता कुबेर का उस घर में लगातार आना-जाना लगा ही रहता है क्योंकि वे माता लक्ष्मी के कोषाध्यक्ष हैं।
इस प्रकार से दीपावली की रात्रि में माता लक्ष्मी की पूजा का महत्व हिन्दुधर्म के पुराणों में मिलता हैं|
इसके अलावा कई और कारण भी हैं, जिसकी वजह से दीपावली का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। इनमें से कुछ कारण अग्रानुसार हैं-
नवसंवत का शुभारम्भ
नेपालियों के लिए यह त्यौहार इसलिए भी महत्व पूर्ण है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। जबकि दिवाली के दिन ही उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था जिन्होंने विक्रम संवत नाम के भारतीय केलेण्डर का इसी दिन से आरम्भ किया था। इसलिए भारतीय लोगों के लिए भी दीपावली को नववर्ष की शुरूआत माना जाता है। यानी भरत में भी दीपावली को नए वर्ष या नवसंवत का शुभारम्भ माना गया है।
स्वामी रामतीर्थ, महर्षि दयानन्द सरस्वति, महावीर स्वामी व हरगोबिन्द सिंह
दिवाली के दिन ही पंजाब प्रांत में स्वामी रामतीर्थ नाम के महान संत का जन्म हुआ था और दिवाली के दिन ही स्वामी रामतीर्थ का महाप्रयाण हुआ था क्योंकि स्वामी रामतीर्थ ने दिवाली के दिन ही गंगातट पर स्नान करते समय ॐ शब्द का उच्चारण करते हुए जलसमाधि ले ली थी।
इसी प्रकार से आर्य समाज की स्थापना करने वाले महर्षि दयानन्द सरस्वति ने भी भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दिपावली के दिन ही अजमेर के निकट महाप्रयाण किया था।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दिपावली ही है।
जबकि सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।
मुगल कालीन दिपावली विषेशता
मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दिपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दिपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दिपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
जैन धर्मानुसार दिपावली
जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता है कैवल्यज्ञान, इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय भगवान की पूजा में लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
भगवान महावीर को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गौतम गणधर को कैवल्यज्ञान रूपी सरस्वती की प्राप्ति हुई, इसलिए जैन धर्म में इस दिन को लक्ष्मी-सरस्वती का पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है। लक्ष्मी पूजा के नाम पर रुपए-पैसों की पूजा, जैन धर्म में स्वीकृत नहीं है।
दिपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपये आदि भी दिए जाते हैं। दिपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है जिसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना होता है और इस संदर्भ में भी हिन्दुधर्म के शास्त्रों में एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है।
क्यों खेलते है जुआ दिवाली की रात्रि ?
सामान्यत: इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है। माना जाता है कि देवी पार्वती और भगवान शिव ने दिपावाली की रात्रि को जुआ खेला था और देवी पार्वती ने छल से भगवान शिव को हरा दिया। उसके बाद देवी पार्वती ने कहा कि जो कोई भी दिपावली कि रात्रि जुआ खेलेगा और जीतेगा, उस पर पूरे साल लक्ष्मी की कृपा होगी। जबकि जो व्यक्ति दीपावली की रात्रि खेले गए जुआ में हार जाएगा, उसे पूरे वर्ष सावधानी पूर्वक ही रहना उचित होगा।
यदि दीपावली की रात्रि को जुआ खेलकर लोग इस बात का पता लगाते हैं कि आने वाला वर्ष धन-समृद्धि के संदर्भ में उनके लिए कैसा रहेगा। यदि वे जुए में जीत जाते हैं, तो ये इस बात का संकेत होता है कि आने वाला वर्ष उनके लिए धन-समृद्धि के लिहाज से काफी अच्छा होने वाला है। परिणामस्वरूप वे ज्यादा जोखिम वाले काम-धन्धे व्यापार आदि में बेझिझक आगे बढते हैं।
लेकिन यदि वे जुए में हार जाते हैं, तो ये इस बात का संकेत होता है कि आने वाला वर्ष उनके लिए धन-समृद्धि के लिहाज से ज्यादा अच्छा नहीं होने वाला है। परिणामस्वरूप आने वाले वर्ष में नए काम-धन्धे व्यापार आदि में जितना जरूरी हो, उतना जोखिम ही उठाना उनके लिए उपयुक्त रहेगा।
कैसे मनाते हैं दीपावली?
जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है, दीपावली पूरे दिन पूरे परिवार को व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए तथा महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी का संयुक्त पूजन करना चाहिए । मान्यता है कि इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं।
ब्रह्म-वेला में सूप या थाली पीटना
दीपावली की रात्रि लक्ष्मी-पूजा आदि करने के बाद अन्त में सुबह के समय ब्रह्मबेला अर्थात प्रात:काल चार बजे स्त्रियां पूराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप बजाती हुई वापस घर आती है और लौटते समय कहती हैं कि- आज से घर में लक्ष्मीजी का वास हो और दु:ख दरिद्रता का सर्वनाश हो।
फिर घर आकर स्त्रियां अपने पूजा स्थान पर जाती हैं और कहती हैं कि- इस घर से दरिद्रता चली गई है। इसलिए हे लक्ष्मी जी… आप निर्भय होकर यहाँ निवास करिए।
इस कृत्य के संदर्भ में मान्यता ये है कि इससे कूडे-कचरे के रूप में घर में रहने वाली लक्ष्मी की बहन दरिद्रता दूर चली जाती है, तथा माता लक्ष्मी अभिवादन के साथ घर में प्रवेश करती हैं।
चूंकि वर्तमान समय में ज्यादातर घरों में सूप उपलब्ध नहीं होता क्योंकि अब घरों में इनकी जरूरत ही नहीं रह गई है। इसलिए अब ज्यादातर स्त्रियां सूप के स्थान पर चम्मच से थाली को पीटते हुए यही प्रक्रिया करती हैं व लक्ष्मीजी को अपने घर में रहने का आवाह्न करती हैं।
बहुत खूब चित्रण
Nice Post Deepa
sonurajput.com
Very well explained but dipawali..thanks