Hindi Stories with Moral – एक बार एक जंगल में भयंकर अकाल पडा। जंगल से निकलने वाली नदी भी सूखने लगी। सूखे के हालात को देखते हुए जंगल के राजा शेरसिंह ने नदी पर कब्जा करते हुए ऐलान कर दिया कि नदी के बचे हुए पानी पर राज परिवार का अधिकार है।
जंगल के सारे प्राणी राजा के ऐलान से बडे दु:खी हुए और जंगल में दूर-दूर तक पानी की तलाश में निकलने लगे। किसी का नसीब तेज होता, तो उसे कहीं चुल्लू भर पानी मिल जाता था अन्यथा थका-हारा वापस अपने घर लौट आता था।
उसी जंगल में एक हिरण और एक हिरणी पास-पास रहते थे। हिरण मन ही मन हिरणी को प्रेम करता था, लेकिन उसने हिरणी को कभी भी ये बात नहीं बताई थी। परन्तु हर सुख-दु:ख में वह हिरणी के काम जरूर आता था और कई दिनों से वह हिरणी के लिए पानी की व्यवस्था कर रहा था। लेकिन पिछले कई दिनों से उसे भी पूरे जंगल में कहीं पानी नहीं मिला था। इसलिए अन्त में उसने जंगल के राजा शेरसिंह के पास जाने का मन बना लिया।
वह राजा के पास गया और उसने हिरणी की हालत बताकर एक घूंट पानी नदी में से लेने की प्रार्थना की और कहा कि-
महाराज! हिरणी ने तीन दिनों से पानी नहीं पिया है और अपने जंगल के Doctor भालू सिंह ने चेतावनी दी है कि अगर तीन दिन तक किसी प्राणी को पानी न मिले, तो वह मर सकता है।
शेरसिंह को उस पर दया आ गई और उसने पीपल के पत्ते का दोना बनाकर उसे भरकर हिरण के सामने रख दिया। हिरण दौडा-दौडा हिरणी के पास गया और उसे खुशी-खुशी उसके सामने पानी का दोना रख दिया। अचानक ही हिरणी ने हिरण से प्रश्न किया- तुमने पिया?
हिरण सकपका गया क्योंकि इससे पहले हिरणी ने हिरण से ऐसा कभी पूछा नहीं था। लेकिन हिरण ने अपनी Nerves-ness छिपाते हुए कहा- पागल है क्या! मैं प्यासा रहकर तुझे पानी पिलाउंगा क्या? मैंने पहले ही पी लिया है।
लेकिन हिरणी समझ गई कि वह झूठ बोल रहा है। उसने पानी का दोना हिरण की तरफ खिसका दिया और कहा- मुझे प्यास नहीं है। तुम पी लो।
सुबह से शाम हो गई, पूरा जंगल इकट्ठा होगया इस तमाशे को देखने के लिए। शेरसिंह भी उत्सुकतावश् देखने लगा कि आखिर ये पानी कौन पिएगा। तुम पी लो, तुम पी लो, के चक्कर में हिरण ने आखिर अपने प्राण त्याग दिए। तुरन्त डॉक्टर भालू सिंह को बुलाया गया। उसने हिरण को देखते ही कहा- महाराज! इसे तो मरना ही था। इसने पिछले कई हफ्तों से पानी ही नहीं पिया है।
राजा ने हिरणी को समझाया कि- तू पानी पी ले नहीं तो तू भी मर जाएगी।
हिरणी की आंखों से आंसू बह निकले। उसने कहा- राजन्! जितने पानी में मेरे अकेले की जुबान तर होगी, उतने पानी में तो कई कौए-कबूतरों का गला तर हो जाएगा।
इतना कहकर हिरणी ने भी अपने प्राण त्याग दिए। शेरसिंह को बडा दु:ख हुआ। उसने कौए-कबूतरों से पानी पीने के लिए कहा, तो उन्होंने जवाब दिया- महाराज! जितने पानी में हम सौ-पचास लोगों का गला तर होगा, उतने में तो हजारों छिपकली जैसी जीवों का गला तर हो जाएगा।
शेरसिंह ने छिपकलियों को पानी पीने के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया- महाराज! इतने पानी में तो तितलियों, कीट-पतंगों का कई दिनों तक गुजारा हो जाएगा। ये पानी उन्हें दे तो।
अचानक ही शेरसिंह के मुंह से निकला-और जितने पानी में हमारा राजपरिवार नहाता है, अठखैलियां करता है, उसमें तो सारे जंगल की प्यास बुझ सकती है।
शेरसिंह को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने नदी पर से अपना एकाअधिकार समाप्त करते हुए जंगल के सभी जीवों के लिए पानी उपलब्ध करवा दिया।
इस लघुकथा का Moral ये है कि अपने से छोटे और कमजोर लोगों के अधिकारों का ध्यान रखना भी आपकी ही जिम्मेदारी है।
Vry nyc story…
Aise kahania pehle kyu nahi mili.
Very Very Good
Moral Bahut Accha h Sir
बहुत प्रेरणादायक कहानी आपको बहुत बहुत धन्यवाद